भ्रष्टाचारी खुद नहीं चाहते कि भ्रष्टाचार का हो अंत

 लेखपालों ने खोला हापुड़ के जिलाधिकारी के खिलाफ मोर्चा 

हापुड़। कलयुग में शैतान का ही बोलबाला होगा जो उसकी शैतानगी का अंत करने के लिए आगे आएगा, सारे शैतान मिलकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल देंगे। जनपद हापुड़ में ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। हापुड़ के जिलाधिकारी ने एक भ्रष्ट लेखपाल के खिलाफ कार्रवाई की। जानकारी में आया है कि लोकलाज व समाज में मुंह न दिखाने वजह से उसने आत्महत्या कर ली। अपने साथी की एकाएक मौत की खबर ने अन्य लेखपालों के दिल को झकझोर दिया। वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और वे जिलाधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए धरने पर बैठ गए। अब सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना अपराध है। अगर अपराध है तो हमारी योगी सरकार बार-बार इस बात का दावा क्यों ठोक रही है कि हम भ्रष्टाचार को पूरी तरह से उखाड़कर ही दम लेंगे। अगर हापुड़ के जिलाधिकारी भ्रष्टाचारी के खिलाफ कार्रवाई की तो उन्होने कौन सा अपराध किया। शासन की ओर से यह धरना समाप्त करने के लिए अभी तक आदेश जारी क्यों नहीं किए गए?

गौरतलब है कि जिलाधिकारी अभिषेक पांडे ने खतौनी के बदले लेखपाल सुभाष मीणा के असिस्टेंट मिंटू ने रिश्वत ली थी। शिकायत पर डीएम श्री पांडे ने मिंटू के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और लेखपाल को सस्पेंड किया गया था। यह भी जानकारी में आया है कि लेखपाल के रिटायरमेंट में सिर्फ आठ  माह रह गए थे। वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया और समाज में बदनामी होने के भय से  सुभाष ने जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली। लेखपाल सुभाष मीणा के परिवार के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करना हर व्यक्ति का फर्ज बनता है लेकिन भ्रष्टाचार के प्रति नहीं।

सच्चाई तो यह है कि हापुड़ में लेखपाल, कानूनगो समेत ज्यादातर कर्मचारी भ्रष्टाचार की ओढनी ओढ़े हुए हैं। किसी भी प्रकार की रिपोर्ट लगाने के नाम पर मनमर्जी रुपए मांगते हैं। उनकी मर्जी के अनुसार रिश्वत न देने पर वह रिपोर्ट लगाने से साफ इंकार कर देते हैं। अगर दबाव पड़ने पर रिपोर्ट दी भी जाती है तो भ्रामक व औचित्य विहीन होती है। ज़्यादातर लोग वादी का उत्पीड़न एवं शोषण इसी प्रकार से करते हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जिलाधिकारी अभिषेक पांडे के द्वारा की गई कार्यवाही स्वागत योग्य है। भ्रष्टाचार कम करने के लिए इस प्रकार की कार्यवाही की आवश्यकता है। लेखपाल ने आत्महत्या डीएम साहब की कार्रवाई के कारण नहीं की। बल्कि समाज में बदनामी के डर से और अपनी काली करतूत और अपना मुंह छुपाने के लिए की है। लेखपालों हड़ताल पर जाने का औचित्य भी समझ समझ से बाहर है कि वे इससे सबक लेने के बजाए भ्रष्टाचार का खुलकर समर्थन कर रहे हैं? 

अब सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना अपराध है। अगर अपराध है तो हमारी योगी सरकार बार-बार इस बात का दावा क्यों कर रही है कि हम भ्रष्टाचार को पूरी तरह से उखाड़कर ही दम लेंगे। अगर हापुड़ के जिलाधिकारी भ्रष्टाचारी के खिलाफ कार्रवाई की तो उन्होने कौन सा अपराध किया। शासन की ओर से यह धरना समाप्त करने के लिए अभी तक आदेश क्यों नहीं किए गए? क्यों लेखपालों चेतावनी नहीं दी गई, अगर वह अपने काम पर नहीं गए तो उनके खिलाफ भी सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी? इनकी अक्ल ठिकाने पर लाने के लिए सख्त निर्णय लेने की आवश्यकता है। 

भ्रष्टाचार की दलदल में घुसकर इनका दिल भी काला पड़ चुका है। स्वार्थ की पर्त इनके दामन पर इस कदर जम चुकी है कि इन्हें गरीब की मजबूरी भी नजर नहीं आती। ये सिर्फ और सिर्फ अपना भला चाहते है अगर ऐसा नहीं होता तो भ्रष्टाचारी के समर्थन में ये धरने पर बैठने के बजाए दिल से जिलाधिकारी के निर्णय का का स्वागत कर उन्हें सम्मानित करते लेकिन रोम-रोम भ्रष्टाचार में फंसा होने की वजह से लेखपाल ऐसा नहीं कर पाए। सच ही कहा है अमन बेच रहे हैं वतन बेच रहे हैं काँटों के इशारे पर चमन बेच रहे है। चाँदी की चकाचौंध में अंधे कुछ लोग रोटी के लिए माँ का कफन बेच रहे हैं।

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