प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया साइप्रस यात्रा न केवल भारत की विदेश नीति के लिहाज से महत्वपूर्ण रही, बल्कि यह यात्रा भारत की आर्थिक क्षमता और वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते कदमों का प्रतीक भी बनकर उभरी। तीन देशों की यात्रा के पहले चरण में साइप्रस की भूमि से प्रधानमंत्री मोदी का यह स्पष्ट संदेश कि “भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा”, केवल एक आकांक्षा नहीं, बल्कि भारतीय आर्थिक संरचना में हो रहे ठोस बदलावों की वास्तविकता है।
प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य उस आर्थिक क्रांति की पुष्टि करता है जो भारत ने बीते एक दशक में झेली है। कर सुधारों से लेकर वस्तु एवं सेवा कर (GST) तक, नीतिगत पारदर्शिता से लेकर व्यापार में आसानी और निवेश के अनुकूल वातावरण तक भारत ने वह आधारभूत परिवर्तन किए हैं जो आज उसे वैश्विक निवेश का केन्द्र बना रहे हैं। यही नहीं, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे अभियानों ने भारतीय युवाओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कार्य किया है।
साइप्रस के साथ व्यापारिक गोलमेज बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा कृत्रिम मेधा (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर, और महत्त्वपूर्ण खनिजों जैसे उभरते क्षेत्रों में भारत की क्षमताओं को रेखांकित करना इस बात का संकेत है कि भारत अब केवल परंपरागत उद्योगों पर निर्भर नहीं रह गया है, बल्कि वह भविष्य की तकनीकों में भी निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी में है। साथ ही, भारतीय कुशल प्रतिभा और स्टार्ट-अप संस्कृति का उल्लेख करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत केवल आर्थिक शक्ति ही नहीं, बल्कि “नवाचार और मानवीय संसाधनों” का भी महाशक्ति है। इस यात्रा की खास बात यह भी रही कि 23 वर्षों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने साइप्रस की धरती पर कदम रखा और द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों को प्राथमिकता दी। यह इस ओर संकेत करता है कि भारत अब पारंपरिक कूटनीतिक सीमाओं से आगे बढ़ते हुए “नए सहयोगियों” और “नए बाज़ारों” की ओर भी देख रहा है। यूरोप के छोटे लेकिन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण देश साइप्रस में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए अवसर तलाशना भारत की बहुस्तरीय विदेश नीति का परिचायक है।
भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत इस बात की मांग करती है कि हमारी नीतियां दीर्घकालीन सोच पर आधारित हों। 'Ease of Doing Business'और 'Trust of Doing Business' जैसे नए मापदंडों की बात करके प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि भारत अब सिर्फ आंकड़ों की अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि विश्वास की भी अर्थव्यवस्था बन चुका है। यह विश्वास ही है जो अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और निवेशकों को भारत की ओर खींच रहा है। साइप्रस के साथ इस नए दौर की शुरुआत एक ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया आर्थिक रूप से अस्थिरता के दौर से गुजर रही है कभी मंदी, कभी युद्ध, कभी महामारी। ऐसे में भारत का आत्मविश्वास से भरा यह स्वर कि हम जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे, न केवल आत्मबल का परिचायक है बल्कि यह वैश्विक दक्षिण के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।
भारत अब केवल उपभोक्ता बाज़ार नहीं, बल्कि उत्पादक शक्ति बनकर उभर रहा है। यह समय है जब हम देश के युवाओं, उद्यमियों और निवेशकों को प्रोत्साहित करें कि वे भारत को वैश्विक आर्थिक पटल पर अग्रणी बनाने में अपनी भूमिका निभाएं। प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस दौरा केवल एक यात्रा नहीं था, बल्कि यह भारत की बढ़ती हुई आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति का उद्घोष था। भारत का दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना अब केवल आकांक्षा नहीं रह गया है, वह एक सुनिश्चित दिशा की ओर गतिशील सत्य बन चुका है। हमें इस दिशा में पूरी निष्ठा, दूरदर्शिता और समर्पण के साथ आगे बढ़ना होगा ताकि भारत “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना के साथ विश्व का आर्थिक नेतृत्व भी कर सके।
-विनोद कुमार झा