विनोद कुमार झा
भारत की सनातन भूमि पर जल का महत्व केवल भौतिक प्यास बुझाने तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि यह आध्यात्मिक चेतना और मुक्ति का माध्यम रहा है। जहां एक ओर गंगा , जमुना और सरस्वती जैसी नदियों ने हमारी सभ्यता को आकार दिया, वहीं दूसरी ओर कुछ सरोवर ऐसे हैं जो रहस्यमय घटनाओं, ऋषि-मुनियों के तप, और दिव्य शक्तियों के प्रभाव से जुड़े हुए हैं। इन सरोवरों का उल्लेख ना केवल पुराणों में है, बल्कि स्थानीय लोककथाओं और तीर्थ यात्राओं में भी होता है। लेकिन इन पांच विशेष सरोवरों का रहस्य आज भी लोगों को चौंकाता और आकर्षित करता है मानो समय स्वयं इन जलराशियों में स्थिर हो गया हो।
हर सरोवर एक कथा है। कोई किसी ऋषि के श्राप का परिणाम है, तो कोई किसी देवी के नेत्रों से बहकर बना है। कुछ सरोवरों में अमावस्या की रात को विचित्र प्रकाश प्रकट होते हैं, तो कुछ में ध्यान करने वाले साधकों को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। विज्ञान इन घटनाओं को संयोग कहता है, लेकिन श्रद्धालु इन्हें ईश्वर की लीला मानते हैं। इन सरोवरों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये पंचतत्त्वों में संतुलन बनाए रखने वाले केंद्र माने जाते हैं, और इन्हीं के माध्यम से आत्मा को परमशांति प्राप्त हो सकती है ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।
इन पांच सरोवरों की यात्रा केवल भौगोलिक नहीं है, यह एक आध्यात्मिक अनुभव है। इन जलाशयों के किनारे खड़े होकर व्यक्ति को न केवल आत्मनिरीक्षण का अवसर मिलता है, बल्कि पूर्वजन्मों के कर्म भी धीरे-धीरे उसकी चेतना में उजागर होने लगते हैं। कुछ सरोवरों का पानी कभी नहीं सूखता, कुछ में स्नान करने से असाध्य रोग दूर हो जाते हैं। ये केवल मान्यताएं नहीं हैं, इनसे जुड़े हजारों वर्षों के अनुभव, कथाएं और संतों के वचनों ने इन्हें दिव्यता प्रदान की है।
इस कहानी में हम आपको लेकर चलेंगे उन पांच रहस्यमयी सरोवरों की यात्रा पर, जिनका नाम आते ही साधकों की चेतना जाग्रत हो जाती है। यह कहानी केवल रहस्यों का उद्घाटन नहीं करती, यह जीवन के उस छिपे सत्य से भी परिचय कराती है जो जल की शांति में, पत्तियों की सरसराहट में और भक्त के अश्रु में गूंजता है।
आइए, हम इस गूढ़ यात्रा पर चलें एक साधक की तरह, एक श्रोता की तरह, एक श्रद्धालु की तरह और जानें उन पांच सरोवरों का रहस्य जो सदियों से हमारे धर्मग्रंथों और जनश्रुतियों में जीवित हैं।
1. नेत्रकुंड सरोवर : हिमालय की तलहटी में, केदारनाथ से उत्तर-पश्चिम की ओर एक निर्जन वन में बसा है नेत्रकुंड। यह सरोवर पृथ्वी पर देवताओं के आँसुओं से बना माना जाता है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने सती के शरीर को लेकर तांडव किया, तब देवताओं ने ब्रह्मा के साथ मिलकर शिव को शांत करने के लिए प्रार्थना की। ब्रह्मा के नेत्रों से आँसू बहे और जहां वो गिरे, वहां यह कुंड बना।
