विनोद कुमार झा
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार वामन अवतार का प्राकट्य दिवस श्री वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से धर्म, न्याय और मर्यादा की स्थापना का प्रतीक है। भगवान वामन ने त्रेता युग में असुरराज बलि के अहंकार का नाश कर दैवी शक्ति और भक्ति का मार्ग दिखाया।
वामन अवतार की कथा : असुरराज बलि पराक्रमी और दानी थे। अपने यज्ञ और दान से उन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर लिया। इससे देवगण चिंतित हुए और भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लिया एक बौने ब्राह्मण के रूप में।
राजा बलि ने वामन को दान देने का वचन दिया। वामन ने केवल तीन पग भूमि मांगी। जब बलि ने सहमति दी, तो वामन का रूप विराट हो गया। पहले पग से पृथ्वी, दूसरे पग से आकाश नापा और तीसरे पग के लिए स्थान न बचा। तब बलि ने अपना सिर झुका दिया और भगवान ने वहाँ तीसरा पग रखकर उन्हें पाताल का अधिपति बना दिया। इस प्रकार बलि का अभिमान दूर हुआ और वामन अवतार ने धर्म की पुनः स्थापना की।
पूजन विधि
- श्री वामन जयंती के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।
- भगवान वामन की प्रतिमा या चित्र पर पीले पुष्प, तुलसीदल और पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
- व्रत धारण कर भक्त पूरे दिन भगवान का स्मरण करते हैं।
- विष्णु सहस्रनाम, वामन स्तुति और ॐ नमो भगवते वामनाय मंत्र का जाप शुभ माना जाता है।
- ब्राह्मणों को दान देने और अन्नदान करने का विशेष महत्व है।
वामन जयंती हमें सिखाती है कि अहंकार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः धर्म और विनम्रता के आगे झुकना पड़ता है। भगवान वामन का यह अवतार यह भी दर्शाता है कि सच्चा दान केवल भौतिक नहीं, बल्कि समर्पण और विनम्रता का भी होना चाहिए।