कहानी: उलटे रास्ते...

लेखक: विनोद कुमार झा 

गाँव की कच्ची पगडंडियों पर दौड़ते हुए सपनों के कदमों की आवाज़ अलग ही होती है। वही आवाज़ थी जो अभिनव के पैरों से निकल रही थी। मिट्टी से सने जूते, हाथ में पुरानी किताबों का पुलिंदा और आँखों में शहर तक पहुँचने का सपना। लेकिन गाँव की ज़िंदगी आसान नहीं थी। खेतों की हरियाली जितनी सुंदर लगती थी, उतनी ही मुश्किल थी उस हरियाली को सींचने वालों की कहानी। अभिनव ने बचपन से यही सीखा था कि मेहनत ही इंसान को पहचान देती है। मगर क्या मेहनत हमेशा सही राह दिखाती है, या कभी-कभी इंसान उलटे रास्तों पर भी चल पड़ता है?

उसी गाँव में रहती थी नैना। चेहरे पर सादगी और आँखों में पढ़ाई की चमक। उसके लिए किताबें सिर्फ ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि समाज को बदलने का हथियार थीं। नैना का सपना था कि वह अपने गाँव की लड़कियों को पढ़ाए, उन्हें यह एहसास दिलाए कि सपने सिर्फ शहरों के लिए नहीं होते। पर गाँव की तंग गलियों में औरतों के लिए सपनों का रास्ता हमेशा सीधा नहीं होता। उन्हें उलटे रास्तों से होकर ही मंज़िल तक जाना पड़ता है। नैना का जीवन भी कुछ ऐसा ही था संघर्ष, ताने, और फिर भी उम्मीद।

अभिनव और नैना दोनों का मिलना एक संयोग था, लेकिन उनका रिश्ता भाग्य की लकीरों से लिखा गया था। स्कूल के दिनों में शुरू हुई उनकी दोस्ती समय के साथ गहरी होती गई। पर उसी दौरान उनकी ज़िंदगी में आया आदित्य अभिनव का सबसे क़रीबी दोस्त। आदित्य पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन हालात ने उसे ग़लत रास्ते की ओर मोड़ दिया। गाँव में बेरोज़गारी और पैसों की भूख ने उसे ऐसे रास्ते पर पहुँचा दिया जहाँ से लौटना आसान नहीं था।

कहानी यहीं से शुरू होती है सपनों, संघर्ष और उलझनों की कहानी। जहाँ शिक्षा और प्रेम दोनों के लिए रास्ते आसान नहीं हैं। जहाँ गाँव की सोच और शहर की चकाचौंध के बीच इंसान अपने ही फैसलों में उलझ जाता है। क्या अभिनव अपने सपनों को पूरा कर पाएगा? क्या नैना अपने मिशन में सफल होगी? और आदित्य क्या वह अपनी मंज़िल तक पहुँचेगा या उलटे रास्तों में खो जाएगा? यह कहानी उन सवालों के जवाब तलाशेगी, जो हर छोटे गाँव से बड़े सपनों की ओर भागते नौजवानों के मन में उठते हैं।

अभिनव का गाँव, गंगापुर, उन गाँवों में से था जहाँ सुबह सूरज की किरणें पहले खेतों को जगाती थीं, फिर इंसानों को। कच्ची गलियों में बैलगाड़ियों की खट-खट, कुएँ पर औरतों की हँसी, और चाय की दुकानों पर राजनीति की गरमी यही इस गाँव की पहचान थी।

अभिनव का बचपन इन्हीं गलियों में बीता था। उसके पिता छोटे किसान थे। बुआई और कटाई के मौसम में ही घर में कुछ पैसे आते, बाकी समय कर्ज़ का बोझ रहता। माँ दिन-रात मेहनत करतीं। अभिनव को पढ़ाई का शौक बचपन से था, लेकिन गाँव के स्कूल की हालत खराब थी। कभी शिक्षक आते, कभी नहीं।

उसी स्कूल में नैना भी पढ़ती थी। नैना की आँखों में सपनों की चमक थी। उसका सपना था “गाँव की हर लड़की पढ़े, किसी की ज़िंदगी सिर्फ चूल्हे तक न सिमटे।” नैना के पिता गाँव के प्रधान रहे थे, लेकिन अब राजनीति से दूर हो चुके थे। वे चाहते थे कि नैना जल्दी शादी कर ले। पर नैना कहती,“बाबा, शादी तो हो जाएगी, पहले पढ़ाई पूरी कर लूँ।”उसकी आवाज़ में इतना विश्वास था कि पिता भी चुप हो जाते।

अभिनव और नैना की दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होती गई। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए, लेकिन दिल की डोर जुड़ी रही।

आदित्य का घर अभिनव के घर से थोड़ी दूरी पर था। आदित्य पढ़ाई में तेज था। इंटर तक उसने अच्छे नंबर लाए थे। लेकिन उसके घर की हालत और भी खराब थी। पिता खेत में मज़दूरी करते, माँ दूसरों के घर काम करतीं। आदित्य का सपना था कि वह नौकरी करे, परिवार की गरीबी दूर करे।

