यह घटनाक्रम ऐसे समय में हो रहा है जब फरवरी 2022 से चल रहा रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया की अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन पर गहरा असर डाल चुका है। इस युद्ध का समाधान न केवल यूरोप और अमेरिका के लिए, बल्कि एशिया और विशेषकर भारत जैसे देशों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की विदेश नीति हमेशा संवाद और शांति के रास्ते को प्राथमिकता देती रही है। ऐसे में पुतिन-ट्रंप मुलाकात का समर्थन भारत के "वसुधैव कुटुंबकम" दृष्टिकोण का ही विस्तार है।
इस वार्ता से एक आर्थिक उम्मीद भी जुड़ी है। रूस से तेल खरीदने के चलते अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ में ढील मिल सकती है। यह राहत न केवल भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को मजबूती देगी, बल्कि भारतीय निर्यातकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त भी दिलाएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि युद्ध समाप्ति के साथ-साथ व्यापारिक बाधाओं के कम होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार होगा।
हालांकि, यह भी सच है कि यूक्रेन और रूस के बीच शांति समझौते की राह आसान नहीं होगी। यूक्रेन अपने भूभाग से समझौता करने को तैयार नहीं है, जबकि रूस पहले ही कब्जाए गए क्षेत्रों को अपने संघ में शामिल कर चुका है। ऐसे में ट्रंप-पुतिन मुलाकात केवल तब सार्थक होगी जब दोनों पक्ष यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाएं और स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
भारत के लिए यह अवसर दोहरा है एक ओर वह मध्यस्थता और भरोसेमंद साझेदार के रूप में अपनी वैश्विक भूमिका को और मजबूत कर सकता है, तो दूसरी ओर आर्थिक मोर्चे पर भी लाभ उठा सकता है। यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संतुलित विदेश नीति और वैश्विक कूटनीतिक पूंजी का प्रमाण है।
अंततः, दुनिया को अब ऐसे नेतृत्व और कूटनीतिक प्रयासों की जरूरत है जो युद्ध की जगह शांति, टकराव की जगह संवाद और प्रतिबंधों की जगह सहयोग को प्राथमिकता दें। पुतिन और ट्रंप की संभावित मुलाकात, यदि सफल होती है, तो यह न केवल यूक्रेन युद्ध की समाप्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, बल्कि वैश्विक स्थिरता और भारत के आर्थिक हितों के लिए भी नए द्वार खोल सकती है।
- संपादक खबर मार्निंग