- धार्मिक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक प्रस्तुति में
निर्जला एकादशी, सभी एकादशियों में सर्वोत्तम मानी जाती है। यह 'भीमसेनी एकादशी' भी कहलाती है। यह ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है। इस वर्ष यह व्रत 6 जून 2025 को है। अन्य सभी 24 एकादशियों के पुण्य का फल केवल 'निर्जला एकादशी' के एकमात्र व्रत से ही प्राप्त हो जाता है, इसीलिए इसे "महाएकादशी" भी कहा गया है। यह उपवास जल तक का त्याग करके किया जाता है, इसलिए इसका नाम पड़ा "निर्जला"।
व्रत कथा का मूल प्रसंग और भीम और व्यासजी का संवाद
एक समय की बात है, जब पांडव वनवास काल में थे। श्रीव्यासजी ने उन्हें हर एकादशी का उपवास करने का उपदेश दिया। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सबने श्रद्धा से उस व्रत को अंगीकार कर लिया। परंतु बलशाली भीमसेन बोले:" भगवन्! मैं भोजन के बिना रह सकता हूं, लेकिन जल के बिना नहीं। मेरी अग्नि (पाचनशक्ति) अत्यंत प्रबल है, मैं भूखा नहीं रह सकता। तो क्या मुझे एकादशी व्रत का पुण्य नहीं मिलेगा?"
व्यासजी मुस्कराए और बोले, "हे भीम! यदि तुम पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य चाहते हो, परंतु उपवास नहीं कर सकते, तो एक उपाय है निर्जला एकादशी। इस दिन न जल ग्रहण करना, न अन्न। यदि तुम यह एक व्रत कर सको, तो वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल तुम्हें मिलेगा।"
भीमसेन ने यह व्रत रखा जल भी नहीं पिया। व्रत के प्रभाव से वे अत्यंत पीड़ित हुए, किंतु उन्होंने धैर्य नहीं खोया। अगले दिन द्वादशी को उन्होंने विधिपूर्वक पारण किया। तभी से यह व्रत "भीमसेनी एकादशी" कहलाया।
निर्जला एकादशी का महत्व: यह व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत जल, अन्न, फल सभी का त्याग कर उपवास और ईश्वर भक्ति में लीन रहने से सिद्ध होता है।
जो इस दिन जल भी नहीं पीता, वह अग्नि, वायु, जल और मन को वश में कर लेता है ऐसा शास्त्रों का मत है। यह व्रत दान, जप, कीर्तन, सत्संग और ध्यान से समृद्ध होता है।
व्रत विधि संक्षेप में :
1. व्रत की पूर्व रात्रि को सात्विक भोजन करें।
2. एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान, संकल्प और पूजा करें।
3. दिनभर अन्न, जल, फल, जलपान आदि कुछ भी न लें।
4. भगवान विष्णु का पूजन करें तुलसी पत्र, पीला वस्त्र, नारियल, पंचामृत से स्नान, दीप-धूप आदि अर्पण करें।
5. विष्णु सहस्रनाम, गीता पाठ, भगवत कथा का श्रवण करें।
6. रात्रि को जागरण एवं भजन कीर्तन करें।
7. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण भोजन, दान-दक्षिणा देकर पारण करें।
विशेष मान्यता है कि जो व्यक्ति यह व्रत करता है, वह यमलोक नहीं जाता, वरन् वैकुण्ठधाम को प्राप्त होता है।
यह व्रत करने से जलदान, वस्त्रदान, अन्नदान, तीर्थ स्नान, गौदान आदि का फल सहज ही प्राप्त हो जाता है।
विधवा, वृद्ध, रोगी, असमर्थ व्यक्ति भी यदि केवल यह एक व्रत कर लें, तो उन्हें पूरे वर्ष का पुण्य प्राप्त होता है।
पुराणों के अनुसार इस व्रत का वर्णन
पद्म पुराण और स्कंद पुराण में इस व्रत का विस्तृत वर्णन मिलता है। पद्म पुराण में कहा गया है-
"एकादश्यां जलं त्यक्त्वा यो जनो व्रतमाचरेत्।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥"
अर्थात "जो व्यक्ति एकादशी के दिन जल का भी त्याग कर व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर श्रीविष्णु के लोक को प्राप्त करता है।"
निर्जला एकादशी केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्म संयम, संकल्प, और श्रद्धा का प्रतीक है। यह व्रत मनुष्य को सिखाता है कि इंद्रियों पर नियंत्रण, जल-तृष्णा का दमन और भक्ति की अग्नि में तपकर ही दिव्यता प्राप्त की जा सकती है। यह हमें भीतर से शुद्ध, संयमी और भक्तिमय बनाता है।
निर्जला एकादशी वह दिव्य अवसर है जब हम तन-मन से तपकर, भक्ति और त्याग के मार्ग पर चलते हुए भगवान विष्णु की शरण में आते हैं। यह व्रत केवल कष्ट सहने का नाम नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि की महान साधना है। जो व्यक्ति यह एक व्रत श्रद्धापूर्वक करता है, वह जीवन में सत्कर्मों की शक्ति, ईश्वर भक्ति की अनुभूति, और अंतिम समय में प्रभु का साक्षात्कार प्राप्त करता है।
जय श्री हरि