लेखक: विनोद कुमार झा
सुबह का सूरज खिड़की से झांक रहा था, लेकिन रवि की आँखों में रोशनी कम और धुंध ज्यादा थी। बाहर शहर की सड़कें पहले से ही जाग चुकी थीं ऑफिस जाने वालों की भीड़, हॉर्न बजाती गाड़ियां, और सिग्नल पर खड़े बेचैन चेहरे। पर रवि के भीतर एक और ही भीड़ थी विचारों, सवालों और अधूरे ख्वाबों का जनसैलाब।रवि 30 साल का, एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला, दिखने में साधारण लेकिन सोच में गहराई वाला लड़का। कॉलेज के दिनों में वह प्रेम में पड़ा था, और उसे लगता था कि यही रिश्ता उसकी पूरी जिंदगी का आधार होगा। उस लड़की का नाम था अनुष्का हंसमुख, पढ़ाई में तेज़ और रवि के सपनों की साथी।
कॉलेज के दिन: कैंटीन की कॉफी, लाइब्रेरी में एक ही टेबल पर बैठना, प्रोजेक्ट्स पर साथ काम करना इन सबके बीच उनका रिश्ता गहराता गया। रवि ने एक बार कहा था,"अनुष्का, अगर जिंदगी एक लंबी सड़क है, तो मैं चाहता हूं कि तू मेरे साथ उस पर चले… चाहे रास्ता कैसा भी हो।"
अनुष्का ने मुस्कुराते हुए कहा था," और अगर रास्ते में भीड़ ज्यादा हो गई, तो?"" तो मैं तेरा हाथ और कसकर पकड़ लूंगा।" कॉलेज खत्म होते ही हकीकत ने दस्तक दी। अनुष्का के घरवालों को रवि पसंद नहीं था वजह? जाति अलग थी, और रवि का परिवार आर्थिक रूप से उनसे कमज़ोर। समाज का ‘क्या कहेंगे लोग’ वाला डर भारी पड़ गया।
अनुष्का ने रोते हुए कहा, "रवि, मैं तुझसे प्यार करती हूं, लेकिन मम्मी-पापा के खिलाफ नहीं जा सकती।"रवि ने बस इतना कहा,"प्यार अगर बंधनों में कैद हो जाए, तो उसका दम घुट जाता है।"
रवि ने अपने करियर में खुद को झोंक दिया। वह दिन-रात मेहनत करता, प्रमोशन पाता, लेकिन दिल की प्यास बुझती नहीं। उसके आस-पास लोग थे, सहकर्मी थे, लेकिन अपनेपन की कमी थी। कई बार वह सोचता क्या मैं भी उन करोड़ों लोगों में से एक बन गया हूं जो सिर्फ जी रहे हैं, जीने का मतलब भूल चुके हैं?
ऑफिस की मीटिंग, लैपटॉप पर एक्सेल शीट्स, मोबाइल पर ईमेल यह सब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। रिश्ते सिर्फ सोशल मीडिया की चैट तक सिमट गए थे। प्यार अब तस्वीरों और इमोजी में कैद था, जहां भावनाएं ‘seen’ के बाद खो जाती थीं।
उसके आस-पास दोस्त थे, लेकिन सब अपने-अपने करियर और महत्वाकांक्षाओं में उलझे हुए। कभी वह सोचता हम सब दौड़ रहे हैं, लेकिन किस मंज़िल की तरफ? और # क्या उस मंज़िल पर कोई होगा जो हमें गले लगाए?
कई साल बाद एक शाम, रवि को अनुष्का का मैसेज आया, "क्या हम मिल सकते हैं?" एक कैफ़े में मिलने पर रवि ने देखा, अनुष्का के चेहरे पर पहले जैसी चमक नहीं थी। वह शादीशुदा थी, लेकिन उसकी आंखों में खालीपन था। उसने कहा, "रवि… मैंने सबकी खुशी के लिए समझौता किया, लेकिन आज समझ आया जिसे अपना कहो, वही सबसे बड़ी खुशी देता है।"
रवि ने गहरी सांस ली,"शायद हम दोनों के प्यासे मन अब भी एक-दूसरे की तलाश में हैं, लेकिन वक्त हमें कभी एक नहीं करेगा।"
रवि कैफ़े से बाहर आया। शहर की भीड़ पहले जैसी थी, शोर पहले जैसा था। लेकिन उसके अंदर एक सन्नाटा था। उसे अब समझ आ चुका था प्यार की सच्चाई यही है कि यह हमेशा साथ रहने में नहीं, बल्कि मन की गहराई में अमर रहने में है। और ‘प्यासा मन’… वह शायद तभी बुझता है, जब इंसान अपने भीतर की सच्चाई को स्वीकार कर ले।