विनोद कुमार झा
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की शांत वादियाँ, जो कभी केवल पर्यटन और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती थीं, एक बार फिर आतंक के साये में डूब गईं। बैसरन घाटी में हुए भीषण आतंकी हमले ने न केवल 26 निर्दोष पर्यटकों की जान ले ली, बल्कि देश की सुरक्षा व्यवस्था और पड़ोसी पाकिस्तान के साथ संबंधों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
हमले के पीछे का चेहरा और रणनीति
हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है। यह नाम कोई नया नहीं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर में युवाओं को उकसाकर हिंसा की आग भड़काने वाला संगठन है। इस हमले की टाइमिंग और टारगेटिंग दर्शाती है कि इसका मकसद केवल जान-माल की हानि नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक स्थिरता और वैश्विक छवि को चोट पहुँचाना भी था।
सीज़फायर की संधि: खोखला होता वादा?
फरवरी 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम का पुनः पालन करने की सहमति बनी थी। यह समझौता उम्मीद की एक किरण लेकर आया था कि शायद सीमा पार से आतंक की सप्लाई लाइन थमेगी। लेकिन इस हमले के बाद साफ हो गया है कि पाकिस्तान की ओर से जारी ‘प्रॉक्सी वॉर’ में कोई ठोस बदलाव नहीं आया। LOC पर बार-बार संघर्ष विराम उल्लंघन और आतंकी घुसपैठ की घटनाएँ इस संधि को खोखला साबित कर रही हैं।
भारत-अमेरिका संवाद: वैश्विक कूटनीति का नया अध्याय
ऐसे संवेदनशील समय में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ के बीच बातचीत महत्वपूर्ण है। इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अपने अमेरिकी समकक्ष से वार्ता की थी। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत, आतंकी हमलों को केवल एक स्थानीय सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के हिस्से के रूप में देख रहा है। भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी इस दिशा में बड़ा हथियार बन सकती है चाहे वह इंटेलिजेंस साझा करना हो, आधुनिक सैन्य तकनीक का आदान-प्रदान हो, या कूटनीतिक दबाव बनाना।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय एकता की कसौटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई कैबिनेट सुरक्षा समिति (CCS) की बैठक और उसके बाद हुई राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA) की बैठक इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार स्थिति को बेहद गंभीरता से ले रही है। विपक्ष द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग भी राजनीतिक विमर्श की आवश्यकता को रेखांकित करती है। आतंकी हमलों के संदर्भ में राजनीतिक और नीतिगत एकजुटता जितनी जरूरी है, उतनी ही संवेदनशीलता और दूरदर्शिता की जरूरत भी है।
आगे की राह: जवाब और सुधार दोनों जरूरी
पहलगाम हमला एक बार फिर बता रहा है कि केवल सैन्य कार्रवाई या सीमा प्रबंधन पर्याप्त नहीं होगा। हमें चार स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है:
खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना: स्थानीय और सीमा पार गतिविधियों पर सटीक सूचना तंत्र।
डिप्लोमैटिक प्रेशर: पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से दबाव।
आंतरिक सुरक्षा का आधुनिकीकरण: सुरक्षाबलों को तकनीकी और मानव संसाधन से लैस करना।
राजनीतिक सहमति: सभी दलों को मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर साझा नीति बनानी होगी।
पहलगाम का यह हमला केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है न केवल भारत के लिए, बल्कि उन सभी देशों के लिए जो आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की बातें करते हैं। भारत को इस चुनौती का सामना मजबूती, सूझबूझ और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ करना होगा, तभी शांति की राह को फिर से मजबूत किया जा सकेगा।