राम दरबार की प्रतिष्ठा आस्था का नवोन्मेष

 विनोद कुमार झा

अयोध्या, जिसे भारतीय जनमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है, एक बार फिर भव्य और ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना। राम मंदिर परिसर में गुरुवार को राम दरबार समेत सात नवनिर्मित मंदिरों की प्रतिष्ठा का समारोह संपन्न हुआ। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना का पुनर्संस्कार भी था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार और विधिविधान से सम्पन्न यह कार्यक्रम भक्तों की आस्था का केंद्र बना रहा। राम दरबार, जिसे मंदिर के पहले तल पर प्रतिष्ठित किया गया है, रामलला के बाल रूप की तुलना में राम के राज्याभिषेक के बाद के स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्थापना रामायण के उस चरण को दर्शाती है जहां राम केवल एक पुत्र या योद्धा नहीं, बल्कि एक आदर्श राजा के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अवसर पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह क्षण सभी राम भक्तों को श्रद्धा और आनंद से भर देने वाला है। यह वक्तव्य न केवल राजनीतिक समर्थन का संकेत देता है, बल्कि इस अनुष्ठान के राष्ट्रीय महत्व को भी रेखांकित करता है।

इस आयोजन में स्थानीय प्रशासन और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की भूमिका सराहनीय रही। भीड़ प्रबंधन को लेकर की गई अपीलों का व्यापक असर देखने को मिला, जिससे व्यवस्था सुचारु बनी रही। वहीं, इस आयोजन में अयोध्या के गौरवशाली भविष्य की भी झलक देखने को मिली, जहां धर्म, संस्कृति और पर्यटन का समावेश होगा। अब जब राम दरबार और अन्य मंदिरों के लिए आम जन के दर्शन की तिथि शीघ्र घोषित की जाएगी, तब यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि श्रद्धालुओं की सुविधा, सुरक्षा और धार्मिक मर्यादा का पूर्ण पालन हो। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है।

रामलला से लेकर राजा राम तक की यह यात्रा  केवल एक देवता की नहीं, बल्कि भारतीय आदर्शों की यात्रा है। यह आयोजन न केवल सनातन संस्कृति की जीवंतता का प्रमाण है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा बनकर रहेगा। अयोध्या अब केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा का धुरी बन चुकी है।

जय श्रीराम।

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