(बिहार विधानसभा चुनाव में NDA का सीट बंटवारा)
बिहार की सियासत एक बार फिर अपने रंग में है। विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ हो गई है। हर दल अपने-अपने समीकरण साधने में जुटा है, और इसी बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने एक ऐसा राजनीतिक संतुलन साधा है, जिसे देखकर कहा जा सकता है “तुम भी खुश और हम भी खुश।”
दरअसल, NDA ने बिहार में अपने सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा लगभग तय कर लिया है। यह बंटवारा इस बार पहले की अपेक्षा ज़्यादा समझदारी और परिपक्वता के साथ किया गया है। भाजपा, जदयू, हम (हितेश कुमार मांझी) और लोजपा (रामविलास) जैसे सहयोगी दलों के बीच सीटों की तालमेल का यह फार्मूला गठबंधन की एकजुटता को प्रदर्शित करता है। जहां एक ओर भाजपा ने गठबंधन धर्म निभाते हुए अपने हिस्से में आने वाली कुछ सीटों पर समझौता दिखाया, वहीं नीतीश कुमार की जदयू ने भी राजनीतिक यथार्थ को स्वीकार करते हुए व्यावहारिक रुख अपनाया है।
इस बार की सीट साझेदारी में कोई दल “नाराज” नहीं दिख रहा है। यही इस समझौते की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है। पिछले चुनावों में जहां सीट बंटवारे को लेकर खींचतान और बयानबाज़ी देखने को मिलती थी, वहीं इस बार सभी सहयोगी दलों के बीच संवाद और सहमति की भावना दिखाई दी। इससे यह संकेत साफ़ है कि NDA बिहार में सत्ता वापसी के लिए किसी भी प्रकार की अंदरूनी कलह नहीं चाहता।
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो “सबको साथ लेकर चलने” की यह रणनीति भाजपा और जदयू दोनों के लिए लाभकारी हो सकती है। बिहार का मतदाता भावनात्मक के साथ-साथ अब व्यवहारिक भी हो चुका है। उसे स्थिर सरकार और सामंजस्यपूर्ण नेतृत्व पसंद है। ऐसे में NDA का यह संतुलन वाला कदम मतदाताओं में “एकजुटता और भरोसे” का संदेश देगा। हालाँकि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। आने वाले दिनों में टिकट वितरण, प्रत्याशी चयन और प्रचार रणनीति के दौरान कई समीकरण बदल सकते हैं। परंतु शुरुआत जिस संतुलन और संयम के साथ की गई है, उसने यह संकेत अवश्य दे दिया है कि NDA इस बार ‘घर की लड़ाई’ से बचते हुए सीधे मैदान की लड़ाई पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
बिहार की राजनीति में गठबंधन की यह “संतुलन कला” कोई नई नहीं है। लेकिन इस बार “तुम भी खुश, हम भी खुश” वाला फार्मूला इस बात की ओर इशारा करता है कि NDA ने अतीत की गलतियों से सबक लेकर एक नई राजनीतिक परिपक्वता दिखाई है।अंततः यही कहा जा सकता है कि इस चुनावी मौसम में NDA ने अपने सहयोगियों के बीच भरोसे की जो डोर बुनी है, वह अगर मतदान तक कायम रही, तो यह गठबंधन बिहार की राजनीति में फिर से अपनी पकड़ मज़बूत कर सकता है।
— विनोद कुमार झा