अभिनव, नैना और आदित्य तीनों अक्सर गाँव की पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर सपनों की बातें करते।

एक दिन नैना हँसते हुए कहती,“हम सब शहर चलेंगे, पढ़ेंगे, और अपने गाँव का नाम रोशन करेंगे।”

अभिनव मुस्कुराकर जवाब देता,“हाँ, और जब वापस आएँगे तो गाँव में एक बड़ा स्कूल खोलेंगे।”आदित्य चुप रहता। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान होती, लेकिन आँखों में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं।

अभिनव ने शहर जाने का फैसला किया। उसने ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। पिता ने खेत बेचकर उसकी फीस का इंतजाम किया। शहर की चकाचौंध ने उसे चौंका दिया। हॉस्टल का किराया, किताबों का खर्च, सबकुछ महँगा था। अभिनव ट्यूशन पढ़ाने लगा। दिन में क्लास, रात में बच्चों को पढ़ाना। उसकी आँखों में नींद कम, सपने ज़्यादा थे।

नैना भी पढ़ाई के लिए शहर आई, लेकिन उसने बीएड कोर्स चुना। उसका सपना था गाँव में लड़कियों के लिए स्कूल खोलना। दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं। कभी कॉलेज की बातें, कभी गाँव की यादें। धीरे-धीरे यह दोस्ती प्यार में बदलने लगी।

 उधर आदित्य गाँव में ही रह गया। नौकरी नहीं मिली। पिता की तबीयत बिगड़ गई। घर में खाने तक के लाले पड़ गए। ऐसे में कुछ गलत लोग उसके जीवन में आए।

पहले उन्होंने उसे छोटे-मोटे काम दिए चोरी का सामान इधर-उधर पहुँचाना। आदित्य को पैसे मिले, तो उसका मन डगमगा गया। उसने सोचा, “इतनी मेहनत पढ़ाई में की, कुछ नहीं मिला। ये लोग बिना पढ़ाई के पैसे कमा रहे हैं। मैं क्यों नहीं?” धीरे-धीरे वह अपराध की दुनिया में उतर गया। अब उसके पास बाइक थी, जेब में पैसे, और आँखों में झूठी चमक।

 एक शाम नैना ने अभिनव से कहा,“अभिनव, जब पढ़ाई पूरी हो जाए तो गाँव लौट चलेंगे। मैं वहाँ लड़कियों को पढ़ाऊँगी, और तू बच्चों को।”

अभिनव हँसते हुए बोला,“हाँ नैना, सपना तो यही है। लेकिन पहले मुझे नौकरी चाहिए। मैं तुझे बिना मजबूती के शादी का वादा नहीं कर सकता।” नैना मुस्कुरा दी,“मुझे वादे नहीं, तेरी सच्चाई चाहिए।”दोनों की मोहब्बत गहरी थी, लेकिन दूरी ने मुश्किलें बढ़ा दी थीं।

एक दिन नैना का फोन आया। उसकी आवाज़ काँप रही थी,“ अभिनव! आदित्य फँस गया है। पुलिस उसके पीछे है। सुना है उसने हथियारों का काम शुरू कर दिया है।”

अभिनव के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। “क्या? आदित्य? ये कैसे हो गया?” उसने तुरंत गाँव का रुख किया। आदित्य से मिला।“ आदित्य! तू ये क्या कर रहा है? तूने ये रास्ता क्यों चुना?”

आदित्य ने ठंडी हँसी हँसते हुए कहा,“क्योंकि सही रास्ते ने मुझे कुछ नहीं दिया। ये उलटे रास्ते ही मुझे ज़िंदा रख सकते थे।”

अभिनव ने गुस्से से कहा,“ ये रास्ते तुझे मौत देंगे, आदित्य।”आदित्य ने आँखें फेर लीं। कुछ दिनों बाद खबर आई आदित्य पुलिस मुठभेड़ में घायल हो गया। अस्पताल में उसकी हालत नाजुक थी। अभिनव और नैना दौड़े।

आदित्य ने काँपते होंठों से कहा,“अभिनव... तू सही था... उलटे रास्ते हमेशा बर्बादी लाते हैं। नैना का ख्याल रखना...”उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं।

अभिनव और नैना दोनों की आँखों में आँसू थे। अभिनव ने मन ही मन कसम खाई,“ अब गाँव का कोई भी लड़का आदित्य नहीं बनेगा। मैं लौटूँगा, स्कूल खोलूँगा, सबको सही रास्ता दिखाऊँगा।”नैना ने उसके कंधे पर हाथ रखा,“हम दोनों मिलकर यह सपना पूरा करेंगे।”

कभी-कभी ज़िंदगी की मुश्किलें इंसान को उलटे रास्तों पर धकेल देती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि सही रास्ता चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, वही मंज़िल तक पहुँचाता है। आदित्य की कहानी एक सबक थी कि शिक्षा और सही सोच ही इंसान को अंधेरे से बचा सकती है।

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