चुपचाप बहती नदी
विनोद कुमार झा गाँव का माहौल उत्सवमय था। हर गली, हर आँगन में शहनाइयाँ गूंज रही थीं। 9 मई को सोनम…
विनोद कुमार झा गाँव का माहौल उत्सवमय था। हर गली, हर आँगन में शहनाइयाँ गूंज रही थीं। 9 मई को सोनम…
लेखक : विनोद कुमार झा (एक प्रेम और स्मृतियों से भरी कहानी) शहर की चकाचौंध भरी जिंदगी में जब भी स…
लेखक : विनोद कुमार झा धूप तेज थी। सड़क पर भागती ज़िंदगियाँ अपनी-अपनी मंज़िल की ओर दौड़ रही थीं। …
विनोद कुमार झा शोर मच रहा था, जैसे कोई रणभूमि सजी हो। हर चेहरा जैसे तलवार बना खड़ा था, हर आंख …
विनोद कुमार झा एक सच्चाई जो हर माँ के आँचल को छेद सकती है। कभी-कभी कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो …
विनोद कुमार झा कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ हम अपने ही लोगों के बी…
एक समय की बात है, उत्तर भारत के एक छोटे से गांव में एक गरीब ब्राह्मण, हरिप्रसाद, अपनी गरीबी को ओ…
गाँव पिपलवा की कच्ची पगडंडियों पर सुबह की हल्की धूप जब पसरी होती, तो हर किसी को रामू और श्यामू…
विनोद कुमार झा पहाड़ों की मखमली गोद में बसा ‘मधुबन’ गाँव, किसी रहस्य से भरे लोक की तरह चारों ओर …
विनोद कुमार झा भारत की पौराणिक परंपरा केवल देवताओं और असुरों के संघर्ष की कहानी नहीं है, बल्कि य…
विनोद कुमार झा शहर की हलचल भरी गलियों में, जहाँ रात की रंगीन रोशनी शराब के गिलासों में घुल जात…
विनोद कुमार झा गांव की पगडंडी के दोनों ओर फैले सरसों के पीले फूल मानो धरती पर बिछी सुनहरी चादर…
विनोद कुमार झा गर्मी की हल्की गुलाबी सुबह थी। सूरज की किरणें मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुर…
विनोद कुमार झा गांव की तंग गलियों में कदम रखते ही आरव का दिल तेज़ी से धड़कने लगता था। उसे इंत…
विनोद कुमार झा गाँव की कच्ची गलियों में जब भी राधा की चूड़ियों की खनक गूंजती, तो ऐसा लगता मान…
विनोद कुमार झा शाम का धुंधलापन धीरे-धीरे पसर रहा था। हल्की ठंडी हवा सरसों के खेतों में लहराती हु…