विनोद कुमार झा
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की आराधना का सर्वोत्तम दिन माना जाता है, जिसमें व्यक्ति आत्मशुद्धि, पुण्य-संचय और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली योगिनी एकादशी व्रत, उन सभी एकादशियों में अद्भुत और विशेष मानी जाती है। यह तिथि इस वर्ष 21 जून 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
योगिनी एकादशी व्रत न केवल आत्मा के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि यह व्यक्ति को रोग, दरिद्रता और पापबुद्धि से भी दूर करता है। पुराणों में वर्णित है कि यह व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। विशेषकर जो व्यक्ति संतानहीन, रोगग्रस्त, कर्ज से परेशान या पापबद्ध जीवन से मुक्ति चाहते हैं – उनके लिए यह व्रत कल्याणकारी माना गया है।
इस व्रत का मुख्य उद्देश्य है आत्मा की शुद्धि, मन की स्थिरता और भगवान विष्णु की अनन्य भक्ति के माध्यम से आध्यात्मिक जागृति। योगिनी एकादशी का संबंध न केवल दैहिक पवित्रता से है, बल्कि मानसिक एवं आत्मिक शुद्धि से भी है। यह तिथि उस व्यक्ति के लिए विशेष है जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन चाहता है और पुनः धर्ममय जीवन की ओर लौटना चाहता है।
पौराणिक मान्यता अनुसार, योगिनी एकादशी के व्रत से समस्त जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत कर्मों की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन बनता है। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, जो भी श्रद्धा और भक्ति से इस एकादशी का व्रत करता है, उसे स्वर्गलोक में दिव्य स्थान प्राप्त होता है और जीवन में अभाव, दुःख व रोग नहीं टिकते।
योगिनी एकादशी व्रत की विधि:
- व्रत की पूर्व रात्रि (20 जून 2025) को सात्विक भोजन कर 'एकादशी संकल्प' लें।
- एकादशी के दिन (21 जून) प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु के श्रीविग्रह या चित्र के सामने दीप जलाकर पूजा प्रारंभ करें।
- तुलसी पत्र, पंचामृत, धूप, दीप, फूल और पीले वस्त्रों से भगवान विष्णु की विधिवत आराधना करें।
- व्रती को पूरे दिन अन्न त्याग कर फलाहार अथवा जलव्रत के साथ भगवान का नामस्मरण करते रहना चाहिए।
- दिन में “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करना उत्तम होता है।
- रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन करें।
- द्वादशी के दिन (22 जून 2025) प्रातः किसी ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
योगिनी एकादशी का महत्व:
- यह व्रत रोग, ऋण, दरिद्रता और पाप से मुक्ति दिलाने वाला होता है।
- विशेष रूप से शरीर की दुर्बलता, कुष्ठ रोग और मानसिक क्लेशों से ग्रसित व्यक्ति के लिए यह व्रत अमृत तुल्य है।
- जिनके जीवन में दाम्पत्य कलह, संतान की चिंता या कार्यक्षेत्र में बाधा हो, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है।
- इस व्रत के प्रभाव से मृत्युपरांत व्यक्ति को विष्णु लोक प्राप्त होता है और उसे पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता।
पौराणिक कथा संक्षेप में: अलका नगरी में कुबेर के राजा के सेवक हेममाली ने अपनी पत्नी से मिलने के कारण भगवान शिव की पूजा में विलंब किया था। इस अपराध से रुष्ट होकर ऋषि ने उसे कुष्ठ रोगी होने का श्राप दिया। वर्षों तक भटकने के बाद जब हेममाली मथुरा पहुँचा, तो वहां मुनी मार्कण्डेय ने उसे योगिनी एकादशी व्रत की महिमा बताई। विधिपूर्वक व्रत करने से वह सभी दोषों से मुक्त हो गया और उसका शरीर पहले जैसा तेजस्वी हो गया।
अतः योगिनी एकादशी व्रत जीवन में पवित्रता, संयम और आध्यात्मिक जागरण लाने का सशक्त साधन है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा एवं नियमपूर्वक यह व्रत करता है, उसे निश्चित ही सांसारिक दुःखों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।