विनोद कुमार झा
बिहार की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी गुरुवार को दसवीं बार शपथ लेने जा रहे हैं यह केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि सत्ता, गठबंधन और सार्वजनिक विश्वास के बदलते समीकरणों का प्रतीक भी है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह को लेकर जो तैयारियाँ हो रही हैं, वह इस तथ्य को और मजबूत करती हैं कि बिहार का राजनीतिक परिदृश्य अभी भी राष्ट्रीय महत्व रखता है।
विशाल गांधी मैदान में आयोजित होने वाले इस भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित उपस्थिति न केवल इस कार्यक्रम की प्रतिष्ठा बढ़ाती है, बल्कि केंद्र और बिहार के बीच समन्वय के नए संकेत भी देती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, धर्मेंद्र प्रधान, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, योगी आदित्यनाथ सहित एनडीए के कई शीर्ष नेताओं का एक मंच पर होना बताता है कि बिहार को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्य धारा में और मजबूती से स्थापित करने की तैयारी चल रही है।
नीतीश कुमार की यह पारी कई मायनों में खास है। लगभग दो दशकों से बिहार की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाते आ रहे नीतीश अब एक ऐसे समय में सत्ता संभाल रहे हैं जब जनता की अपेक्षाएँ पहले की तुलना में कहीं अधिक व्यापक और व्यावहारिक हैं। विकास, रोजगार, शिक्षा, कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढाँचे जैसे मुद्दों पर जनता अब ठोस नतीजे चाहती है, और इस पृष्ठभूमि में एनडीए की नई सरकार की चुनौतियाँ भी बड़ी हैं। इसके साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक स्थिरता के बिना विकास के बड़े लक्ष्य हासिल नहीं किए जा सकते। शपथ ग्रहण समारोह में तमाम शीर्ष नेताओं का जुटना इस स्थिरता और सहयोग की दिशा में सकारात्मक संकेत देता है। लेकिन राजनीतिक संदेशों से आगे बढ़कर वास्तविक कसौटी सरकार के प्रदर्शन पर ही होगी।
बिहार आज ऐसे मुकाम पर है जहाँ विश्वास और उम्मीदों दोनों को संभालना होगा। नीतीश कुमार की नई पारी तभी सफल मानी जाएगी जब सरकार जनता के लिए ठोस और दृश्यमान परिवर्तन लाने में सक्षम हो। यह शपथ सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक वादा है बिहार की नई मंज़िलों के लिए।बिहार की जनता अब देख रही है कि यह गठबंधन और यह नेतृत्व उनके जीवन में किस तरह का वास्तविक बदलाव लाता है। आने वाले दिन इसी परीक्षा की गवाही देंगे।