इस कुंड का जल अंधे व्यक्ति को दृष्टि देता है ऐसा विश्वास है। लेकिन केवल बाहरी नहीं, भीतर की दृष्टि। कई साधक यहाँ वर्षों तक मौनव्रत लेकर ध्यान करते हैं और कहते हैं कि एक दिन एक दिव्य प्रकाश आंखों में उतर आता है जो आत्मा को उसका पूर्वजन्म दिखा देता है।
नेत्रकुंड का जल कभी नहीं सूखता, न ही इस पर काई जमती है। स्थानीय लोग कहते हैं कि पूर्णिमा की रात इस सरोवर में एक दिव्य नेत्र प्रकट होता है जो कुछ पल के लिए चमकता है और फिर जल में समा जाता है। इसे देखने वाला व्यक्ति अगले सात जन्मों के लिए मोह-माया से मुक्त हो जाता है।
2. कालसरोवर : दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली जिले में एक प्राचीन मंदिर के पीछे छिपा है कालसरोवर। यह सरोवर उतना विशाल नहीं जितना बाकी, लेकिन इसका रहस्य सबसे गहन है। कहा जाता है, यह सरोवर एक ऋषि के श्राप से बना था।
ऋषि अगस्त्य के शिष्य त्रिपुंडक एक बार गुरुकुल में ईर्ष्या के वशवर्ती होकर अपने सहपाठी पर झूठा दोष मढ़ बैठे। गुरु ने सत्य जानकर उन्हें श्राप दिया “तेरा मन जैसे विषाक्त हुआ है, वैसे ही तेरा शरीर भी विष से भरे जल में समा जाए।” उसी क्षण त्रिपुंडक ने आत्मदाह कर लिया, और जहां उन्होंने अपने प्राण छोड़े, वहां यह सरोवर बना।
लेकिन यह सरोवर केवल नकारात्मकता नहीं देता यह आत्मशुद्धि का केंद्र है। यहां स्नान करने से व्यक्ति के भीतर छिपा पाप स्वयं सामने आता है। जो इसे सह सके, वह मुक्त हो जाता है। किंतु जिसने झूठी आस्था रखी, उसके शरीर पर जल से छाले पड़ जाते हैं यह भी अनेक यात्रियों ने अनुभव किया है।
3. कनक सरोवर : गुजरात की कच्छ रेखा में, रेगिस्तान के किनारे, एक ऐसा सरोवर है जो किसी मृगतृष्णा जैसा प्रतीत होता है। इसका नाम है कनक सरोवर है। इसे “इच्छाओं का सरोवर” भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यहां एक विशेष काल में, यदि कोई अपनी प्रबलतम इच्छा के साथ स्नान करता है, तो वह पूर्ण होती है लेकिन केवल तभी, जब वह इच्छा दूसरों के कल्याण के लिए हो।
इस सरोवर की उत्पत्ति की कथा देवी ललिता से जुड़ी है। जब वे ब्रह्मांड की नकारात्मक शक्तियों से युद्ध कर रही थीं, तब उन्होंने अपने स्वर्ण कमंडलु से जल छिड़ककर एक विशाल कुंड बनाया, जिसमें हर घायल देवता को डुबोकर फिर से जीवित कर दिया गया। उस जल में अब भी वह शक्ति शेष है।
आज भी लोग यहां आकर संतान प्राप्ति, मानसिक शांति या संसार से वैराग्य के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन इस सरोवर का असली रहस्य यह है कि यह व्यक्ति के भीतर की *सच्ची* इच्छा को उजागर कर देता है। यहां बैठते ही व्यक्ति को खुद समझ में आने लगता है कि उसकी प्रार्थना क्या होनी चाहिए। यह एक चमत्कार नहीं, चेतना का उत्कर्ष है।
4. चंद्रहंस ताल : पश्चिम बंगाल की सीमावर्ती पहाड़ियों में छिपा है चंद्रहंस ताल एक ऐसा सरोवर जिसके जल को “अमृत-स्पर्शी” कहा गया है। यह सरोवर शुकदेव ऋषि की साधना भूमि रहा है। मान्यता है कि इस ताल में एक दिव्य हंस हर पूर्णिमा को स्नान करने आता है, और उसका प्रतिबिंब उस व्यक्ति को दिखाई देता है जिसने जीवन में कभी किसी को दुःख न दिया हो।
