भाई दूज : स्नेह और विश्वास का प्रतीक पर्व

 विनोद कुमार झा

दीपावली के उत्सव की मधुर गूंज अभी थमी भी नहीं होती कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व “भाई दूज” अपने साथ नई उमंग और आत्मीयता लेकर आता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भारतीय संस्कृति के पारिवारिक बंधन और स्नेह की जीवंत मिसाल भी है।

पौराणिक आधार और मान्यता : पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज अपनी बहन यमुना के निमंत्रण पर उनके घर पहुँचे। यमुना ने अपने भाई का आदर-सत्कार किया, उन्हें तिलक लगाया और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे। प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वरदान माँगने को कहा। यमुना ने कहा — “भाई, इस दिन जो भी बहन अपने भाई को तिलक लगाए और स्नेहपूर्वक सत्कार करे, उसे कभी यम का भय न हो।”तब से यह दिन ‘यम द्वितीया’ या ‘भाई दूज’ के रूप में मनाया जाने लगा।

पूजन विधि और परंपरा : भाई दूज के दिन बहनें प्रातः स्नान के बाद पूजा स्थल को सजा कर पूजन करती हैं। वे थाल में रोली, अक्षत, दीपक, मिठाई और नारियल रखती हैं। भगवान गणेश, यमराज और यमुना की पूजा के बाद भाई को तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है। इसके बाद भाई बहन को उपहार देता है और जीवनभर उसकी रक्षा का वचन निभाने का संकल्प लेता है।

भावनाओं का पर्व : यह पर्व केवल तिलक और उपहार का नहीं, बल्कि आत्मीयता और निःस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। भाई दूज हमें यह याद दिलाता है कि रिश्तों की नींव प्रेम और विश्वास पर टिकी होती है, न कि स्वार्थ और औपचारिकता पर। गाँवों की गलियों से लेकर महानगरों की ऊँची इमारतों तक, इस दिन भाई-बहन के चेहरों पर मुस्कान और दिलों में अपनापन झलकता है।

आधुनिक युग में बदलता स्वरूप : समय के साथ परंपराएँ बदलती रही हैं, पर भाई दूज का भाव आज भी उतना ही गहरा है। आज जब भाई-बहन अलग-अलग शहरों या देशों में रहते हैं, तब भी यह पर्व दूरी को मिटा देता है। वीडियो कॉल, डिजिटल तिलक और ऑनलाइन उपहारों ने इस रिश्ते की डोर को और मजबूत बना दिया है।

भाई दूज का पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में रिश्तों से बढ़कर कुछ नहीं। भाई की रक्षा में बहन का आशीर्वाद और बहन की मुस्कान में भाई का स्नेह, यही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत है। जब तक यह परंपरा जीवित है, तब तक समाज में प्रेम, विश्वास और पारिवारिक एकता की लौ जलती रहेगी।

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