#चापलूस्य उल्लूकं कुरु।

विनोद कुमार झा

यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की, जो चापलूसी को इतना महान समझता था कि उसे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मान बैठा। वो सोचता था कि जो दूसरों की तारीफों के पुल बांधता है, वही जीवन में पुल पार करता है। लेकिन जब चापलूसी की #नाव में छेद हुआ, तो असलियत# का पानी घुस आया! चापलूस्य उल्लूकं कुरु।  अर्थात: चापलूसी कर, उल्लू बनाओ!

इस कहानी के मुख्य पात्र इस प्रकार है चतुरनाथ झोलापुरी: पेशे से बाबू, शौक से चापलूस, ठाकुर बृजलाल सिंह: गांव के प्रभावशाली नेता, भोला: गांव का सबसे समझदार लेकिन शांत लड़का।

चतुरनाथ झोलापुरी का नाम सुनते ही गांव में लोग मुस्कुराने लगते थे। कोई उसे# “चमचागिरी का चाणक्य” #कहता तो कोई “तारीफों का तापमान बढ़ाने वाला मौसम वैज्ञानिक।”

चतुरनाथ का मानना था कि “मेहनत से केवल पसीना आता है, चापलूसी से पद और सम्मान!”

चतुरनाथ सुबह उठते ही अपने बॉस की तारीफ शुरू कर देता:
“बॉस, आप जब चलते हैं तो #धरती कांपती# है, आपकी सोच इतनी ऊँची है कि टावर भी शर्मा जाए!” और बॉस भी सोचता, “वाह! क्या इमानदार कर्मचारी है!”

एक दिन चतुरनाथ ने सोचा कि गांव के नेता ठाकुर बृजलाल सिंह को खुश करके ही उसका भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।

नेता जी का भाषण सुनकर चतुरनाथ बोला: “नेता जी, आपकी आवाज़ में गांधी जी की आत्मा बोलती है और आपके विचारों में अब्राहम लिंकन का असर है!”

ठाकुर जी खुश हो गए और बोले, “तुम तो हमारे सोशल मीडिया मैनेजर बनो!” बस फिर क्या था, चतुरनाथ दिन भर बृजलाल जी के फोटो को फूलों की माला पहनाता और पोस्ट लिखता,#“नेता जी ने हवा को भी झुका# दिया पेड़ तक सलामी देने लगे!”

चतुरनाथ अब सेल्फी लेते हुए भी कहता, “नेता जी की छाया में हूं, धूप क्या करेगी?” पर ये चापलूसी तब भारी पड़ गई जब एक मीटिंग में नेता जी ने चतुरनाथ से पूछा, “तुम्हारे हिसाब से सबसे बड़ा नेता कौन?”

अब चतुरनाथ ने अपनी क्लासिक चाल चली: “नेता जी, आपके सामने तो चंद्रगुप्त मौर्य भी उम्मीदवार लगता है!”

इस पर भोला ने धीरे से फुसफुसाया, “भाई, कभी-कभी ज़्यादा मक्खन से पेट फिसल जाता है!” जब चुनाव आए, चतुरनाथ ने बृजलाल जी की तारीफ में इतना लिखा कि इंटरनेट ही स्लो हो गया। “नेता जी की आंखों में विकास का गूगल मैप है।” “उनके पैर जहां पड़ते हैं, वहां सड़कें खुद बन जाती हैं।”पर जब टिकट बांटने की बारी आई, नेता जी ने किसी और को दे दिया। चतुरनाथ ने कहा, “नेता जी, मैंने तो आपको भगवान समझा था।”

बृजलाल जी बोले, “भाई, भगवान भी सबकी नहीं सुनते, तुम तो बस चापलूस थे।”

चतुरनाथ अब बड़बड़ा रहा था, “मैंने तो सोचा था कि चापलूसी से चांद तक पहुंच जाऊंगा, लेकिन यहां तो गड्ढे में गिर गया!”

भोला ने कंधे पर हाथ रख कर कहा, “देख चतुरनाथ, तारीफ करना बुरा नहीं, लेकिन जब वो झूठी हो, तो सामने वाला भी ताली नहीं बजाता – चांटा मारता है!”

चापलूसी एक कला है, लेकिन जब वह हद से ज्यादा हो जाए तो वो कला नहीं, काल बन जाती है।
इसलिए दोस्तों,

सच्ची मेहनत करो, झूठी तारीफ नहीं।
वरना बन जाओगे चतुरनाथ की तरह  उल्लू नंबर वन!”

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