इस सरोवर में स्नान करने से वृद्धों को नवयौवन का अनुभव होता है ऐसा वहां के संन्यासियों का कहना है। लेकिन इसका रहस्य केवल शरीर से नहीं, मन से जुड़ा है। जो व्यक्ति वर्षों की तपस्या से अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पा लेता है, उसे चंद्रहंस के दर्शन होते हैं।
पौराणिक कथाओं में यह भी कहा गया है कि यही वह सरोवर है जहां चंद्रदेव स्वयं अमावस्या की रात आत्ममंथन करने आते हैं। उनके अश्रु जब इस ताल में गिरते हैं, तब यह और भी शक्तिशाली बन जाता है। यह वह जल है जो व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के बीच के सूक्ष्म धागों का अनुभव कराता है।
5. विष्णुपद सरोवर : मध्य प्रदेश के एक घने वन क्षेत्र में स्थित है विष्णुपद सरोवर ऐसा कहा जाता है कि यह वही स्थल है जहां भगवान विष्णु कल्कि अवतार के समय धरती पर पग रखेंगे। यह सरोवर वर्तमान में सूक्ष्म ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, जो प्रत्येक युगांत से पहले सक्रिय होता है।
यहां न कोई पुजारी होता है, न मंदिर, न मूर्ति केवल एक विशाल वृक्ष और उसके नीचे शांत जल। सरोवर के बीचोंबीच एक चट्टान है, जिस पर विष्णुपद की आकृति स्वयंभू रूप से अंकित है। पुरातत्ववेत्ताओं ने जब इसका अध्ययन किया, तो पाया कि यह आकृति कभी कोई मानव द्वारा तराशी नहीं गई यह प्रकृति की रहस्यमयी देन है।
कई साधकों ने बताया कि यहां ध्यान करते हुए उन्हें भविष्य के दर्शन होते हैं, युद्ध, शांति, विनाश और नवसृजन के संकेत। यहां जल में देखने से केवल चेहरा नहीं, आत्मा की यात्रा दिखती है। यह सरोवर प्रतीक्षा का प्रतीक है प्रतीक्षा उस घड़ी की, जब अधर्म का अंत और धर्म की पुनः स्थापना होगी।
इन पांच सरोवरों की यात्रा केवल बाहरी तीर्थ नहीं, यह अंतर्मन की खोज है। नेत्रकुंड दृष्टि देता है, कालसरोवर पाप उजागर करता है, कनक सरोवर इच्छाओं की सच्चाई बताता है, चंद्रहंस ताल आत्मा को अमृत से जोड़ता है, और विष्णुपद सरोवर आने वाले युग की प्रतीक्षा कराता है। ये सरोवर हमारे भीतर के पांच तत्वों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं नेत्रकुंड (आकाश), कालसरोवर (पृथ्वी), कनक सरोवर (अग्नि), चंद्रहंस ताल (जल), विष्णुपद सरोवर (वायु)। जब व्यक्ति इन तत्वों में संतुलन बना लेता है, तभी वह आत्मसाक्षात्कार कर पाता है।
इसलिए, ये सरोवर केवल भूगोल नहीं, आत्मा के मानचित्र हैं। आज के युग में जब आस्था कमजोर पड़ रही है, ये सरोवर हमें याद दिलाते हैं कि सत्य की खोज कभी असंभव नहीं होती बस पानी में झांकने की हिम्मत चाहिए। इन पंचसरोवरों की यात्रा करने वाले हजारों नहीं, लाखों साधकों की गाथाएं आज भी भारत के कण-कण में गूंजती हैं। क्या आप भी कभी अपने भीतर के सरोवर में झांकने का साहस करेंगे?