विनोद कुमार झा
दीपावली के शुभ अवसर पर जिला सहरसा के चैनपुर गांव में “बोले काली माय की जय” के गूंजते जयकारों के बीच इस वर्ष भी आदि काली और नई काली स्थान पर चार दिवसीय पारंपरिक मेला का शुभारंभ हो गया है। हर साल की तरह इस बार भी श्रद्धा, भक्ति और उल्लास से सराबोर वातावरण गांव की गलियों से लेकर मंदिर परिसर तक दिखाई दे रहा है।
चैनपुर स्थित आदि काली स्थान पर लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी परंपरा के तहत दीपावली की रात पूजा-अर्चना के साथ मेला का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर कभी एक साधक ने मां काली की आराधना कर दिव्य सिद्धि प्राप्त की थी। तब से हर वर्ष यहां दीपावली के अवसर पर मां काली की पूजा भव्य रूप में की जाती है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह मेला कभी मिट्टी के दीयों और ढोल-नगाड़ों की रौशनी में जगमगाया करता था, जब लोग पैदल या बैलगाड़ी से यहां पहुंचते थे।
वहीं, काली पोखर पर नई काली स्थान पर काली पूजा समिति द्वारा आधुनिक पंडाल सजावट, झांकी प्रदर्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ पूजा का आयोजन किया जा रहा है। यहां प्रतिमा स्थापना के साथ ही विशेष पूजा-अर्चना होती है, जिसमें दूर-दराज़ के श्रद्धालु भी शामिल होते हैं। भक्ति गीतों, विद्युत सजावट, आकर्षक रोशनी और मेला में लगने वाले झूले व खाने-पीने की दुकानों से पूरा इलाका उत्सवमय हो उठता है।
दोनों स्थानों पर श्रद्धा और उत्साह का संगम देखने को मिलता है एक तरफ आदि काली स्थान पर परंपरागत रीति-रिवाज और ग्रामीण भक्ति की झलक, तो दूसरी ओर नई काली स्थान पर आधुनिकता की चमक और तकनीकी रौशनी का आकर्षण।
गांव के बुजुर्ग जहां आज भी मिट्टी के दीयों में मां का स्वरूप देखते हैं, वहीं नई पीढ़ी रंग-बिरंगी लाइटों और संगीत के जरिए अपनी आस्था व्यक्त कर रही है। इस तरह चैनपुर का काली मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह उस संस्कृति का जीवंत प्रतीक बन गया है, जहां परंपरा और आधुनिकता हाथ थामे साथ चल रही हैं।
मेला समिति के सदस्य बताते हैं कि सुरक्षा, स्वच्छता और व्यवस्था को लेकर इस बार विशेष प्रबंध किए गए हैं। हर शाम आरती के समय जब पूरा वातावरण "जय मां काली" के जयघोष से गूंजता है, तो लगता है मानो चैनपुर की मिट्टी खुद श्रद्धा में डूबी हो।
यह मेला सिर्फ पूजा नहीं यह आस्था, परंपरा और आधुनिक उत्सव का अनूठा संगम है, जो हर दीपावली पर चैनपुर को नई रोशनी से आलोकित कर देता है।