लोक आस्था का महापर्व छठ : सज गए घाट, दमक उठा पूर्वांचल

विनोद कुमार झा

कांचे ही बांस के बहंगिया लचिकत जाए…” जैसे पारंपरिक गीतों की मधुर धुनों से आज पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा है। गली-गली, चौक-चौराहे, और घाटों तक हर ओर छठ मइया की जयकार गूंज रही है। लोक आस्था का महापर्व छठ आज अपने दूसरे महत्वपूर्ण पड़ाव खरना के साथ पूरे देश और विदेशों में श्रद्धा, आस्था और शुद्धता के साथ मनाया जा रहा है।

छठ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह पूर्वांचल की सांस्कृतिक आत्मा है। इस व्रत में व्रती 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखकर सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। आज खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखने के बाद शाम को गुड़ और चावल की खीर, रोटी और केला का प्रसाद बनाकर अर्घ्य देते हैं। इसके बाद ही परिवार और पड़ोसी मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। यही प्रसाद अगले दिन की सुबह और शाम को अर्घ्य के समय उपयोग में आता है।

सूर्यास्त के साथ ही गंगा, कोसी, कमला, घाघरा, गंडक जैसी नदियों के किनारे बने छठ घाट दीपमालाओं से जगमगा उठे हैं। गांव से लेकर शहर तक, छोटे तालाबों से लेकर कृत्रिम जलाशयों तक, हर जगह भक्तों ने स्वच्छता और सजावट का विशेष ध्यान रखा है। बांस के बने सूप, दौरा, और दउरा में फल-फूल, ठेकुआ, और नारियल रखे गए हैं। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में, माथे पर सिंदूर की लकीर बढ़ाए, नदियों की ओर जा रही हैं। उनकी सादगी और समर्पण इस पर्व की पवित्रता को और भी ऊंचा बना देता है।

छठ अब केवल बिहार, झारखंड या पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहा। आज अमेरिका, कनाडा, दुबई, मॉरीशस, नेपाल, फिजी और लंदन जैसे देशों में भी पूर्वांचली समुदाय ने छठ घाट तैयार किए हैं। वहाँ भी “उठू हे सूरज देव, अरघ लेब तोहर...” की आवाज़ें गूंज रही हैं। यह दिखाता है कि चाहे कोई कहीं भी हो, अपनी मिट्टी और संस्कृति से जुड़ाव कभी खत्म नहीं होता।

छठ व्रत का सबसे सुंदर पहलू है  इसमें दिखावा नहीं, बल्कि अनुशासन और निष्ठा का महत्व है। व्रती अपने घर की स्वच्छता से लेकर प्रसाद की पवित्रता तक, हर नियम का कठोर पालन करते हैं। यहां तक कि प्रसाद बनाने वाले स्थान को भी मंदिर जैसा पवित्र माना जाता है। खरना के आज सोमवार की शाम को व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य देंगे। उसी समय घाटों पर भक्ति, संगीत और दीपमालाओं का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। दूसरे दिन प्रातःकाल उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व संपन्न होगा।

छठ महापर्व केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि परिश्रम, शुद्धता, आत्मनियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्ची भक्ति वही है जो प्रकृति और समाज दोनों के प्रति प्रेम और सम्मान के साथ की जाए। आज जब सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ रहा है, घाटों पर बजते गीत ,“कांचे ही बांस के बहंगिया लचिकत जाए...”हम सबको यह एहसास कराते हैं कि आस्था का यह उजाला अंधकार को भी रोशन कर सकता है।

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