बनते रिश्ते, बिगड़ते रास्ते...

 समसामयिक जीवन और भावनाओं पर आधारित एक हृदयस्पर्शी कहानी

विनोद कुमार झा

दिल्ली की शुरुआती सर्दियाँ थीं। हवा में घुला हल्का-सा कोहरा सड़क किनारे खड़े पीले बल्बों की रोशनी को धुंधले घेरे में बदल देता था। उसी धुंध के बीच, कनॉट प्लेस के मध्य-भाग पर स्थित “कविता कैफ़े” में शाम के छह बजते ही भीड़ उमड़ने लगी थी। कैफ़े में हर शाम गुनगुनी कॉफ़ी और धीमी धुनों के बीच कई कहानियाँ जन्म लेती थीं कुछ अधूरी, कुछ पूरी, और कुछ इतनी गहरी कि समय भी उन्हें मिटा नहीं पाता। इन्हीं कहानियों के बीच एक कहानी और बुनी जा रही थी रिया और आदित्य की कहानी। 

पहली मुलाक़ात: बनने लगी एक नयी डोर

रिया, एक उभरती हुई सोशल वर्कर थी। उसकी आँखों में बदलाव लाने का सपना और दिल में संवेदनाओं का सैलाब था। काम के सिलसिले में उसे एक युवा उद्यमी आदित्य से मिलना था, जो दिल्ली में एक नए शिक्षा-प्रोजेक्ट को फंड कर रहा था।

पहली मुलाक़ात अधिक औपचारिक थी, पर रिया की सहज मुस्कान और आदित्य की शांत गंभीरता के बीच जैसे एक अनकहा संवाद शुरू हो गया हो।

“आपके काम की सोच मुझे प्रभावित करती है,” आदित्य ने कागज़ों पर झुकते हुए कहा।
रिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “कोशिश बस यही है कि समाज थोड़ा बेहतर बन सके।” यह छोटा-सा संवाद दोनों के बीच एक अनदेखी पुलिया बना गया जो आने वाले दिनों में एक पक्की राह बनने वाली थी। 

साथ चलते कदम: बढ़ते विश्वास की कहानी

अगले कुछ महीनों में प्रोजेक्ट की बैठकों, योजनाओं और फील्ड-वर्क के बीच दोनों का साथ बढ़ता गया। वे एक-दूसरे की कार्यशैली, सोच और भावनाओं को समझने लगे थे।
रिया आदित्य के भीतर छुपी संवेदनाओं को पहचानने लगी थी, जबकि आदित्य को रिया की दृढ़ता में एक अनूठा आकर्षण दिखने लगा था।

काम की बातचीत, धीरे-धीरे जीवन की बातों पर बदलने लगी।
रात 11 बजे आने वाले “Reached home?” और सुबह 8 बजे के “Good morning, mission-wali madam!” जैसे संदेशों में अब एक अलग ही गर्माहट थी। दोनों जानते थे रिश्ता कहीं न कहीं बन रहा है। धीरे-धीरे, चुपचाप… पर बेहद गहरे।

मोड़: जब रास्ते बदलने लगे

किसी भी उभरते रिश्ते की तरह, इनके रिश्ते के सामने भी समय ने परीक्षा रखी। आदित्य का बिज़नेस अचानक आर्थिक संकट में आ गया। उसे अपने परिवार, शेयरहोल्डर्स और कर्मचारियों की चिंता घेरे हुए थी। दूसरी ओर, रिया के संगठन ने उसे विदेश में एक बेहद महत्वपूर्ण नेतृत्वकारी पद का ऑफर दिया।

“तुम जाओगी?”
आदित्य ने धीमी आवाज़ में पूछा।

“ये मौका… करियर का सबसे बड़ा है, आदित्य,” रिया ने कहा, उसकी आँखों में उलझन साफ दिख रही थी।
“लेकिन… हमारे बारे में?” आदित्य की आवाज़ टूट सी गई।

रिया ने उसकी ओर देखा, पर उसके पास कोई साफ जवाब नहीं था। महत्वाकांक्षा और प्रेम दोनों खड़े थे, दो अलग दिशाओं में। 

गलतफ़हमियाँ: बिगड़ते रास्तों की शुरुआत

आदित्य तनाव में डूबता गया, और उस तनाव ने उसे रिया से दूर कर दिया। उधर रिया को लगा कि आदित्य उसके सपनों को समझ नहीं पा रहा।

बातें कम होने लगीं। कॉल छोटे हो गए। और ज़िंदगी के सबसे कठिन समय में साथ देने के बजाय दोनों ने अपने-अपने मन की दीवारें ऊँची कर लीं।

एक दिन रिया ने संदेश भेजा “हमें शायद कुछ समय चाहिए।” आदित्य ने केवल इतना जवाब दिया, “शायद… या पक्का?” और बातचीत वहीं खत्म हो गई। 

दूरी और अहसास: जब रिश्ते पीछे छूट जाते हैं

रिया विदेश चली गई। एक नई दुनिया, नए लोग, नई चुनौतियाँ… लेकिन हर उपलब्धि के बाद दिल में एक खालीपन गूंजता- "काश, आदित्य साथ होता…"

आदित्य भी अपनी कंपनी को संभालने में लगा रहा। धीरे-धीरे स्थितियाँ सुधरने लगीं, पर भीतर एक टूटन बाकी रही।
"काश, रिया मेरे साथ होती…"रिश्ते टूटे नहीं थे, बस रास्तों ने उन्हें अलग कर दिया था।

अंतिम मोड़: मिलन या बिछड़न?

दो साल बाद रिया भारत लौटी। उसी “कविता कैफ़े” में बैठी, जहाँ उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। उसकी आँखें दरवाज़े पर टिक गईं शायद आदित्य आए।

कुछ मिनट बाद दरवाज़ा खुला। आदित्य अंदर आया…
पर अकेला नहीं। उसके साथ एक महिला थी शायद उसकी नई बिज़नेस-पार्टनर या… शायद कोई और?

रिया ने साँस रोकी… आदित्य की नज़र रिया से मिली।
कुछ सेकंड… जो दोनों के बीच सालों की दूरी को समेट रहे थे।आदित्य ने हल्की-सी मुस्कान दी वही पुरानी, शांत, स्नेह भरी मुस्कान। रिया की आँखें भर आईं, लेकिन उसने भी मुस्कुरा दिया।

दोनों समझ चुके थे,  कुछ रिश्ते टूटते नहीं, बस अपने पुराने रूप से बदल जाते हैं। कुछ रास्ते बिगड़ते जरूर हैं, पर उनमें किसी एक मोड़ पर अपनापन अपनी जगह बनाए रहता है।

“बनते रिश्ते, बिगड़ते रास्ते” सिर्फ प्रेम की कहानी नहीं, बल्कि जीवन में आने वाले उन अनिवार्य मोड़ों की कहानी है, जहाँ महत्वाकांक्षाएँ, परिस्थितियाँ और भावनाएँ एक-दूसरे से टकराती हैं।

कभी हम रिश्ते बचा लेते हैं।
कभी रास्ते बदल जाते हैं।
और कहीं न कहीं, दिल के एक कोने में… हम उन लोगों को संभालकर रख लेते हैं, जिनसे कभी अनजाने में दूरी बन गई होती है।

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