इस घोषणा से करीब 1 करोड़ 67 लाख परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ मिलने वाला है। यह संख्या केवल सरकारी आंकड़ा नहीं, बल्कि एक बड़ा मतदाता वर्ग है, जो बिजली के बिल की समस्या से लंबे समय से जूझ रहा है। ऐसे में चुनाव से पहले यह राहत सीधे जनता के दिलों को छूने वाली है।
नीतीश कुमार का यह कदम अरविंद केजरीवाल की पुरानी रणनीति की याद दिलाता है, जिन्होंने दिल्ली में बिजली-पानी मुफ्त कर एक मजबूत जनाधार तैयार किया था। हालांकि बिहार की सामाजिक और आर्थिक संरचना दिल्ली से भिन्न है, लेकिन मुफ़्त बिजली का वादा आम जनता के लिए एक बड़ा सुकून है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ अब भी बिजली की खपत को लेकर जागरूकता और साधन सीमित हैं।
इस योजना के आर्थिक प्रभावों को लेकर सवाल उठना लाजमी है – क्या बिहार की राजकोषीय स्थिति इतनी मजबूत है कि इतने बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी जा सके? क्या इससे बिजली कंपनियों के ऊपर दबाव नहीं बढ़ेगा? ये प्रश्न विचारणीय हैं, लेकिन चुनावी दौर में मतदाता इन तकनीकी पहलुओं से ज़्यादा राहत की भावना से प्रेरित होते हैं।
यह घोषणा यह भी दर्शाती है कि नीतीश कुमार अब पुराने गठबंधन और समीकरणों से परे हटकर जनता को सीधे साधने की कोशिश कर रहे हैं। विकास, सुशासन और कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर अब वह राहत और सुविधाओं के जरिए नया जनसंपर्क बना रहे हैं।
बिहार की राजनीति में इस तरह की सामाजिक-आर्थिक योजनाओं का प्रभाव पहले भी देखा गया है – चाहे वह लालू यादव की सामाजिक न्याय की नीति हो या नीतीश का ‘7 निश्चय योजना’। अब जब चुनाव नजदीक हैं, मुफ्त बिजली योजना मतदाताओं के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता को नया जीवन दे सकती है।
अंततः, इस फैसले का राजनीतिक मूल्यांकन चुनाव परिणाम ही करेंगे। लेकिन इतना तय है कि इस घोषणा ने चुनावी मुद्दों की दिशा बदल दी है। अब बात केवल जातीय समीकरणों या गठबंधन की नहीं होगी, बल्कि जनजीवन को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दे भी केंद्र में होंगे। और इसमें नीतीश कुमार की यह चाल वाकई ‘मास्टर स्ट्रोक’ साबित हो सकती है।
- विनोद कुमार झा