पुतिन की भारत यात्रा: रणनीतिक आत्मविश्वास और बहुध्रुवीय विश्व की नई परिभाषा

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 27 घंटे की भारत यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक पड़ाव नहीं, बल्कि उन बदलते वैश्विक समीकरणों का संकेत है, जिनमें भारत का प्रभावी उभार अब निर्णायक रूप से दिखने लगा है। यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-रूस टकराव, बदलती विश्व अर्थव्यवस्था और भारत-अमेरिका संबंधों में आई तल्खी इन सबके बीच पुतिन का भारत आना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रोटोकॉल तोड़कर उनका स्वागत करना, एक बड़े संदेश का वाहक है। यह भारतीय विदेश नीति के उस आत्मविश्वास का परिचायक है, जो न दबाव में झुकता है और न परिस्थितियों के सामने अपनी प्राथमिकताएँ भूलता है।

प्रधानमंत्री मोदी का स्वयं एयरपोर्ट जाकर पुतिन का स्वागत करना सामान्य कूटनीतिक शिष्टाचार से कहीं अधिक है। पिछले एक दशक में यह सम्मान कुछ ही नेताओं को मिला है अमेरिका के राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री, कतर और यूएई के शीर्ष नेता। ऐसे में पुतिन के लिए यह गरिमामयी स्वागत भारत-रूस संबंधों की ऐतिहासिक गहराई और वर्तमान प्रासंगिकता दोनों को दर्शाता है।

इस यात्रा का एक उल्लेखनीय दृश्य रहा दोनों नेताओं का जापानी कंपनी टोयोटा की एसयूवी में एक साथ सफर करना। यूरोपीय और अमेरिकी कारों की जगह एशियाई वाहन का चयन प्रतीक है उन भू-राजनीतिक संकेतों का, जिन्हें भारत अत्यंत सावधानी से, परंतु स्पष्टता के साथ दे रहा है। पुतिन पश्चिमी देशों की आलोचना और प्रतिबंधों के घेरे में हैं, ऐसे में यूरोपीय या अमेरिकी निर्मित वाहन का प्रयोग अनावश्यक संदेश दे सकता था। भारत ने बिना शब्दों के वह बात कह दी, जो कूटनीति अक्सर संकेतों में कहती है हम स्वतंत्र हैं, संतुलित हैं और अपने हितों को लेकर स्पष्ट हैं।

पुतिन की यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने की मध्यस्थता में अमेरिका तेजी से सक्रिय हुआ है। पुतिन ने भारत आने से पहले ही अमेरिकी प्रस्ताव पर विस्तृत विमर्श किया है। इसका अर्थ साफ है कि भारत के साथ संवाद रूस के लिए आज भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है चाहे वैश्विक दबाव कितना ही क्यों न हो।

भारत-रूस ऊर्जा सहयोग पर अमेरिका और यूरोप की नाराज़गी किसी से छुपी नहीं है। कच्चे तेल की रिकॉर्ड खरीद के बाद अमेरिका ने भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाकर असंतोष व्यक्त किया है। परंतु भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए यह संदेश दिया है कि राष्ट्रीय हित किसी भी पश्चिमी अपेक्षाओं से ऊपर हैं। पुतिन की यात्रा पर मोदी सरकार का यह भव्य स्वागत भी उसी नीति का विस्तार है मित्रता मूल्य आधारित हो, परंतु कूटनीति हित आधारित।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पुतिन को गीता की रूसी भाषा में प्रति भेंट करना भी प्रतीकात्मक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। गीता का सार्वभौमिक संदेश कर्म, धर्म, संतुलन और कर्तव्य आज की भू-राजनीति में भारत के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। भारत युद्ध को नहीं, बल्कि संवाद को समाधान मानता है।

आज जब अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियाँ दुनिया को पुनर्गठित करने की दिशा में अग्रसर हैं, भारत अपनी बहुध्रुवीय कूटनीति को नए आत्मविश्वास के साथ सामने ला रहा है। न तो अमेरिका की नाराज़गी उसके निर्णय बदल रही है और न रूस के हित भारत के दीर्घकालिक विकल्प सीमित कर रहे हैं। यह नई भारतीय विदेश नीति मित्रता सबके साथ, झुकना किसी के सामने नहीं का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

पुतिन की यात्रा भारत-रूस संबंधों को नया वेग देगी, ऊर्जा, रक्षा, व्यापार और तकनीक के सहयोग को मजबूत करेगी। परंतु इसे सिर्फ द्विपक्षीय यात्रा मानना भूल होगी। यह यात्रा वैश्विक संदेश है कि नई विश्व व्यवस्था में भारत अब पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि निर्माता की भूमिका में है। और इस भूमिका की नींव है स्वायत्तता, संतुलन और आत्मविश्वास। राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत करते हुए भारत ने दुनिया को यह बताया है कि वह किसी भी महाशक्ति की इच्छा के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं पर चलने वाला राष्ट्र है। यही भारत की वह नई पहचान है, जिसे दुनिया सम्मान और गंभीरता से देख रही है।

—सम्पादक

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