विनोद कुमार झा
भारतीय तंत्रशास्त्र में दस महाविद्याएँ शक्ति की दस रूपों में दिव्य और रहस्यमयी अभिव्यक्तियाँ हैं। ये महाविद्याएँ केवल देवी की मूर्तियाँ नहीं, अपितु ब्रह्मांड की चेतना की दस ऊर्जाएँ हैं। जब शक्ति ने स्वयं को चेतना से सृजन की प्रक्रिया में उतारा, तो इन दस रूपों में उनका रहस्यमयी प्रकटीकरण हुआ। हर महाविद्या एक विशेष भाव, रहस्य और तांत्रिक सिद्धि की अधिष्ठात्री है।
तंत्र ग्रंथों में यह कथा आती है कि जब भगवान शिव ने देवी सती को यज्ञ में जाने से रोका, तो सती ने अपना विकराल रूप धारण किया। उनके इस रूप के दस भाग हुए यही हैं दस महाविद्याएँ। यह घटनाक्रम सती के आत्मबलिदान और शक्ति के ब्रह्मांडीय स्वरूप को उद्घाटित करता है।
## 1. महाकाली – काल से परे, ब्रह्मांड की शून्यता
प्रतीक: अंधकार, श्मशान, समय का अंत
भाव: विनाश, पुनरुत्थान, मुक्ति
तांत्रिक महत्व: मृत्यु और भय का अतिक्रमण
महाकाली दस महाविद्याओं में प्रथम हैं। वह समय (काल) की अधिष्ठात्री हैं क्योंकि समय ही इस सृष्टि को रचता और नष्ट करता है। उनके गले में नरमुंडों की माला है जो सृजन और मृत्यु के चक्र का संकेत देती है। उनके तीन नेत्र त्रिकालज्ञान को दर्शाते हैं। वह बताती हैं कि सब कुछ नश्वर है, और जो नश्वरता से परे है वही "काली" है।
रहस्य: काली आत्मा को उसके भय और मोह से मुक्ति देती हैं। साधक जब अपने भीतर के अंधकार को पहचान लेता है, तब ही वह आत्मज्ञान के प्रकाश में प्रवेश करता है। काली वह द्वार हैं जो मृत्यु के पार जीवन की ओर ले जाती हैं।
## 2. तारा – जो मृत्यु में जीवन की आशा जगाए
प्रतीक: महासमुद्र, वज्र, तारक मंत्र
भाव: रक्षा, राह दिखाना, उध्दार
तांत्रिक महत्व: उग्र साधना की उद्धारक
तारा का अर्थ है – ‘जो पार ले जाए’। वे काली के समान प्रतीत होती हैं, परंतु उनका भाव मातृवत है। वे प्रलय के महासागर से साधक को उबारने वाली हैं। उनका स्वरूप ब्रह्मांड के गहनतम रहस्यों को जानने के लिए अत्यंत उपयोगी है।
रहस्य: तारा का साधक मृत्यु और अनिश्चितता से भयभीत नहीं होता। वह जानता है कि जब सबकुछ समाप्त हो रहा हो, तब तारा उसे नई दिशा देती हैं। वे गुरुत्वाकर्षण से भी परे, चेतना की दिशा तय करने वाली हैं।
## 3. त्रिपुरसुंदरी (श्रीविद्या) – सौंदर्य, प्रेम और ब्रह्मज्ञान का मिलन
प्रतीक: श्री यंत्र, लाल कमल, सौंदर्य
भाव: आनंद, प्रेम, माधुर्य
तांत्रिक महत्व: श्रीविद्या की रहस्यमयी साधना
त्रिपुरसुंदरी या ललिता देवी, तीनों लोकों की सुंदरता की अधिष्ठात्री हैं। वे केवल बाह्य सौंदर्य की नहीं, अपितु आत्मा के आनंद और ब्रह्म की मधुरता की देवी हैं। उनका यंत्र है श्री यंत्र , जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना का मानचित्र है।
