चौंकिए नहीं, हकीकत है! पुष्कर मेले में एक भैंसा 23 करोड़ रुपये का और एक घोड़ा 15 करोड़ रुपये का‘अनमोल’ और ‘शाहबान’
राजस्थान के पुष्कर में चल रहे वार्षिक पशु मेले में इस बार जो नज़ारा देखने को मिल रहा है, उसने मानव मूल्य की परिभाषा को जैसे आईना दिखा दिया है। यहां ऐसे पशु मौजूद हैं जिनकी कीमत सुनकर किसी का भी सिर घूम जाए एक भैंसा 23 करोड़ रुपये का और एक घोड़ा 15 करोड़ रुपये का! हैरानी की बात यह है कि यह आंकड़े केवल चर्चा नहीं, बल्कि दर्जनों खरीदारों के प्रस्तावों और प्रमाणित रिकॉर्ड का हिस्सा हैं। वहीं, दूसरी ओर मनुष्य की श्रम, ईमानदारी और मानवता कौड़ी के भाव बिकती नज़र आती है। सवाल उठता है आखिर कौन ज़्यादा कीमती है, मनुष्य या उसका लालच?
पुष्कर का मेला केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की पारंपरिक पशुपालन संस्कृति की जीवंत झलक है। यह मेला न सिर्फ राजस्थान का, बल्कि पूरे देश का गौरव है। राजस्थान पर्यटन विभाग के अनुसार, इस वर्ष का पुष्कर मेला 30 अक्टूबर से 5 नवंबर तक आयोजित किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश से हजारों पशुपालक, व्यापारी और दर्शक उमड़ रहे हैं।
अब तक 4,300 से अधिक पशुओं का पंजीकरण हो चुका है, जिनमें 3,028 घोड़े और 1,306 ऊंट शामिल हैं। सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनज़र 2,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। यह मेला अब केवल व्यापार का नहीं, बल्कि पशु-प्रेम, शोहरत और प्रतिस्पर्धा का प्रतीक बन चुका है।
इस बार के मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है 1500 किलोग्राम वजनी भैंसा ‘अनमोल’, जिसकी कीमत 23 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसके मालिक पलमिंद्र गिल बताते हैं कि उन्होंने इसे “राजाओं की तरह पाला है” “उसे रोज़ दूध, देसी घी, बेसन, अंडे, तेल और सूखे मेवे खिलाए जाते हैं। हर दिन उसकी खुराक पर लगभग 1,500 रुपये खर्च होते हैं।”
दूसरा सितारा है ‘शाहबान’, ढाई साल का मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा, जिसके मालिक गैरी गिल हैं। शाहबान अब तक कई राष्ट्रीय स्तर के शो जीत चुका है और इसकी ‘कवरिंग फीस’ दो लाख रुपये तय है। गैरी गिल का कहना है, “हम इसके 15 करोड़ रुपये मांग रहे हैं, जबकि नौ करोड़ रुपये तक के प्रस्ताव पहले ही मिल चुके हैं।”
मेले में मौजूद एक और अनुभवी मारवाड़ी घोड़ा ‘बादान’ के मालिक का दावा है कि उसका घोड़ा अब तक 285 प्रजनन करा चुका है और इसके लिए 11 करोड़ रुपये तक की बोली लग चुकी है। वहीं जयपुर के अभिनव तिवारी अपने साथ 15 से अधिक गायें लेकर आए हैं, जिनमें एक गाय मात्र 16 इंच ऊंची है मेले की सबसे छोटी गाय के रूप में प्रसिद्ध।
पुष्कर मेला केवल आर्थिक या मनोरंजन का मंच नहीं है; यह प्रशासनिक दृष्टि से भी एक बड़ी चुनौती है। पुलिस उपाधीक्षक रामचंद्र चौधरी ने बताया कि सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
डॉ. सुनील पिया, संयुक्त निदेशक (पशुपालन), ने बताया कि “सभी पशुओं का पंजीकरण, चिकित्सीय जांच और टैगिंग अनिवार्य की गई है।” पशुओं के प्रवेश मार्गों पर विशेष चौकियां भी स्थापित की गई हैं ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो।
यह दृश्य निश्चित रूप से रोमांचक है कि देश में ऐसे पशु हैं जो करोड़ों के मोल बिकते हैं पर यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब एक घोड़ा या भैंसा करोड़ों में बिक सकता है, तो वही मनुष्य जो इन्हें पालता-पोसता है, गरीबी, कर्ज़ और बेरोज़गारी के जाल में क्यों जकड़ा रहता है?
कभी-कभी लगता है जैसे समाज ने मेहनतकश इंसान की कीमत भूल गई है। पशु जब “ब्रांड” बन जाते हैं, तो उनके पालक “अनाम” रह जाते हैं। यह वही भारत है जहां किसानों की आत्महत्याओं की खबरें भी आती हैं और यही वह देश है जहां एक पशु की कीमत पूरी पंचायत के बजट से भी अधिक हो जाती है।
पुष्कर मेला हमारी विरासत का प्रतीक है, लेकिन इस बार यह सवाल भी खड़ा करता है — क्या पशुपालन अब केवल प्रदर्शन और व्यापार का माध्यम रह गया है? या फिर यह भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जड़ों में बसती मेहनत, लगन और समर्पण की कहानी है? यह तय करना पाठकों पर है कि यह मेला “गौरव का प्रतीक” है या “मानव मूल्य के क्षरण” की कहानी। पर इतना निश्चित है पुष्कर का यह मेला एक बार फिर हमें सोचने पर विवश करता है कि आखिर असली “अनमोल” कौन है पशु, या मनुष्य?
पुष्कर का मेला परंपरा, परिश्रम और प्रतिष्ठा का संगम है। यहां करोड़ों के दाम पर बिकते पशु भले आकर्षण का केंद्र हों, लेकिन असली आकर्षण तो वह मेहनतकश हाथ हैं जिन्होंने इन्हें पालकर यहां तक पहुंचाया। शायद आने वाला समाज तभी सच्चे अर्थों में “अनमोल” कहलाएगा जब वह पशु नहीं, मनुष्य के परिश्रम का भी उतना ही मूल्य समझे।

