बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है इनमें राष्ट्रीय, राज्य और क्षेत्रीय स्तर के तमाम दिग्गज नेताओं को शामिल किया गया है। इसके साथ ही सूची से जुड़े राजनीतिक अर्थ और चुनौतियाँ भी देखी जा सकती हैं। स्टार प्रचारकों की सूची इस प्रकार है:-
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
- पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा
- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
- केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
- केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी
- केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान
- केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
- दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता
- असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहान यादव
- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
इसके अतिरिक्त सूची में उपरोक्त के अलावा ये नाम भी शामिल हैं: केशव प्रसाद मौर्य, सी.आर. पाटिल, बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप कुमार जायसवाल, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, रेणु देवी, प्रेम कुमार, नित्यानंद राय, राधा मोहन सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति, सतीश चंद्र दुबे, राज भूषण चौधरी, अश्विनी कुमार चौबे, रविशंकर प्रसाद, नंद किशोर यादव, राजीव प्रताप रूडी, संजय जायसवाल, विनोद तावड़े, बाबूलाल मरांडी, प्रदीप कुमार सिंह, गोपालजी ठाकुर, जनक राम, और भोजपुरी कलाकार जैसे पवन सिंह, मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव “निरहुआ”।
इस सूची और प्रचार अभियान की बनावट से निम्न प्रमुख राजनीतिक रणनीतियाँ व संकेत सामने आते हैं:
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राष्ट्रीय स्तर की ताकत झोकना : मोदी, शाह, नड्डा जैसे नेताओं को प्रचार में उतारने से बीजेपी का यह संदेश है कि यह चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक है। बड़े नामों की मौजूदगी मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश है।
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राज्य व स्थानीय संतुलन : बिहार के स्थानीय नेताओं को शामिल करना जरूरी था, ताकि जमीनी स्तर पर प्रभाव बढ़ सके। इस कारण सूची में बिहार के प्रभावशाली नामों को भी जगह दी गई है।
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राजनीति और सेलिब्रिटी मिश्रण : भोजपुरी फिल्म और संगीत की लोकप्रिय हस्तियों को जोड़कर बीजेपी ने ‘लोक भावना’ को जोड़ने की रणनीति अपनाई है। ये चेहरे युवा और क्षेत्रीय मतदाताओं के बीच अपील कर सकते हैं।
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सहयोगी दलों और समुदाय संतुलन : बिहार में कांग्रेस, राजद, अन्य दलों की ताकत को देखते हुए, बीजेपी को यह भी ध्यान देना होगा कि सहयोगी दलों और भाजपा की भीतर की सामूहिक ताकत संतुलित रहे।
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गायब नामों से सियासी चर्चा : जैसे शाहनवाज़ हुसैन का नाम सूची में न होना, मीडिया और विपक्ष के लिए एक चर्चा का विषय बन गया है। इससे यह संकेत मिलता है कि बीजेपी ने रणनीति बदल दी है या नए समीकरण अपनाए हैं। चुनाव कार्यक्रम एवं प्रचार की रूपरेखा
- बीजेपी के भीतर यह माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की सभाएँ विशेष महत्व के क्षेत्रों जहाँ उनका प्रभाव कम है में हो सकती हैं।
- अमित शाह की रैलियों की संख्या भी अधिक होने की संभावना है, ताकि पार्टी की एकता व संदेश समस्त मतदाताओं तक पहुँचे।