-सी.पी. राधाकृष्णन की जीत ने एनडीए की संगठित शक्ति को दिखाया, जबकि विपक्षी एकजुटता दावों के विपरीत बिखरी नज़र आई
भारत के लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति का पद न केवल औपचारिक गरिमा का प्रतीक है, बल्कि वह राज्यसभा के सभापति के रूप में संसदीय परंपराओं की रक्षा और संचालन का दायित्व भी निभाता है। मंगलवार को सम्पन्न हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार एवं महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे सी.पी. राधाकृष्णन ने विपक्ष के उम्मीदवार न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुदर्शन रेड्डी को पराजित कर यह पद हासिल किया। राधाकृष्णन को प्रथम वरीयता के 452 वोट प्राप्त हुए, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार को 300 वोट ही मिल सके।
यह परिणाम साफ तौर पर सत्ता पक्ष की ताकत को दर्शाता है, किंतु इसमें विपक्ष की आंतरिक कमजोरियां भी उजागर होती हैं। कांग्रेस ने दावा किया था कि INDIA गठबंधन के पास 315 सांसदों का समर्थन है, लेकिन अंततः विपक्षी उम्मीदवार को 15 वोट कम मिले। यह न केवल विपक्षी एकता की सच्चाई बयां करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अंदरूनी मतभेद किस प्रकार निर्णायक क्षणों में सामने आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त बीआरएस और बीजेडी जैसे दलों का चुनाव से दूरी बनाना, तथा शिरोमणि अकाली दल का बाढ़ की स्थिति का हवाला देते हुए मतदान से परहेज़ करना, विपक्ष की मजबूती पर और सवाल खड़े करता है।
सुदर्शन रेड्डी का हार स्वीकार करते हुए लोकतांत्रिक शालीनता का परिचय देना सराहनीय है। उनका वक्तव्य इस बात की पुष्टि करता है कि हार-जीत लोकतंत्र का स्वाभाविक हिस्सा है और संस्थानों की मर्यादा सर्वोपरि है। विपक्षी खेमे को यह समझना होगा कि यदि भविष्य में मजबूत चुनौती पेश करनी है तो केवल दावों और नारों से काम नहीं चलेगा, बल्कि ठोस रणनीति और विश्वास पैदा करने वाली एकजुटता आवश्यक है।
नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन अब राज्यसभा के संचालन और संसदीय परंपराओं की रक्षा की जिम्मेदारी संभालेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन साधने में कितनी कुशलता दिखाते हैं। आने वाले समय में जब संसद के भीतर सरकार और विपक्ष आमने-सामने होंगे, तो सभापति के रूप में उनकी भूमिका और भी निर्णायक साबित होगी।
उपराष्ट्रपति चुनाव का यह परिणाम सत्ता पक्ष की मजबूती और विपक्ष की विखंडित स्थिति का दर्पण है। यह लोकतंत्र की परिपक्वता भी दर्शाता है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सभी दलों ने शांतिपूर्ण और पारदर्शी तरीके से इस प्रक्रिया को पूरा किया। अब देश की अपेक्षा है कि नया उपराष्ट्रपति अपने दायित्वों का निर्वहन निष्पक्षता, धैर्य और संवैधानिक गरिमा के अनुरूप करेंगे।
- संपादक