# Shri Krishna janmastami विशेष: राधे -राधे ... मीरा की भक्ति, राधा का प्यार और भगवान श्रीकृष्ण की लीला

विनोद कुमार झा

जब भी भक्ति, प्रेम और भगवान श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता है, तब तीन नाम अपने आप स्मरण में आ जाते हैं मीरा, राधा और स्वयं श्रीकृष्ण। मीरा की भक्ति अडिग, राधा का प्यार शाश्वत और श्रीकृष्ण की लीलाएं अनंत हैं। इन तीनों के भाव, मार्ग और अनुभव भले ही अलग दिखते हों, लेकिन उनकी आत्मा एक ही है, प्रेम रूपी ईश्वर से मिलन की तृष्णा

मीरा की भक्ति  अडिग और निष्कपट : राजमहल में जन्मी मीरा बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपना पति और जीवनसाथी मान चुकी थीं। जब महल की दीवारों के भीतर सांसारिक बंधन उन्हें रोकने लगे, तब भी उनकी आस्था में कोई कमी नहीं आई। मीरा का भजन, "मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई" केवल एक गीत नहीं, बल्कि उनके हृदय की पुकार थी।

मीरा ने सांसारिक सुख-वैभव, प्रतिष्ठा और यहाँ तक कि जीवन की परवाह भी नहीं की बस अपने श्याम के नाम में डूबी रहीं। विष का प्याला भी उन्हें नहीं डरा पाया, क्योंकि उनके लिए जीवन-मरण का अर्थ केवल कृष्ण से जुड़ना था। उनकी भक्ति सगुण प्रेम-भक्ति का उच्चतम उदाहरण है, जिसमें समर्पण पूर्ण और निस्वार्थ होता है। 

राधा का प्यार अनंत और अद्वितीय : राधा का प्रेम संसार के किसी भी सांसारिक प्रेम से परे है। यह प्रेम मिलन से अधिक विरह में खिलता है। राधा जानती थीं कि श्रीकृष्ण उनके पास सदा नहीं रहेंगे, लेकिन उन्होंने विरह को भी पूजा बना दिया।

उनका प्रेम आत्मा और परमात्मा का मिलन है जहाँ कोई अपेक्षा नहीं, कोई बंधन नहीं। राधा ने कभी कृष्ण से कुछ नहीं माँगा, बस स्वयं को उनके रंग में रंग दिया। यही कारण है कि श्रीकृष्ण ने भी कहा "राधा मेरे हृदय में और मैं राधा के हृदय में हूँ" 

भगवान श्रीकृष्ण की लीला  प्रेम और धर्म का अद्भुत संगम : श्रीकृष्ण की लीलाएं केवल मनोरंजन या कथा मात्र नहीं हैं, बल्कि उनमें जीवन के गूढ़ सत्य छिपे हैं। बाल्यावस्था में बांसुरी की मधुर धुन से गोपियों को मंत्रमुग्ध करना, रासलीला में प्रत्येक गोपी के साथ व्यक्तिगत रूप से होना, यह केवल चमत्कार नहीं यह प्रेम का सर्वव्यापी स्वरूप है।

महाभारत में उनका अर्जुन को दिया गया गीता-ज्ञान दर्शाता है कि कृष्ण केवल प्रेम के देवता नहीं, बल्कि धर्म, नीति और कर्तव्य के भी मार्गदर्शक हैं। 

तीनों का मिलन, भक्ति, प्रेम और लीला का त्रिवेणी संगम

मीरा की भक्ति ने हमें सिखाया कि आस्था के आगे दुनिया की ताकत भी छोटी है। राधा का प्रेम हमें बताता है कि सच्चा प्यार अपेक्षा-रहित होता है। और श्रीकृष्ण की लीलाएं सिखाती हैं कि प्रेम और धर्म एक साथ चल सकते हैं।

इन तीनों के मार्ग अलग दिखते हैं, परंतु गंतव्य एक ही है। ईश्वर से एकाकार होना। यही जीवन का परम सत्य है, जहाँ न भक्ति का अंत है, न प्रेम का, और न ही श्रीकृष्ण की लीलाओं का।

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