पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

मां चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजित होती हैं। इनका स्वरूप सौम्य होने के साथ-साथ अत्यंत वीर भी है। इनके मस्तक पर आधा चंद्र विराजमान होता है और गले में घंटा धारण है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

पिण्डज-प्रवर-आरूढा : "शक्तिशाली सिंह पर विराजमान देवी" (मां चंद्रघंटा सिंह की सवारी करती हैं और यह उनके वीर एवं रक्षक रूप को दर्शाता है।)

चण्ड-कोप-अस्त्रकैः-युता : "क्रोध में प्रज्वलित होकर अनेक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित" (अर्थात वे दुष्टों का संहार करने हेतु दिव्य अस्त्रों से युक्त रहती हैं।)

प्रसादं तनुते मह्यं :  "अपने भक्तों पर कृपा और आशीर्वाद बरसाती हैं" (मां चंद्रघंटा का स्मरण करने से भय और दुख दूर होकर शांति व सुख प्राप्त होता है।)

चंद्रघंटेति विश्रुता : "जो देवी चंद्रघंटा नाम से प्रसिद्ध हैं"(चंद्रमा और घंटा के संयोग से उनके रूप की पहचान होती है, जिससे साधक को दिव्य आभा और अलौकिक शक्ति मिलती है।)

मां चंद्रघंटा सिंह पर आरूढ़ होकर, क्रोध में दुष्टों का नाश करने वाले अस्त्र-शस्त्र धारण किए रहती हैं। वे अपने भक्तों को निर्भय बनाती हैं, संकट से मुक्त करती हैं और प्रसन्न होकर उन्हें सुख, शांति, समृद्धि और विजय प्रदान करती हैं।

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