विनोद कुमार झा
हवा में ताजगी थी, जैसे कोई नई शुरुआत की खुशबू। शहर के एक छोटे से मोहल्ले में चार जिगरी दोस्त राजू, अमित, सुरेश और नीरज एक ही निजी संस्थान में साथ काम करते थे। साथ खाना, साथ हँसना, साथ सपने देखना इनकी दोस्ती मिसाल थी।
एक दिन अचानक कंपनी में आर्थिक संकट आ गया। सबकी छंटनी कर दी गई। चारों दोस्तों की नौकरी भी चली गई। कुछ दिनों तक वे परेशान रहे, लेकिन हार मानने वालों में से नहीं थे। एक दिन पास के चाय की दुकान पर बैठे-बैठे उन्होंने निर्णय लिया कि अब किसी और की नौकरी नहीं, खुद का कुछ करेंगे।
चारों ने मिलकर एक छोटी सी जनरल स्टोर खोली नाम रखा “चार यार दुकान”। सबने थोड़ी-थोड़ी पूंजी लगाई, जिम्मेदारियाँ बांटी और ईमानदारी से काम शुरू किया। उनकी मेहनत और आपसी समझदारी ने दुकान को कुछ ही महीनों में मशहूर बना दिया। ग्राहक उनके व्यवहार और भरोसे के कायल हो गए।
लेकिन जैसे-जैसे दुकान बढ़ने लगी, वैसे-वैसे अहम भी सिर उठाने लगा। नीरज को लगने लगा कि वह सबसे ज्यादा काम करता है, मगर कम मुनाफा मिल रहा है। उसने अपनी बात कई बार उठाई, लेकिन बाकी तीनों दोस्त उसे हल्के में लेते रहे। बात-बात में तकरार होने लगी। अंततः, नीरज ने अलग होने का फैसला किया। हिसाब-किताब कर उसे निकाल दिया गया।
नीरज ने हार नहीं मानी। उसने “एक यार दुकान” के नाम से उसी के सामने अपनी नई दुकान खोल ली। अपनी ईमानदारी और मेहनत के बल पर उसने जल्द ही ग्राहकों का भरोसा जीत लिया। अब ग्राहक दोनों दुकानों में आने लगे, पर धीरे-धीरे नीरज की दुकान ज्यादा पसंद की जाने लगी।
इधर राजू, अमित और सुरेश को पैसों की आदत लग गई थी। अब वे समय पर दुकान नहीं खोलते। रात देर तक बाहर पार्टी करते, जुआ खेलते, शराब पीते और सुबह देर से उठते। ग्राहक लौटने लगे। धीरे-धीरे दुकान पर ताले लगने लगे। पहले जहाँ दिन भर चहल-पहल रहती थी, अब वहां सन्नाटा पसरा रहता।
तीनों दोस्त अब एक-दूसरे को दोष देने लगे। दोस्ती, जो एक समय ताकत थी, अब बोझ बन गई थी। पैसे की चमक और बुरी संगत ने सब कुछ छीन लिया। नीरज की दुकान आज भी खुलती है सुबह सात बजे, और बंद होती है रात को ठीक नौ बजे। वो अकेला है, मगर खुश और संतुष्ट है। लोग उसकी इमानदारी और मेहनत के कायल हैं।
कभी की गई दोस्ती, अगर स्वार्थ, अहंकार और लालच में बदल जाए, तो उसका अंजाम कुछ वैसा ही होता है जैसा राजू, अमित और सुरेश के साथ हुआ। "संगठन तभी चलता है जब उसमें समझदारी, ईमानदारी और आपसी सम्मान हो। वरना, मेहनत के बीज भी लालच की बारिश में सड़ जाते है।