सात कुल पर्वतों का रहस्य क्या है ?

 विनोद कुमार झा

जानिए धर्म, भूगोल और आध्यात्मिक प्रतीकों से भरा एक पुराणप्रसिद्ध रहस्य!

भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में भूगोल केवल भौगोलिक सीमाओं का वर्णन नहीं करता, बल्कि वह एक आध्यात्मिक प्रतीक-प्रणाली के रूप में कार्य करता है। पृथ्वी के सात द्वीपों, सात समुद्रों, सात नदियों और सात कुल पर्वतों की कल्पना केवल मानचित्रण नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा, धर्म की स्थिति और सनातन सत्य के अनावरण का संकेत है। सात कुल पर्वत महेंद्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र  न केवल भारत के भूगोल में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि धर्मशास्त्रों और पुराणों की दृष्टि से अत्यंत रहस्यमय, पावन और आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

सात कुल पर्वतों का नाम और पहचान इस प्रकार है :-

1. महेंद्र पर्वत : पुराणों में उल्लेख : विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण और महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है।

 भौगोलिक स्थिति : ओडिशा के गजपति और गंजम जिलों की सीमा पर स्थित।

 धार्मिक महत्त्व : यहीं पर भगवान परशुराम ने तपस्या की थी और यहीं से उन्होंने क्षत्रियों का विनाश आरंभ किया था। इसे एक तपोभूमि माना गया है।

2. मलय पर्वत : इस पर्वत का स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण, वायु पुराण में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।

 भौगोलिक स्थिति : दक्षिण भारत के पश्चिमी घाटों से संबंधित, केरल और तमिलनाडु में फैला हुआ।

 धार्मिक महत्त्व: इसे चन्दन पर्वत भी कहते हैं  पौराणिक मान्यता है कि यहीं से मलयगिरि चंदन की सुगंध आती है। विष्णु, शिव और अनेक ऋषियों की तपस्थली मानी जाती है।

3. सह्य पर्वत : इस पर्वत का भागवत पुराण, पद्म पुराणों में विस्तार से वर्णन किया गया है।

भौगोलिक स्थिति : पश्चिमी घाट की एक श्रृंखला, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल से होकर जाती है।

धार्मिक महत्त्व : यह क्षेत्र भगवान कार्तिकेय, दत्तात्रेय और श्रीपाद वल्लभ जैसे देवों व संतों से जुड़ा हुआ है। सह्याद्री में अनेक संतों ने तप किया।

4. शुक्तिमान पर्वत : इस पर्वतों का वायु पुराण , मत्स्य पुराण , ब्रह्माण्ड पुराणों में वर्णित है।

   भौगोलिक स्थिति : यह पर्वत मध्य भारत में विंध्य और सतपुड़ा श्रेणियों के मध्य माना जाता है।

 धार्मिक महत्त्व : इसका नाम शुक्ति (सीप) से निकला है, जिससे मोती बनता है यह ज्ञान का प्रतीक है। इसे ऋषियों की तपोभूमि माना गया है।

5. ऋक्ष पर्वत : इस पर्वत का रामायण, विष्णु पुराण, महाभारत में वर्णित है।

   भौगोलिक स्थिति : यह भी सतपुड़ा और विंध्य क्षेत्र में माना जाता है, विशेषतः मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हिस्सों में।

  धार्मिक महत्त्व : ऋक्ष नाम ‘ऋषि’ से जुड़ा है — यहाँ अनेक ऋषियों ने वास किया। भगवान राम का वनवासकाल यहीं बीता।

6. विंध्य पर्वत का  स्कंद पुराण , महाभारत और रामायण में उल्लेखित किया गया है।

  भौगोलिक स्थिति : मध्य भारत की पर्वत श्रृंखला, जो उत्तर और दक्षिण भारत को विभाजित करती है।

 धार्मिक महत्त्व : विन्ध्याचल देवी की उपासना का प्रमुख स्थान, शक्ति की ऊर्जा से परिपूर्ण। भगवान राम ने चित्रकूट और पंचवटी इसी श्रृंखला में बिताया।

