विनोद कुमार झा
हर ईंट का इस्तेमाल दीवार बनाने में नहीं होता। कुछ ईंटें मंदिरों की नींव बनती हैं, कुछ पुलों में जुड़ती हैं और कुछ आग में तपकर# कंचन जैसी चमकती हैं। ठीक वैसे ही, हर बात रिश्ते को तोड़ने वाली नहीं होती। कुछ बातें सिर्फ उस मौन को तोड़ने के लिए होती हैं जो दो दिलों के बीच खिंचती जा रही दूरी को भर दे।
हम अक्सर यह मान लेते हैं कि जो कहा गया, उसका मक़सद तकरार है। जबकि कई बार बात सिर्फ मन की थकान होती है, या फिर एक #अधूरी कोशिश कुछ कहने की, कुछ जताने की। लेकिन जब शब्दों को सही मायनों में समझने की जगह हम उन्हें अपने मन के भाव से तोलते हैं, तब वही बात एक ईंट बन जाती है, और धीरे-धीरे हमारे ही बनाए रिश्तों की दीवार बनती जाती है।
तकरार हमेशा ऊँची आवाज़ से नहीं होती। कभी-कभी खामोशी भी झगड़े से ज्यादा चुभती है। हम सोचते हैं कि दूसरा बदल गया है, दूर हो गया है, लेकिन शायद वह सिर्फ थक गया होता है बोलते-बोलते, समझाते-समझाते। और अगर हम हर #खामोशी को दूरी मान लें, तो फिर रिश्तों का क्या होगा?
प्यार कोई ज़ोर से बोलने वाली चीज़ नहीं है। यह तो वही हल्की सी बात है जो दिल को छू जाए, वही मौन है जिसमें समझ छुपी हो। जब हम यह समझ पाते हैं कि हर ईंट से दीवार नहीं बनती, और हर बात तकरार नहीं होती तभी असल में प्यार की भाषा समझ में आती है। और यही कहानी है "तकरार नहीं, प्यार" की।
दिल्ली के एक साधारण से मोहल्ले में रहने वाले विवेक और सिया की शादी को चार साल हो चुके थे। दोनों ही अपने-अपने काम में व्यस्त रहते सिया एक स्कूल टीचर थी और विवेक एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर। #रिश्ते में प्यार था, लेकिन अब वो पुराने दिनों जैसी गर्मजोशी नहीं रही। बातचीत कम हो गई थी, और एक अनकही दूरी दोनों के बीच बसने लगी थी।
एक दिन सिया ने हंसते हुए कहा, "तुम अब पहले जैसे नहीं रहे। बात कम करते हो।"विवेक ने हल्के से जवाब दिया, "अब सबकुछ समझने लगे हैं ना, इसलिए कम बोलता हूं।"
बात सामान्य थी, मगर सिया के मन को #चुभ गई। उसने चुप्पी ओढ़ ली। विवेक को लगा शायद मूड खराब है, पर उसने बात को वहीं छोड़ दिया।
अगले कुछ दिनों तक सिया का व्यवहार बदला-बदला रहा। घर में सबकुछ सामान्य दिखता था, पर दिल के भीतर दीवारें उठने लगी थीं। छोटी-छोटी बातें अब #तकरार का रूप लेने लगीं, बिना कहे ही। दोनों ही सोचने लगे क्या हम दूर हो रहे हैं?
पर न कोई झगड़ा था, न कोई बड़ा कारण। बस कुछ अधूरी बातें और कुछ अनकहे जज़्बात थे।
एक दिन स्कूल में सिया बच्चों को एक कहानी पढ़ा रही थी "#हर ईंट से दीवार नहीं होती#।" ये पंक्ति उसके दिल में गूंज उठी। उसे समझ आया कि विवेक ने कोई बुरा इरादा नहीं रखा था। वह खुद ही अपनी सोच से दीवार बना बैठी थी।
उसी शाम सिया ने एक कागज़ पर लिखा:"विवेक, शायद मैं ज़रूरत से ज़्यादा सोच बैठी। तुम्हारी हर खामोशी में तकरार ढूंढती रही। पर अब समझ आया हर बात से तकरार नहीं होती।"
विवेक ने वो नोट पढ़ा, मुस्कुरा दिया और सिया का हाथ थाम लिया।"और मैं ये जताना भूल गया कि तुम ही मेरी सबसे जरूरी बात हो।"उस शाम दोनों ने खूब बातें कीं। खामोशी टूटी, दीवारें गिरीं, और फिर से प्यार बहने लगा।
हर रिश्ते में कुछ अधूरी बातें होती हैं, लेकिन अगर हम हर बात को तकरार मान लेंगे, तो दीवारें बन जाएंगी। समझ, धैर्य और संवाद यही प्यार की असली नींव है।
क्योंकि…"हर ईंट से दीवार नहीं होती, और हर बात से तकरार नहीं होती।"