(एक विस्तृत, भावनात्मक, प्रेरक एवं पारिवारिक कहानी)
विनोद कुमार झा
गांव की मिट्टी की सोंधी महक, सुबह की धूप में चमकती कोमल हरी पत्तियां और रसोई से आती देसी घी की खुशबू इन सबके बीच बसी थी वह कहानी, जो केवल स्वाद नहीं, बल्कि संस्कार और संघर्ष का भी अद्भुत स्वाद समेटे हुए थी।
भोर की पहली किरण जैसे ही आंगन में पड़ी, दादी हल्की-सी खाँसी के साथ चौके की ओर बढ़ीं। साठ बरस की उम्र में भी उनकी रफ्तार किसी जवान ग्रामीण महिला से कम न थी।
“आदित्य, सुनते हो? खेत जाना है आज सुबह-सुबह,”
दादी ने पुकारा। आदित्य, जो शहर में इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और छुट्टियों में गांव आया था, उनींदे स्वर में बोला, “दादी, अभी तो अंधेरा है… इतनी सुबह?”
दादी हँस पड़ीं,“अरे भोले, मैथी की साग सूरज निकलने से पहले तोड़ो तो उसका स्वाद ही कुछ और होता है… चलो उठो।”अनिच्छा के बावजूद आदित्य उठ गया, क्योंकि दादी की बात टालना उसके लिए असंभव था।
सुगंध, मिट्टी और एहसास : खेत पर पहुंचते ही आदित्य की आंखों में चमक भर आई। हरे-भरे मैथी के पौधे सुबह की ओस में चमक रहे थे। हवा में हल्की-हल्की कड़वी-मीठी महक फैल रही थी।
“दादी, ये इतनी खुशबू कैसे देती है?”
“पौधे भी इंसान जैसे होते हैं,” दादी बोलीं, “अगर प्यार से उगाओ तो महकते हैं, और लापरवाही करो तो मुरझा जाते हैं।”तभी खेत के दूसरी ओर से एक लड़की आई। गुलाबी रंग के सलवार-कुर्ते में, माथे पर हल्की बिंदिया और हाथ में कुदाल।
“नमस्ते काकी,” वह मुस्कुराई। दादी ने जवाब दिया “आओ मीरा, आज फिर सुबह-सुबह…”“काकी, हमारी माताजी ने कहा था कि मैथी का नया पत्ता आज काटना है, सो चली आई।”आदित्य ने पहली बार मीरा को ध्यान से देखा चेहरे पर सादगी, आँखों में चमक और बातों में एक ताजगी।
दादी ने हल्के-से चुटकी ली,“अरे, ये शहर से आया है… आदित्य! पढ़ाई करता है बड़ी हाई-फाई…”मीरा शरमा गई और मुस्कुरा कर बोली “नमस्ते।”और उस एक मुस्कान ने आदित्य के दिल में जैसे हल्की-सी हलचल पैदा कर दी।
दोपहर तक दादी ने ताजा मैथी काट ली थी। घर आकर दादी ने कढ़ाई में घी डाला, लहसुन तड़का लगाया और धीरे-धीरे मैथी भूनने लगीं। घर भर में ऐसी खुशबू फैल गई कि आदित्य अनायास ही रसोई में जा पहुंचा।“दादी, इसमें ऐसा क्या है? लोग तो कहते हैं मैथी कड़वी होती है…”
दादी मुस्कुराईं, “जिंदगी भी तो कभी-कभी कड़वी लगती है, पर सही तरीके से पकाओ तो वही जिंदगी मीठी हो जाती है…
मैथी भी वैसी ही है। अगर धैर्य से पकाओ, तो कड़वाहट खुद छिप जाती है।”आदित्य ने पहली बार महसूस किया कि साधारण-सी सब्जी में भी कितनी गहराई छिपी है।
शाम को जब वह खेत की ओर फिर गया, तो उसने देखा कि मीरा अकेली ही खेत में काम कर रही है।“इतनी देर को?”मीरा मुस्कुराई,“घर की जिम्मेदारियां हैं… पिता जी बीमार रहते हैं, और मां को घर संभालना पड़ता है। खेती का काम मैं ही देखती हूँ।”
आदित्य को अचानक महसूस हुआ कि उसकी दुनिया शहर की किताबों और आराम की जिंदगी से कहीं छोटी और हल्की थी, जबकि यह लड़की मुश्किल परिस्थितियों में भी मुस्कुरा रही थी।
मीरा ने कहा, “आपके शहर में भी लोग मैथी की साग खाते होंगे?”
आदित्य हँस पड़ा,“दादी बनाती हैं तो खाता हूँ… पर इतना सादगी वाला स्वाद कहीं नहीं मिलता।”
मीरा ने हल्के से कहा, “क्योंकि यहां इसमें मिट्टी की खुशबू भी मिलती है… और मेहनत का प्यार भी।”आदित्य पहली बार समझ रहा था कि गांव की सुंदरता सिर्फ खेतों में नहीं, लोगों के दिलों में भी बसती है।
अगले कुछ दिनों तक आदित्य और मीरा की मुलाकातें बढ़ीं।
कभी खेत में, कभी गांव में, कभी किसी मेले में और हर बार आदित्य को लगता कि मीरा जैसे उसके जीवन में नई ताजगी भर रही है।
एक दिन आदित्य बोला, “मीरा, तुम जानती हो गांव की ये जिंदगी… ये सादगी… मुझे बहुत पसंद आने लगी है।”
मीरा ने हल्के से कहा, “पसंद होना आसान है, अपनाना मुश्किल।”आदित्य उसके शब्दों में छिपी कड़वाहट समझ गया बिल्कुल मैथी की तरह।
दादी सब समझ रही थीं। एक शाम उन्होंने आदित्य को बुलाया।“बाबू, दिल की बात छिपती नहीं। मीरा एक अच्छी लड़की है, पर उसके परिवार की स्थिति कमजोर है। फैसला करने से पहले सोच लेना प्यार सिर्फ एहसास नहीं, जिम्मेदारी भी होता है।”
आदित्य ने दादी का हाथ थाम लिया, “दादी, मैथी की साग की तरह… अगर थोड़ा धैर्य और प्यार हो तो हर कड़वाहट मिट सकती है। मैं तैयार हूँ।”दादी की आंखों में चमक भर आई।
कुछ ही महीनों बाद आदित्य ने शहर की नौकरी गांव के लिए छोड़ दी और परिवार के साथ मिलकर खेतों में आधुनिक खेती की शुरुआत की। मीरा और आदित्य का रिश्ता भी मजबूत होता गया।
एक दिन दादी ने मैथी की साग बनाते हुए कहा, “देखा, मैंने कहा था न… प्यार और मेहनत किया जाए तो कड़वाहट भी मीठी हो जाती है!”
मीरा मुस्कुराई,“काकी, आज की साग में तो दोगुनी मिठास है।”आदित्य ने दोनों की ओर देखते हुए कहा,“क्योंकि इसमें हमारी मेहनत, हमारी मिट्टी और हमारा भविष्य मिला हुआ है।”और घर भर में फैल गई मैथी की साग की सोंधी, सुखद खुशबू ,जो सिर्फ एक भोजन नहीं,बल्कि प्यार, संघर्ष, परिवार और सपनों के मिलन का प्रतीक बन चुकी थी।

