लोक आस्था का महापर्व छठ : व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया, अब उदयचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की तैयारी
विनोद कुमार झा
नई दिल्ली/पटना/सहरसा/नोएडा। लोक आस्था का महापर्व छठ रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चरम पर पहुंच गया। व्रतियों ने पूरी निष्ठा, पवित्रता और आस्था के साथ भगवान सूर्य और छठी मइया को अर्घ्य अर्पित किया। शाम होते ही नदियों, तालाबों और कृत्रिम घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हर घाट पर "छठ मइया के गीत", "कांचे ही बांस के बहंगिया लचिकत जाए" और "उठू हे सूरज देव" जैसे लोकगीतों की गूंज ने माहौल को भक्ति और उल्लास से भर दिया।
छठ व्रत को हिंदू धर्म में सबसे कठिन और पवित्र व्रतों में गिना जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में व्रती बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं और भगवान सूर्य से संतान सुख, परिवार की समृद्धि और जीवन की मंगलकामना करते हैं। खरना से शुरू हुआ यह व्रत आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद सोमवार को उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ संपन्न होगा।
देशभर में श्रद्धा का माहौल, घाटों पर अद्भुत नजारा :देश के कोने-कोने में छठ का उत्साह देखते ही बन रहा है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश तक इस पर्व की छटा छाई रही। बिहार की गंगा घाटों से लेकर दिल्ली के यमुना तट, मुंबई के जुहू बीच और चंडीगढ़ की झीलों तक श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे। हर ओर सुरक्षा और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की गई थी।
पटना के गंगाघाट, छपरा के सोनपुर, सहरसा के चैनपुर, मुंगेर के कष्टहरणी घाट, भागलपुर के बरारी घाट सहित हर जगह भक्तों की भीड़ उमड़ी। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में, सिर पर सुप और दौरा लिए संध्या अर्घ्य के लिए घाटों की ओर बढ़ीं। पूरा वातावरण मंत्रोच्चारण और भक्ति गीतों से गूंज उठा।
विदेशों में भी छठ का उल्लास :अब छठ पर्व का दायरा सीमाओं से बाहर निकल गया है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात में बसे भारतीय समुदाय ने भी पूरे उत्साह के साथ यह पर्व मनाया। लंदन के थेम्स नदी तट, दुबई के कृत्रिम झीलों और न्यूयॉर्क के हडसन नदी किनारे भारतीय प्रवासी परिवारों ने व्रत रखा और सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया। वहां भी भोजपुरी गीतों की गूंज ने विदेशी धरती को भारत की खुशबू से भर दिया।
छठ पर्व की पूर्व संध्या पर घाटों की सजावट देखते ही बन रही थी। जगह-जगह रंगीन झालरों, दीपों और फूलों से घाटों को सजाया गया। बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों में समान उत्साह दिखाई दिया। गांवों से लेकर महानगरों तक, लोग अपने-अपने स्तर पर स्वच्छता और श्रद्धा के साथ छठ घाटों को संवारने में जुटे रहे। स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों ने सुरक्षा, प्रकाश और चिकित्सा की विशेष व्यवस्था की।
अब सोमवार की सुबह उदयाचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने की तैयारी चल रही है। व्रतियों ने रविवार रात भर उपासना, भक्ति गीत और जागरण में समय बिताया। जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्य की पहली किरणें फूटेंगी, वैसे ही घाटों पर एक बार फिर "छठ मइया की जय" के जयकारे गूंज उठेंगे।
सूर्योदय के साथ अर्घ्य अर्पित कर व्रती जल में खड़े होकर अपने परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। इसके साथ ही चार दिनों तक चला यह कठिन व्रत पारंपरिक "पारण" के साथ संपन्न होगा।
छठ पर्व भारतीय लोकसंस्कृति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व न सिर्फ धार्मिक आस्था का उत्सव है, बल्कि इसमें पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, संयम और सामूहिकता का अनोखा संदेश निहित है। सूर्य और जल के प्रति सम्मान भारतीय समाज के उस सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाता है जो हजारों वर्षों से धरती और आकाश के बीच संतुलन बनाए रखे हुए हैं।





