बिहार विधानसभा चुनाव: टिकट की दौड़ में सियासत के बदलते समीकरण

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य का सियासी पारा चढ़ गया है। सत्ता की गलियों से लेकर गांव की चौपाल तक अब हर चर्चा चुनावी रंग में रंग चुकी है। सियासी दलों में टिकट बंटवारे को लेकर गहमा-गहमी तेज हो गई है। किसे टिकट मिलेगा, कौन दावेदारों की लंबी कतार में आगे है और कौन पीछे, इस पर अब मंथन शुरू हो गया है। हर दल अपने-अपने समीकरण साधने में जुट गया है, क्योंकि टिकट का हर फैसला सीधे चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों, क्षेत्रीय प्रभाव और सामाजिक संतुलन के इर्द-गिर्द घूमती रही है। ऐसे में दलों के लिए यह तय करना आसान नहीं होता कि किस क्षेत्र से किस चेहरे को मौका दिया जाए। कई सीटों पर पुराने नेताओं का दावा मजबूत है तो कई जगह युवा चेहरों को आगे बढ़ाने की मांग तेज है। कुछ दल “नए बिहार” की तस्वीर दिखाने की कोशिश में हैं, तो कुछ परंपरागत वोट बैंक को साधे रखने की रणनीति बना रहे हैं।

टिकट की राजनीति में इस बार सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जनता अब सिर्फ जातीय या पारिवारिक आधार पर नहीं, बल्कि काम के आधार पर भी उम्मीद देख रही है। युवा मतदाता विकास, रोजगार, शिक्षा और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर सजग हैं। ऐसे में दलों को यह सोचना होगा कि सिर्फ राजनीतिक निष्ठा या पुराने समीकरणों पर भरोसा करना अब पर्याप्त नहीं रहेगा। टिकट वहीं सार्थक साबित होगा जो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरे।

इस दौड़ में कई दलों के भीतर खींचतान और असंतोष भी साफ दिखाई देने लगा है। कई जगहों पर पुराने नेताओं के बगल में नए चेहरों का उभरना आंतरिक टकराव का कारण बन सकता है। लेकिन यही लोकतंत्र की खूबसूरती भी है जहां हर व्यक्ति को आगे बढ़ने और नेतृत्व का अवसर मिल सकता है। अब यह देखना रोचक होगा कि कौन-सा दल संतुलन साध पाता है और कौन टिकट वितरण में गलती करके राजनीतिक नुकसान उठा बैठता है। आख़िर में, बिहार की जनता अब परिपक्व हो चुकी है। वह यह भली-भांति समझती है कि टिकट पाने वाला उम्मीदवार ही जनसेवक नहीं बन जाता। असली कसौटी तो तब होगी जब यह उम्मीदवार अपने क्षेत्र में विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे बुनियादी मुद्दों पर कितना काम कर पाते हैं। इसलिए दलों को टिकट बांटने से पहले यह अवश्य सोचना चाहिए कि वह सिर्फ राजनीतिक समीकरण नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदों का भी चयन कर रहे हैं।

विनोद कुमार झा)

Post a Comment

Previous Post Next Post