विनोद कुमार झा
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशावतार दशमी व्रत मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु के दस अवतारों की स्मृति में किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि के दशावतारों का पूजन, कथा श्रवण और व्रत करने से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से संसारिक कष्टों, रोग-शोक और बाधाओं को दूर करने वाला माना गया है।
व्रत विधि: इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। शंख, चक्र, गदा और पद्म से सुसज्जित श्रीविष्णु का पूजन करें। दशावतार के प्रतीक रूपों का स्मरण करें। फल, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य अर्पित करें। व्रत कथा का श्रवण करें और अंत में भगवान विष्णु से क्षमा प्रार्थना करें।
दशावतार दशमी व्रत कथा : एक समय की बात है, सृष्टि के प्रारंभ में असुरों का अत्याचार बढ़ गया। वे देवताओं को पराजित कर तीनों लोकों पर अधिकार करने लगे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने कहा, "जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं विभिन्न अवतार लेकर संसार का उद्धार करूंगा।"
इसी प्रतिज्ञा के अनुसार भगवान श्रीहरि ने अलग-अलग युगों और समय में दस अवतार लेकर पृथ्वी का भार उतारा और धर्म की रक्षा की। इस कथा में उन्हीं अवतारों का स्मरण किया जाता है।
1. मत्स्य अवतार : प्राचीन काल में जब प्रलय का समय आया, तब सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो गई। उस समय राजा सत्यव्रत तपस्या कर रहे थे। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर राजा से कहा, "हे राजन! सात ऋषियों को और जीवों के बीज को नौका में बैठाकर सुरक्षित स्थान तक ले चलो।" मत्स्य रूपी भगवान ने नौका को अपनी सींग से बांधकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया और वेदों की रक्षा की।
2. कूर्म अवतार : देवता और दैत्य जब समुद्र मंथन कर अमृत निकालने लगे, तब मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया। लेकिन वह डूबने लगा। तब भगवान विष्णु कूर्म (कछुआ) रूप में समुद्र में गए और अपनी पीठ पर पर्वत को स्थिर कर दिया। इस प्रकार समुद्र मंथन से अमृत निकला।
3. वराह अवतार : एक बार असुर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को पाताल में ले जाकर छिपा दिया। तब भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप लेकर समुद्र में प्रवेश किया, हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को अपनी दाँतों पर उठाकर जल से बाहर निकाला।
4. नरसिंह अवतार : हिरण्यकशिपु नामक असुर ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न दिन में मरेगा, न रात में, न मनुष्य से, न पशु से, न धरती पर, न आकाश में। उसने अत्याचार बढ़ा दिए। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने उसे मारना चाहा। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह (आधा मनुष्य, आधा सिंह) रूप में प्रकट होकर संध्या समय खंभे से निकले और अपनी गोद पर हिरण्यकशिपु का वध किया।
5. वामन अवतार : बलि नामक असुर राजा ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने वामन (बौना ब्राह्मण) रूप में जन्म लिया। बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। पहले पग से आकाश, दूसरे से पृथ्वी नापी और तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। भगवान ने उसे पाताल में भेज दिया और धर्म की रक्षा की।
6. परशुराम अवतार : हजारों वर्षों पूर्व क्षत्रियों ने अधर्म करना शुरू किया। तब भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लेकर 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया और ब्राह्मणों की रक्षा की।
7. श्रीराम अवतार : त्रेता युग में रावण नामक राक्षस ने अत्याचार बढ़ाया। तब भगवान विष्णु ने राम रूप में जन्म लिया। उन्होंने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
8. श्रीकृष्ण अवतार : द्वापर युग में कंस और अन्य अधर्मी राजाओं का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया। उन्होंने महाभारत युद्ध में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया और धर्म की रक्षा की।
9. बुद्ध अवतार : कलियुग के प्रारंभ में भगवान ने बुद्ध रूप में अवतार लेकर अहिंसा और करुणा का संदेश दिया, जिससे संसार में शांति स्थापित हुई।
10. कल्कि अवतार (भावी)
कलियुग के अंत में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश करेंगे और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। इस प्रकार दशावतारों की कथा सुनने और स्मरण करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
जो श्रद्धा से इस व्रत को करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है। उसके जीवन में धन, ऐश्वर्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।