परिवर्तिनी एकादशी (कर्मा- धर्मा एकादशी) व्रत कथा

विनोद कुमार झा

परिवर्तनी एकादशी, जिसे कर्मा- धर्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी  भी कहा जाता है, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो शयन काल में क्षीरसागर में विश्राम कर रहे होते हैं, करवट बदलते हैं। इसीलिए इसे परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है।

इस दिन व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में इसका महत्त्व विस्तार से वर्णित है।

 व्रत कथा : एक समय महर्षि सुतजी नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों को धर्म विषयक कथाएँ सुना रहे थे। तब शौनक ऋषि ने पूछा, “हे मुनिश्रेष्ठ! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है, इसका क्या महत्व है तथा इसकी कथा क्या है, कृपया हमें विस्तार से बताइए।”

सूतजी ने उत्तर दिया, “हे ऋषियों! यह एकादशी परम पावनी है। इसे परिवर्तनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं और देवगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। अब आप सब इसकी कथा सुनिए।”

 कथा का प्रसंग : त्रेतायुग में बलि नामक एक महादानी असुरराज था। वह बड़ा ही पराक्रमी और भक्त था। उसके दान और वीरता के आगे देवता भी भयभीत रहते थे। उसने अपने तप, बल और यज्ञों के प्रभाव से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।

देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया बौने ब्राह्मण के रूप में। वे राजा बलि के यज्ञ में पहुँचे और दान मांगने लगे।

वामन देव ने कहा, “हे महाबली! मुझे तीन पग भूमि का दान दीजिए।” बलि ने हँसते हुए कहा, “आप तो छोटे से बालक हैं, तीन पग भूमि में क्या होगा? आप कुछ और माँगिए।”

परंतु भगवान वामन ने वही आग्रह किया। वचन देने के बाद बलि ने जल अर्पण कर संकल्प किया। तभी वामन देव विराट रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश नाप लिया। अब तीसरे पग के लिए कुछ शेष न बचा।

राजा बलि ने वचन निभाने के लिए अपना सिर आगे कर दिया और कहा, “हे प्रभु! तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए।” भगवान विष्णु बलि की भक्ति और सत्यनिष्ठा से प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। साथ ही यह वरदान दिया कि हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन मैं तुम्हें दर्शन दूँगा। इसी कारण यह तिथि परिवर्तनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

इस दिन व्रत और उपवास करने से हजारों अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। व्रती को पापों से मुक्ति मिलती है और वह विष्णुलोक में स्थान प्राप्त करता है।

इस दिन तुलसी की पूजा करना, दान देना और भगवान विष्णु का जलझूलन (झूला झुलाना) विशेष पुण्यदायी माना जाता है।जो भक्त इस दिन व्रतपूर्वक विष्णु की उपासना करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं और जीवन सुखमय बनता है।

 व्रत की विधि : 

1. व्रती को प्रातःकाल स्नान कर संकल्प लेना चाहिए।

2. भगवान विष्णु के समक्ष दीप, धूप, पुष्प, तुलसी दल, पंचामृत और भोग अर्पित करें।

3. दिनभर उपवास रखें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

4. रात्रि जागरण का विशेष महत्व है।

5. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान देकर व्रत का पारण करें।

नोट: इस एकादशी व्रत का पारण कुशा के जल से करें।

इस प्रकार, परिवर्तनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि आती है और अंततः उसे परमधाम की प्राप्ति होती है।

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