वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए सात वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है। जब 2017 में इसे “एक राष्ट्र, एक कर” के लक्ष्य के साथ लागू किया गया था, तब इसे भारतीय कर व्यवस्था का सबसे बड़ा सुधार माना गया। समय के साथ इसकी जटिलताओं और व्यावहारिक कठिनाइयों ने न केवल व्यापारियों, बल्कि आम उपभोक्ताओं तक को प्रभावित किया। ऐसे में जीएसटी संशोधन की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालिया विचार और दृष्टिकोण यह संकेत देते हैं कि सरकार जनता के हित में व्यवस्था को और पारदर्शी, सरल व उपयोगी बनाने की दिशा में गंभीर है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि कर प्रणाली जनता पर बोझ डालने के लिए नहीं, बल्कि उसे राहत देने और विकास को गति देने के लिए होती है। यही कारण है कि नए संशोधनों में छोटे व मध्यम उद्योगों को राहत देने, डिजिटल अनुपालन को आसान बनाने और कर दरों की स्पष्टता लाने पर जोर दिया जा रहा है। कर चोरी रोकने के उपायों के साथ-साथ ईमानदार करदाताओं के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी इन बदलावों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। 22 सितंबर को जीएसटी परिषद द्वारा कुछ आवश्यक वस्तुओं पर से कर का बोझ हटाने का निर्णय लिया गया। यह कदम जनता के सीधे हित में है। दवाइयों, रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुओं और कुछ स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों पर से कर हटने से न केवल आम आदमी की जेब पर बोझ कम होगा, बल्कि गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत की अनुभूति भी होगी। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इस बदलाव का सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि रोज़ाना उपयोग में आने वाले सामान की कीमतों में कमी आएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से दोहरा लाभ होगा—एक ओर जनता को राहत मिलेगी, दूसरी ओर व्यापार में पारदर्शिता बढ़ेगी। जब कर कम या शून्य होगा, तो काले बाज़ार की प्रवृत्ति घटेगी और वस्तुएं सही दाम पर उपभोक्ता तक पहुंचेंगी। प्रधानमंत्री मोदी का यह विचार कि “कर व्यवस्था जनता का उपचार होनी चाहिए, न कि उसकी पीड़ा का कारण” इस निर्णय में प्रत्यक्ष रूप से झलकता है। इस कदम से जनता को प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ मिलेगा। महंगाई से जूझ रहे परिवारों को जब यह राहत दिखेगी तो उनकी क्रयशक्ति बढ़ेगी। ग्रामीण उपभोक्ता, जो हर छोटे खर्च पर विचार करते हैं, उनके लिए यह निर्णय जीवनयापन आसान बनाएगा। मध्यम वर्ग, जो जीएसटी के लागू होने के बाद अक्सर बढ़ती कीमतों से असंतुष्ट रहा, अब इस सुधार से राहत महसूस करेगा। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं और दवाइयों की कीमत घटने से समाज के कमजोर वर्गों तक स्वास्थ्य सुविधाएं अधिक सहजता से पहुंच पाएंगी। यह केवल कर सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है।
दरअसल, कर नीति तभी सफल मानी जाती है जब वह दोहरे उद्देश्य साधे राजस्व संग्रह और जनसंतोष। यदि जनता को लगे कि कर चुकाने के बाद उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत ढांचे जैसी सुविधाओं में सुधार दिखाई देता है, तो वह इस व्यवस्था को सहज स्वीकार करती है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बिंदु को रेखांकित करते हुए कहा है कि जीएसटी सुधार केवल वित्तीय ढांचे का उपचार नहीं है, बल्कि जनता के जीवन में सुगमता लाने का उपचार भी है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से है। ऐसे समय में कर व्यवस्था में सुधार न केवल निवेश आकर्षित करने के लिए आवश्यक है, बल्कि रोजगार और उत्पादन को भी बढ़ावा देने वाला है। जीएसटी में होने वाले ये संशोधन देश के छोटे दुकानदार से लेकर बड़े उद्योगपति तक, सभी के लिए समान अवसरों का निर्माण करेंगे।
अंततः यह कहा जा सकता है कि 22 सितंबर को कुछ वस्तुओं से जीएसटी हटाना केवल कर सुधार नहीं, बल्कि आम जनता को सीधे राहत देने वाला निर्णय है। प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण यह है कि कर नीति जनता पर बोझ कम करे और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाए। यह कदम उसी सोच की पुष्टि करता है। यदि आने वाले समय में भी कर सुधारों की यही दिशा बनी रही, तो जीएसटी सचमुच जनता का उपचार सिद्ध होगा और देश की अर्थव्यवस्था को नई मजबूती प्रदान करेगा।