रहस्य: त्रिपुरसुंदरी वह अवस्था है जब आत्मा को ब्रह्म के साथ मधुर मिलन का अनुभव होता है। यह ध्यान और प्रेम का शिखर है। श्रीविद्या की साधना व्यक्ति को धीरे-धीरे आत्मा की सुंदरता और ब्रह्म की मधुरता में विलीन कर देती है।
## 4. भुवनेश्वरी – आकाश में व्यापी हुई ब्रह्मांडमाता
प्रतीक: आकाश, स्पेस, ब्रह्मांड
भाव: विस्तार, स्वीकार, पालन
तांत्रिक महत्व: जाग्रत चेतना का विस्तार
भुवनेश्वरी वह हैं जिनमें सारा ब्रह्मांड स्थित है। वे ‘भुवन की ईश्वरी’ हैं – यानि जो संसार की अधिष्ठात्री हैं। उनका रूप ममत्व से भरा हुआ है मातृवत, सौम्य, और व्याप्त।
रहस्य: भुवनेश्वरी का ध्यान साधक को अपने भीतर के ब्रह्मांड से जोड़ता है। वह बाह्य संसार की सीमाओं से परे जाकर अंतरिक्ष के अनुभव को आत्मसात करता है। यहाँ चेतना विस्तार पाती है और आत्मा को ब्रह्म के विराट स्वरूप का अनुभव होता है।
## 5. छिन्नमस्ता – आत्मबलिदान की अद्भुत देवी
प्रतीक: कटा हुआ मस्तक, रक्त की धार, दो सखियाँ
भाव: त्याग, बलिदान, चेतना
तांत्रिक महत्व: अहंकार-मुक्ति और कुंडलिनी जागरण
छिन्नमस्ता स्वयं का मस्तक काट कर अपनी दो सहचरी शक्तियों को रक्त पिलाती हैं – यह प्रतीक है कि 'स्व' का बलिदान ही सच्चा ज्ञान है। वे अत्यंत रहस्यमयी हैं और उन पर ध्यान साधना अत्यंत कठिन होती है।
रहस्य: छिन्नमस्ता हमें यह सिखाती हैं कि ज्ञान तब ही आता है जब हम अपने 'अहं' का बलिदान करते हैं। जब आत्मा को खुद का भान समाप्त होता है, तभी ब्रह्मज्ञान का प्रवेश होता है। यह मृत्यु का नहीं, अहंकार के नाश का प्रतीक है।
## 6. त्रिपुर भैरवी – तामस शक्ति की जाग्रति
प्रतीक: अग्नि, त्रिकोण, तामस रूप
भाव: तपस्या, अनुशासन, आत्मशक्ति
तांत्रिक महत्व: आत्म-परिष्कार और आंतरिक शक्ति का प्रस्फुटन
भैरवी वह हैं जो साधक के भीतर की अधूरी शक्ति को अग्नि में तपाकर तेज में बदल देती हैं। वे भैरव की शक्ति हैं, और भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में विचरण करने की क्षमता देती हैं।
रहस्य: त्रिपुर भैरवी का साधक कठोर अनुशासन में रहता है, और उसके भीतर की ऊर्जा धीरे-धीरे तपकर अमृत बनती है। यह रूप आत्म-संयम और आंतरिक शक्ति का प्रकटीकरण है।
## 7. धूमावती – शोक में छिपा हुआ ब्रह्मज्ञान
प्रतीक: विधवा देवी, धुआँ, दरिद्रता
भाव: त्याग, विरक्ति, वैराग्य
तांत्रिक महत्व: संसार की नश्वरता की अनुभूति
धूमावती का स्वरूप भयंकर है। वे विधवा हैं, परंतु ज्ञान और वैराग्य की देवी भी। उनका वाहन कौवा है जो मृत्यु का प्रतीक है। वह बताती हैं कि जो शोक और अकेलेपन को स्वीकार करता है, वही परम सत्य के निकट पहुंचता है।
