विनोद कुमार झा
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और भक्तों के उत्साह का अद्भुत संगम यदि किसी दिन चरम पर देखने को मिलता है, तो वह दिन है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति, आस्था और अध्यात्म का महापर्व है। विशेषकर मथुरा, वृंदावन और गोकुल में यह उत्सव एक अलौकिक स्वरूप ले लेता है, मानो धरती पर साक्षात् द्वापर युग उतर आया हो।
मथुरा की मिट्टी में श्रीकृष्ण का बचपन, उनकी बाल लीलाएं, रास रसमय कथा और भक्तों की अनंत श्रद्धा गहरे तक रची-बसी है। कहा जाता है कि यहां के कण-कण में श्रीकृष्ण का वास है। ब्रज की हवाएं भी राधा-कृष्ण का नाम स्मरण किए बिना आगे नहीं बढ़तीं। जब भोर की पहली किरणें सूरज के साथ मथुरा की धरती को स्पर्श करती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो नारायण स्वयं भक्तों को दर्शन देने आए हों।
शाम के समय जब सूरज अस्ताचल की ओर बढ़ता है, तो उसकी लाली ऐसी लगती है मानो भगवान श्रीकृष्ण के चरण पादुका को पखार रही हो। हर गली, हर चौपाल, हर मंदिर राधा-कृष्ण के भजन और झांकियों से गुंजायमान हो उठते हैं। मंदिरों में झूला झूलते नंदलाल की प्रतिमाएं, झांकियों में सजती गोकुल की गलियां, और भक्तों की आंखों में छलकता प्रेम ये सभी मिलकर जन्माष्टमी को अविस्मरणीय बना देते हैं।
अनेक धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि मथुरा की दिव्यता युगों से अक्षुण्ण है। महाभारत और भागवत पुराण से लेकर ब्रज के लोकगीतों तक, हर जगह श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान मिलता है। समय बदलता रहा, युग परिवर्तित होते रहे, लेकिन मथुरा की पवित्रता, उसकी आस्था और उसका आध्यात्मिक आकर्षण आज भी वैसा ही है जैसा द्वापर युग में था।
जन्माष्टमी की रात मथुरा में मानो एक दिव्य ज्योति उतरती है। घंटों और शंखनाद से वातावरण पवित्र हो उठता है। आधी रात को जब घड़ी भगवान के जन्म की बेला बताती है, तो मंदिरों के पट खुलते हैं और नन्हे कान्हा के दर्शन के लिए उमड़ा जनसागर “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” के जयकारों से आसमान गूंजा देता है। यह क्षण भक्तों के लिए सिर्फ दर्शन का नहीं, बल्कि उनके हृदय में बसे आराध्य से आत्मिक मिलन का होता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हमें केवल उत्सव मनाने का अवसर नहीं देती, बल्कि यह सिखाती है कि धर्म, प्रेम और सत्य ही जीवन के वास्तविक आधार हैं। जैसे श्रीकृष्ण ने अन्याय के विरुद्ध धर्म की स्थापना की, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सत्य और न्याय का पालन करना चाहिए।
मथुरा में जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह उन अनगिनत भावनाओं का उत्सव है जो भक्त और भगवान के बीच प्रेम के अमिट बंधन को जीवंत करती हैं। यही कारण है कि यह पर्व सदियों से हमारे हृदय और संस्कृति में उतना ही पवित्र और जीवंत है, जितना द्वापर युग में था।