बदलते विश्व समीकरणों के बीच भारत–रूस संबंधों की नई परिभाषा

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा केवल एक औपचारिक कूटनीतिक अवसर नहीं थी यह एक ऐसा क्षण था जिसने वैश्विक राजनीति के बदलते स्वरूप, शक्ति–संतुलन और भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की मजबूती को एक साथ दुनिया के सामने रखा। पालम एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवानी, गर्मजोशी भरा आलिंगन, और दोनों नेताओं का एक ही कार में प्रधानमंत्री आवास पहुंचना किसी भी सामान्य प्रोटोकॉल से कहीं अधिक गहरा संदेश दे गया।

यह दृश्य बताता है कि भारत–रूस संबंध केवल रणनीतिक साझेदारी भर नहीं, बल्कि दशकों की पारस्परिक समझ, भरोसे और निरंतरता पर टिके हैं भले ही वैश्विक राजनीति ने कितनी ही करवटें क्यों न बदली हों।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का दृढ़ प्रदर्शन : न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट ने इसे भारत का “नाजुक संतुलन” बताया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अब भारत संतुलन नहीं साधता वह अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट करता है। अमेरिका द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध और 25–50% टैरिफ के बीच पुतिन–मोदी की सहजता यह संकेत देती है कि भारत किसी दबाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं। पुतिन का इंटरव्यू, जिसमें उन्होंने कहा कि “जब अमेरिका खुद रूस से न्यूक्लियर फ्यूल खरीदता है तो भारत पर तेल न खरीदने का दबाव दोहरे मापदंड है”, अमेरिकी रणनीतिक गलियारों में हलचल पैदा करने के लिए पर्याप्त था। भारत अब ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ का पक्षधर है जहाँ साझेदारी विविध हैं, पर निर्णय स्वायत्त।

 आर्थिक समीकरणों की चुनौती और अवसर : रूसी तेल आयात के कारण व्यापार असंतुलन बढ़ा है, पर उसके समाधान के रास्ते भी इसी यात्रा में खुलते दिखे। रूस का भारत से फिशरी, मीट और कृषि उत्पाद आयात बढ़ाने का प्रस्ताव यह बताता है कि दोनों देश व्यापार को अधिक संतुलित और व्यापक बनाना चाहते हैं। यह भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि 2030 तक 100 अरब डॉलर का लक्ष्य तभी संभव है जब निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हो। इसके साथ ही विज्ञान–तकनीक, ऊर्जा, कनेक्टिविटी और रक्षा तकनीक में अपेक्षित समझौते द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा भर सकते हैं।

रणनीतिक व रक्षा सहयोग का नया अध्याय : राजनाथ सिंह और रूसी रक्षा मंत्री की मुलाकात इस यात्रा की एक अहम कड़ी थी। भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लक्ष्य में रूस की भूमिका अभी भी निर्णायक है चाहे वह S-400 हो, न्यूक्लियर सबमरीन हो या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के नए अवसर।रूस–भारत रक्षा साझेदारी केवल हथियारों का लेन–देन नहीं; यह भरोसे और रणनीतिक तालमेल की नींव पर टिकी है। पश्चिमी असंतोष इसके बावजूद भारत को प्रभावित नहीं कर पा रहा।

 चीन और पश्चिम की प्रतिक्रियाएँ : चीन के ग्लोबल टाइम्स ने इसे “संदेश कि कोई भी देश अलग-थलग नहीं” कहा है। यह टिप्पणी सीधे-सीधे पश्चिमी नैरेटिव को चुनौती देती है, जो रूस को वैश्विक मंच से काटे जाने के रूप में प्रस्तुत करता है। पश्चिमी मीडिया भी स्वीकार कर रहा है कि भारत इस रिश्ते को केवल अतीत की यादों में नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की रणनीतिक आवश्यकताओं के आधार पर आगे बढ़ा रहा है। और यही बात भारत को वैश्विक शक्ति–संरचना का अपरिहार्य हिस्सा बनाती है।

पुतिन की यह यात्रा केवल दो दिनों की थी, मगर इसके संकेत दूरगामी हैं।इन मुलाकातों से यह स्पष्ट हुआ कि—भारत दबाव में नहीं, हितों के आधार पर निर्णय लेता है। रूस भारत को एशिया में सबसे भरोसेमंद साझेदार मानता है। वैश्विक भू-राजनीति में भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है।और भारत–रूस संबंध बदलती दुनिया में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने शीत युद्ध के दौर में थे। इस यात्रा ने यह स्थापित कर दिया कि भारत की विदेश नीति न ‘शिविर आधारित’ है, न निर्भर। वह साझेदारियाँ बनाता है, पर अपनी शर्तों पर और यही 21वीं सदी के नए भारत की सबसे बड़ी पहचान है।

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