रहस्य: धूमावती संसार के मिथ्यात्व को दर्शाती हैं। जो सच्चे साधक होते हैं, वे संसार के सुख-दुख दोनों से ऊपर उठकर उस धुएँ को देखते हैं जिससे सब कुछ ढका है। यह धुआँ हटता है तो ब्रह्म ही ब्रह्म दिखाई देता है।
## 8. बगलामुखी – वाणी और शत्रु पर नियंत्रण
प्रतीक: शत्रु का मुँह पकड़ना, पीला रंग
भाव: नियंत्रण, स्थिरीकरण, विजय
तांत्रिक महत्व: वाणी सिद्धि, शत्रुनाश
बगलामुखी साधक को मानसिक और बाह्य संघर्षों पर नियंत्रण प्रदान करती हैं। उनका प्रमुख कार्य है वाणी और विचारों को स्थिर करना। वे केवल शत्रु का नाश नहीं करतीं, बल्कि मन के द्वंद्वों को भी शांत करती हैं।
रहस्य: बगलामुखी की साधना मन की चंचलता को बांधने की प्रक्रिया है। जो साधक अपनी वाणी, विचार और व्यवहार को स्थिर कर लेता है, वही संसार में विजयी होता है।
## 9. मातंगी – अंतःकरण की सम्राज्ञी
प्रतीक: वीणा, हरा रंग, ज्ञान
भाव: कला, संगीत, वाणी की चेतना
तांत्रिक महत्व: शुद्ध वाणी, ज्ञान और कल्पना का जागरण
मातंगी को तांत्रिक सरस्वती भी कहा जाता है। वे उन साधकों की अधिष्ठात्री हैं जो लेखन, संगीत, कला, और भाषिक शक्तियों के क्षेत्र में हैं। उनकी साधना से साधक के भीतर दिव्य वाणी और अभिव्यक्ति का आविर्भाव होता है।
रहस्य: मातंगी चेतना के उस स्तर को जागृत करती हैं जहाँ भाषा स्वयं दिव्य हो जाती है। उनका साधक बोलता नहीं, वाणी बहती है। संगीत और शब्द में ब्रह्म की लहरें होती हैं।
## 10. कमला – समृद्धि और शांति की पूर्णता
प्रतीक: कमल, हाथी, लक्ष्मी
भाव: ऐश्वर्य, संतुलन, शांति
तांत्रिक महत्व: तांत्रिक लक्ष्मी की उपासना
कमला देवी लक्ष्मी का तांत्रिक स्वरूप हैं। वे केवल धन ही नहीं देतीं, बल्कि आत्मा को समृद्धि, संतुलन और सामंजस्य का अनुभव कराती हैं। उनके हाथों से अमृत बहता है, और साधक को उसकी मनोकामना सिद्धि मिलती है।
रहस्य: कमला की साधना बताती है कि धन और ऐश्वर्य तभी फलित होता है जब साधक संतुलन में हो। केवल बाह्य वैभव नहीं, अपितु आंतरिक संतोष और शांति भी चाहिए।
दस महाविद्याएँ दस दिशाओं की तरह हैं – हर दिशा किसी एक सत्य की ओर ले जाती है "तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही शक्ति"।
- काली बताती हैं – मृत्यु के पार ही जीवन है।
- तारा कहती हैं – तू डूबेगा नहीं, मैं हूँ।
- त्रिपुरसुंदरी मधुरता में ब्रह्म को प्रकट करती हैं।
- भुवनेश्वरी कहती हैं – सब मुझमें है।
- छिन्नमस्ता कहती हैं – त्याग से ही शक्ति मिलेगी।
- भैरवी सिखाती हैं – अनुशासन से सिद्धि होती है।
- धूमावती कहती हैं – शून्यता में ही पूर्णता है।
- बगलामुखी कहती हैं – मन को स्थिर कर, विजयी हो।
- मातंगी कहती हैं – बोल, ब्रह्म बन जा।
-कमला कहती हैं – समृद्धि तब मिलेगी जब संतुलन होगा।