10वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी पर आधारित प्रेरणादायक कहानी
हर वर्ष लाखों छात्र-छात्राएं 10वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी करते हैं। कुछ के पास सारी सुविधाएं होती हैं, तो कुछ के पास केवल सपने। लेकिन अंत में सफलता उसी की होती है, जो पूरी लगन और संकल्प से तैयारी करता है। यह कहानी है आरव की एक छोटे कस्बे का साधारण लड़का, जिसकी मेहनत और संकल्प ने उसे असाधारण बना दिया।
आरव झारखंड के गिरिडीह जिले के एक छोटे से गांव धनवार में रहता था। उसका स्कूल ज़िला परिषद द्वारा संचालित था। क्लासरूम की छत टपकती थी, किताबें पुरानी थीं और इंटरनेट नाम की चीज़ केवल किताबों में पढ़ी थी।
लेकिन आरव के सपने चमकते थे,“बोर्ड परीक्षा में टॉप करना है। परिवार की गरीबी खत्म करनी है। इंजीनियर बनना है। ”माँ खेतों में काम करती थीं, पिता मजदूरी। लेकिन दोनों ने हमेशा आरव से कहा, “बेटा, तू पढ़ लेगा तो हमारी पीढ़ियाँ बदल जाएँगी।”
आरव के पास न स्मार्टफोन था, न ट्यूशन। गाँव में कोई कोचिंग नहीं थी। लेकिन उसने अपनी लड़ाई संकल्प से लड़नी शुरू की। उसकी योजना कुछ ऐसी थी हर विषय का टाइम टेबल: वह सुबह गणित, दोपहर में विज्ञान और रात को सामाजिक विज्ञान पढ़ता।
एनसीईआरटी केंद्रित पढ़ाई: उसने तय किया कि पहले किताब पूरी समझनी है, फिर नोट्स बनाकर याद करना है।एक पुराना टिन का बक्सा था, जिसे वह टेबल बनाकर उस पर लालटेन की रोशनी में पढ़ता था। रात को 11 बजे तक पढ़ता और सुबह 4 बजे उठकर फिर से पढ़ाई शुरू कर देता।
उसके पास साधन नहीं थे, लेकिन उसने पाँच सूत्र बना लिए जो उसके संकल्प की ताकत बन गए:
हर दिन खुद का गुरु बनो : आरव ने तय किया कि वह खुद ही हर हफ्ते टेस्ट लेगा। किताबों से सवाल निकालकर उत्तर लिखता और खुद चेक करता।
सिर्फ पढ़ना नहीं, समझना है : गणित के हर सवाल को दो बार हल करता। विज्ञान के कॉन्सेप्ट को खुद समझने के लिए आसपास की चीज़ों से जोड़ता जैसे बल का नियम बैलगाड़ी में, घर्षण मिट्टी पर चलकर समझता।
हर हफ्ते रिवीजन, हर महीने पुनरावलोकन : हर शनिवार वह उस सप्ताह पढ़े हुए टॉपिक्स को दोहराता और हर महीने एक पूरा सिलेबस का मॉक टेस्ट देता।
डायरी को दोस्त बनाओ : हर दिन का प्लान वह अपनी नोटबुक में लिखता कौन-सा चैप्टर, कितने सवाल, कितना समय। यह उसे ट्रैक पर बनाए रखता।
खुद से प्रेरणा लेना : आरव ने कमरे की दीवार पर एक कागज़ चिपका रखा था: “मैं कर सकता हूँ। कोई भी हालात मुझे नहीं रोक सकते।”
गांव वाले हँसते थे, पर माँ मुस्कुराती थी : गांव के कुछ लोग कहते ,"अरे, इतने पढ़-लिख के क्या करेगा? नौकरी थोड़ी न मिलती है!" पर उसकी माँ हर रात उसके पास बैठती और कहती: “बेटा, सपनों को बड़ा रखो, हालात खुद झुक जाएंगे।” उसकी माँ उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा थी।
बोर्ड परीक्षा का महीना आया। आरव तैयार था पूरी तैयारी, हर विषय के साथ। परीक्षा के दौरान उसने इन बातों का ध्यान रखा: प्रश्नपत्र पढ़ने के बाद पहले आसान सवालों को हल किया।
उत्तर को बिंदुवार लिखा और आकाशीय लेखन (clean handwriting) पर ज़ोर दिया।
समय का ध्यान रखा — शुरुआत 15 मिनट योजना बनाने में, और आखिरी 10 मिनट उत्तर जांचने में लगाए।
आरव जैसे लाखों बच्चे देश में हैं, जिनके पास केवल सपने हैं लेकिन साधन नहीं। पर अगर दृढ़ संकल्प हो, तो वे भी बोर्ड की परीक्षा में न केवल अच्छे अंक ला सकते हैं, बल्कि अपने भविष्य की नींव मज़बूत कर सकते हैं। कठिनाईयाँ केवल रास्ता मोड़ती हैं, मंज़िल नहीं रोकतीं।"