क्वालालंपुर में शुरू हुआ 22वां आसियान शिखर सम्मेलन केवल एक औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भविष्य की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक पड़ाव साबित हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर ऑनलाइन संबोधन के दौरान जो बातें कहीं, वे न केवल भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं को रेखांकित करती हैं, बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत-आसियान संबंधों की गहराई और प्रासंगिकता को भी रेखांकित करती हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि “इक्कीसवीं सदी भारत और आसियान की सदी है,” एक आशावादी दृष्टिकोण ही नहीं, बल्कि एक स्पष्ट रणनीतिक घोषणा है। बीते कुछ वर्षों में जब वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों में अस्थिरता बढ़ी है, भारत और आसियान के बीच सहयोग की डोर और भी मजबूत हुई है। यह साझेदारी केवल आर्थिक या व्यापारिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामरिक और सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित है।
भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के केंद्र में आसियान हमेशा से रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और मुक्त व्यापार मार्गों की सुनिश्चितता में आसियान देशों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मोदी ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि भारत न केवल आसियान केंद्रीयता का समर्थन करता है, बल्कि साझा वैश्विक चुनौतियों जैसे खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और डिजिटलीकरण से निपटने में भी बराबरी का भागीदार बनना चाहता है। इस वर्ष के सम्मेलन की थीम “इंक्लूसिविटी एंड सस्टेनेबिलिटी” है और यही दो शब्द भारत-आसियान संबंधों की आत्मा हैं। जब पूरी दुनिया में बहुध्रुवीयता बढ़ रही है, तब सहयोग की यह भावना न केवल क्षेत्रीय शांति के लिए आवश्यक है, बल्कि वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के देशों के लिए भी प्रेरणास्रोत है। मोदी का यह कहना कि “हम ग्लोबल साउथ के सहयात्री हैं,” यह संदेश देता है कि भारत अपने पड़ोसियों और साझेदारों के साथ समानता, सम्मान और साझे हितों के सिद्धांत पर खड़ा है।
भारत का यह भी संदेश स्पष्ट है कि वह मित्र देशों की मुश्किल घड़ी में हमेशा साथ रहेगा। आपदा प्रबंधन, मानवीय सहायता, ब्लू इकोनॉमी और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भारत का सहयोग आसियान देशों के लिए आश्वस्तकारी रहा है। वर्ष 2026 को “आसियान-इंडिया ईयर ऑफ मैरीटाइम कोऑपरेशन” घोषित किया जाना इस दिशा में बड़ा कदम है। यह पहल न केवल समुद्री संसाधनों के बेहतर उपयोग की ओर ले जाएगी, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को और सुदृढ़ करेगी। हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हर कदम की अपनी कीमत होती है। अमेरिका का यह बयान कि पाकिस्तान के साथ उसके संबंध भारत की कीमत पर नहीं होंगे, एक तरह से दक्षिण एशिया में संतुलन साधने की कोशिश है। ऐसे समय में भारत को अपने क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदारों के साथ व्यावहारिक, लेकिन सशक्त कूटनीति अपनाने की आवश्यकता है।
अंततः, प्रधानमंत्री मोदी की यह घोषणा कि भारत और आसियान मिलकर “मानवता के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे”, केवल भाषण नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी संकल्प है। विकसित भारत 2047 और आसियान कम्युनिटी विजन 2045 दोनों का लक्ष्य समान है: एक सुरक्षित, स्थिर और समावेशी भविष्य का निर्माण। भारत और आसियान यदि इस दिशा में ठोस कदम बढ़ाते हैं, तो आने वाले दशक में यह साझेदारी न केवल एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के लिए विकास और स्थिरता का नया मॉडल बन सकती है।
- विनोद कुमार झा
