दोस्ती में कुस्ती : महागठबंधन की मुश्किलें

बिहार की राजनीति में यह कहावत एकदम सटीक बैठती है कि “यहाँ दोस्ती भी अपने हितों की गणित से तय होती है।” विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म है और विपक्षी महागठबंधन के भीतर चल रही “दोस्ती में कुस्ती” अब खुलकर सामने आ गई है। सीट बंटवारे पर सहमति न बन पाने की वजह से गठबंधन की एकता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। कांग्रेस, जो अब तक सहयोगी भूमिका में दिखती थी, इस बार अपने तेवरों में खासा बदलाव लाई है। पार्टी ने उन सीटों पर भी दावा ठोका है जो परंपरागत रूप से आरजेडी के खाते में जाती रही हैं। दूसरी ओर, आरजेडी भी अपने हिस्से की सीटें कम करने को तैयार नहीं। परिणामस्वरूप कई सीटों पर “एकता” की जगह “प्रतिस्पर्धा” ने जगह ले ली है। लालगंज, वैशाली, राजापाकर, बछवाड़ा, रोसरा, बिहार शरीफ और सिकंदरा जैसी सीटों पर महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं।

सिकंदरा सीट इसका ताजा उदाहरण है  जहां कांग्रेस के विनोद चौधरी और आरजेडी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, दोनों ही उम्मीदवार बनकर चुनावी रण में उतर चुके हैं। यह स्थिति न केवल संगठनात्मक कमजोरी को उजागर करती है बल्कि मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति भी पैदा कर रही है। महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान को और बढ़ाने का काम छोटे सहयोगी दलों ने किया है। वीआईपी और वामपंथी पार्टियों ने भी अपनी मांगों को लेकर दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। ऐसे में सीट बंटवारे की गणित और पेचीदा होती जा रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठबंधन से अलग होकर 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान इस बिखराव की तस्दीक करता है।

दूसरी ओर, एनडीए ने चुनावी रणनीति में बढ़त हासिल कर ली है। उसने पहले ही सभी 243 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर मैदान में उतरने का संकेत दे दिया है। ऐसे में जब विरोधी खेमे में समन्वय की कमी और नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हों, तो सत्तारूढ़ गठबंधन को इसका सीधा फायदा मिलना तय है। बिहार की राजनीति में यह पहला मौका नहीं जब गठबंधन के भीतर असहमति ने एकजुटता की कहानी पर विराम लगाया हो, लेकिन इस बार की स्थिति अलग है। जनता अब समझदार है  उसे वादे नहीं, एकजुट और सक्षम नेतृत्व चाहिए। महागठबंधन को अब यह तय करना होगा कि वह “मित्रता की राजनीति” को तरजीह देगा या “स्वार्थ की सियासत” को। क्योंकि अगर यही हाल रहा, तो यह कुश्ती सिर्फ दोस्ती को नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाओं को भी पटखनी दे सकती है।

 ✍️ विनोद कुमार झा

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