आस्था और श्रद्धा में डूबा छठ महापर्व संपन्न

विनोद कुमार झा

सहरसा ( चैनपुर)/पटना/दिल्ली/नोएडा। लोक आस्था का महापर्व छठ मंगलवार की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के अंतिम दिन व्रतियों ने सूर्योदय से पूर्व ही नदियों, तालाबों, पोखरों और कृत्रिम घाटों पर पहुंचकर भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया। जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्य की पहली किरण फूटी, पूरा वातावरण “छठ मइया की जय” के जयघोष से गुंजायमान हो उठा। श्रद्धा, भक्ति और समर्पण की मिसाल बने इस पर्व ने एक बार फिर लोक संस्कृति की अमिट छाप छोड़ दी।

सुबह से ही व्रतियों के चेहरे पर विशेष आभा दिखाई दे रही थी। महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में सजे-संवरे होकर भगवान सूर्य को दूध, जल और विभिन्न प्रसादों के साथ अर्घ्य दिया। ठेकुआ, केला, नारियल, गन्ना, सेब और अन्य मौसमी फलों से सजे दऊरा (बांस की टोकरी) ने पूरे वातावरण को पावन बना दिया। भक्तों ने भगवान सूर्य से परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान की दीर्घायु की कामना की।

देश से लेकर विदेशों तक इस महापर्व की झलक देखने को मिली। दिल्ली, मुंबई, पटना, सहरसा, दरभंगा, रांची, लखनऊ से लेकर दुबई, कतर, सिंगापुर, अमेरिका तक बसे प्रवासी भारतीयों ने भी पारंपरिक रीति से छठ मनाया। जहां-जहां बिहार और पूर्वांचल के लोग बसे हैं, वहां-वहां घाटों पर लोक गीतों और भक्ति संगीत की गूंज सुनाई दी  “कांचे ही बांस के बहंगिया, बहके दोनू लचकत जाए” जैसे गीतों ने वातावरण को भावपूर्ण बना दिया।

इससे पहले सोमवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान भी घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। जलाशयों को फूलों और दीपों से सजाया गया था। पुलिस प्रशासन और स्थानीय लोगों के सहयोग से सुरक्षा और व्यवस्था के विशेष इंतज़ाम किए गए थे। कई जगह एनडीआरएफ और गोताखोरों की टीम भी तैनात रही ताकि श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो।

छठ व्रत का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा पर्व भी है। सूर्य उपासना के साथ ही यह जल, वायु और माटी के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है। महिलाएं पूरे विधि-विधान और नियमों के साथ यह कठिन व्रत करती हैं, जिसमें 36 घंटे का निर्जल उपवास शामिल होता है। यही कारण है कि छठ व्रती को समाज में विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

सूर्योदय के बाद व्रतियों ने घर लौटकर ‘पारण’ किया  यानि पूजा सम्पन्न होने के बाद व्रत खोला। परिवार के सदस्यों ने प्रसाद ग्रहण कर एक-दूसरे को बधाई दी और कहा कि “छठ मइया सबका मंगल करें।”

इस तरह लोक आस्था का महापर्व छठ श्रद्धा, संयम और समर्पण की मिसाल पेश करते हुए संपन्न हुआ। घाटों पर गूंजते लोकगीत, जलते दीपक और उदीयमान सूर्य की स्वर्णिम किरणों के साथ एक और वर्ष के लिए छठ मइया से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्रार्थनाएं की गईं।

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