7. पारियात्र पर्वत :  इस पर्वतों का वायु पुराण , महाभारत, हरिवंश पुराणों में वर्णित है।

 भौगोलिक स्थिति : यह पर्वत मालवा क्षेत्र, गुजरात और राजस्थान के पास स्थित माना जाता है।

  धार्मिक महत्त्व : भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में कई बार इस पर्वत का संदर्भ दिया। इसे पश्चिम दिशा का रक्षक माना गया है।

इन सात पर्वतों का पुराणिक रहस्य

1. धर्म के सात स्तंभ : यह पर्वत धर्म, तप, साधना, शक्ति और ब्रह्मज्ञान के सात प्रमुख आधार स्तंभ हैं। हर पर्वत एक विशेष आध्यात्मिक गुण को दर्शाता है  जैसे मलय सौम्यता , विंध्य शक्ति, महेंद्र तपस्या।

2. ऋषियों की तपोभूमि :  इन पर्वतों को सप्तऋषियों की तपोभूमि माना जाता है। इन पर्वतों के आश्रमों में वर्षों तक योग, ध्यान और ब्रह्मचिंतन होता रहा।

3. उत्तर-दक्षिण का सेतु : सह्य और मलय दक्षिण भारत में, विंध्य और महेंद्र मध्य भारत में  ये पर्वत भारत की सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं।

4. गुरुत्व और पवित्रता का प्रतीक :  इन पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ जैसे गोदावरी, कृष्णा, तापी, महानदी  जीवनदायिनी हैं। इन पर्वतों पर स्थित गुफाओं, आश्रमों और मंदिरों ने भारत की आध्यात्मिक चेतना को जीवित रखा।

5. ज्योतिष और ज्योतिर्विज्ञान में भी स्थान :  कई शास्त्रों में कहा गया है कि ये पर्वत ‘अग्निकुंडों’ और ‘नक्षत्राधारों’ के स्थल हैं। यज्ञों के लिए इन पर्वतों से विशेष लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ और जल लाया जाता था।

पुराणों के अनुसार वर्णन

विष्णु पुराण (2.3.1) में स्पष्ट उल्लेख है कि भारतवर्ष में सात कुल पर्वतों से सात पवित्र नदियाँ निकलती हैं और वे नदियाँ जीवन, मोक्ष और ज्ञान का प्रतीक हैं। "सप्त कुल पर्वतानाम् मूलं धर्मस्य प्रतिष्ठा" यह वाक्य दर्शाता है कि इन पर्वतों पर धर्म की नींव टिकी है।

मत्स्य पुराण में बताया गया है कि ये सात पर्वत सप्तलोकों के साथ संवाद करते हैं। ये पर्वत ही धरती के ऊर्जा-केंद्र हैं।

आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतीकात्मक अर्थ

| पर्वत     | प्रतीक            | गुण                  |

| --------- | ----------------- | -------------------- |

| महेंद्र   | परशुराम की तपस्या | संयम व विनम्रता      |

| मलय       | चन्दन की सुगंध    | निर्मलता व भक्ति     |

| सह्य      | संतों की भूमि     | सेवा और तप           |

| शुक्तिमान | मोती का स्रोत     | ज्ञान और वैराग्य     |

| ऋक्ष      | ऋषियों का क्षेत्र | ध्यान और ब्रह्मज्ञान |

| विंध्य    | शक्ति पीठ         | बल, आत्मरक्षा        |

| पारियात्र | कृष्ण का क्षेत्र  | संतुलन व धर्मस्थापन  |

क्यों स्मरणीय हैं ये सात पर्वत?

इन सात पर्वतों का उल्लेख केवल भूगोल नहीं, धर्म का मानचित्र है। ये पर्वत हमें याद दिलाते हैं कि आध्यात्मिक उन्नति के सात सोपान क्या हैं  तप, भक्ति, सेवा, ज्ञान, ध्यान, शक्ति और धर्मस्थापन।

आज के युग में जब मनुष्य भटक रहा है, तब इन सात पर्वतों की स्मृति और उनके साथ जुड़ी कथाएँ हमें स्थिरता, पवित्रता और आत्मचिंतन की ओर लौटने का मार्ग दिखाती हैं।


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