(एक सामाजिक व्यंग्य कथा)
विनोद कुमार झा
कहते हैं भारत में दो चीजें मुफ्त में बहुत मिलती हैं धूप और सलाह। धूप का क्या है, वह तो सूरज के जिम्मे है, लेकिन सलाह... सलाह के तो हजारों सूरज हैं, और सबके पास रोशनी नहीं, सिर्फ चमक होती है।
शहर के मध्य एक चौक था नाम था "ज्ञान चौक"। नाम सुनकर लगेगा कोई पुस्तकालय या विश्वविद्यालय होगा, लेकिन असलियत में वह एक खुला मैदान था जहाँ हर दिन दोपहर होते ही एक अद्भुत मेला लग जाता "फ्री सलाह मेला"।
यहाँ हर रोज सैकड़ों "विशेषज्ञ" आते कुछ बेरोज़गार, कुछ सेवानिवृत्त, कुछ मोहल्ले के खुद-को-गुरु मानने वाले, और कुछ ऐसे जो घर में कोई उनकी न सुनता था, तो बाहर आकर अपना ज्ञान बाँटते थे।
इसके प्रमुख पात्र इस प्रकार है :-
* पंडित ज्ञानप्रकाश शास्त्री – धार्मिक सलाहों के ठेकेदार, हर समस्या का समाधान पूजा या ग्रह शांति।
* डॉ. भ्रामक सिंह बिना डिग्री के मेडिकल सलाह देने वाले।
* चाची विमला देवी "तुमसे न हो पाएगा" वाली सलाह की महान साधिका।
* सोशल मीडिया बाबा – हर बात का जवाब हैशटैग में देते, #PositiveVibesOnly
एक दिन गाँव से शहर आया युवक रवि इस मेले में पहुंचा। गाँव से खेती की डिग्री लेकर आया था, लेकिन नौकरी का कुछ अता-पता नहीं। सोच रहा था कोई सलाह मिल जाए।
सबसे पहले पहुँचा पंडित ज्ञानप्रकाश के पास। “बेटा, नौकरी नहीं मिल रही? मंगल दोष है! पहले दो वार हनुमान चालीसा, फिर पीपल के पेड़ पर जल चढ़ा, फिर...”
रवि कुछ समझता इससे पहले ही पास बैठी विमला चाची ने टोका, “अरे बेटा, तू जैसे लड़के तो हर साल आते हैं, न तेरे में दम है, न शक्ल! नौकरी चाहिए, पहले ससुराल ढूँढ!”
रवि सकपका गया। भागते हुए पहुँचा भ्रामक सिंह के पास उन्होंने ने बोला, “कमज़ोरी महसूस हो रही है? थकावट? ये लो हल्दी वाला दूध। रोज़ पीओ, एक हफ्ते में UPSC क्लियर हो जाएगा !”
अब रवि को हँसी आ गई। तभी सामने दिखे सोशल मीडिया बाबा, जिनके चारों ओर सेल्फी लेती भीड़ थी।
“भाई, नौकरी नहीं मिल रही?”
“नहीं बाबा।”
“#Don’tWorryBeta, #TrustTheUniverse, #ManifestSuccess।”
“लेकिन मुझे तो कृषि अधिकारी बनना है...”
“#ThinkLikeSuccess, #GrowRichMindset!”
रवि को धीरे-धीरे समझ आने लगा ये सलाह देने वाले लोग असल में खुद ही दिशा-हीन हैं। सलाह देना उनका तरीका है अपनी असफलता छिपाने का, और दूसरों की उलझनें बढ़ाने का। उसने एक छोटा बोर्ड बनाया: "यहाँ सिर्फ वही सलाह दी जाती है, जो खुद अनुभव की गई हो।"
धीरे-धीरे उसकी छोटी सी टेबल पर भीड़ लगने लगी। वह कृषि के बारे में व्यावहारिक जानकारी देता, नए किसानों को ट्रेनिंग देता और नौकरी के लिए फॉर्म भरने में मदद करता।
जब बाक़ी सलाहकारों ने देखा कि उसकी "मुफ़्त सलाह" लोगों को वास्तविक फायदा पहुँचा रही है, तो उन्होंने विरोध शुरू किया। लेकिन जनता अब जाग चुकी थी। लोग अब पहचानने लगे थे कि कौन वास्तव में मदद कर रहा है, और कौन सिर्फ भाषण।
कुछ समय बाद "फ्री सलाह मेला" सिमट गया। अब वहां 'फ्री समाधान केंद्र' खुल चुका था, जहाँ अनुभव के आधार पर सलाह दी जाती थी बिना हो-हल्ले के, बिना झूठे वादों के।
और रवि? अब वह शहर का सबसे युवा और सबसे व्यावहारिक "सलाहकार" बन चुका था, जिसे लोग गुरु नहीं, मित्र मानते थे।
हर सलाह जरूरी नहीं कि काम की हो, लेकिन हर अनुभव सिखाता जरूर है कि किस सलाह पर चलना है और किस पर मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाना है।
समाप्त