मणिपुर की आंखों में उम्मीद की किरण

 दो साल से जलते मणिपुर की धरती पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे, तो यह केवल एक राजनीतिक दौरा नहीं था—यह उस घायल समाज के लिए उम्मीद की किरण भी था, जिसने अपनों को खोया, घर-बार छोड़ा और जिनकी आंखों में अब भी दर्द की नमी ताज़ा है। मई 2023 से मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच फैली हिंसा ने न केवल 260 से अधिक परिवारों को उजाड़ा, बल्कि विश्वास और भाईचारे की नींव भी हिला दी। प्रधानमंत्री ने इंफाल और चुराचांदपुर की धरती से शांति का संदेश दिया। उन्होंने विस्थापित परिवारों से मुलाकात की, बच्चों की कविताएं सुनीं और कहा, “मैं आपके साथ हूं, भारत सरकार आपके साथ है।” इन शब्दों ने उन दिलों में हल्की-सी रोशनी जगाई होगी, जो लंबे समय से अंधेरे में भटक रहे थे। प्रधानमंत्री का यह स्वीकार करना कि हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है और शांति के बिना विकास असंभव है, वास्तव में देर से सही, लेकिन सही दिशा में कदम है।

पर सवाल भी वहीं हैं—क्या केवल शब्दों से घाव भर जाएंगे? क्या कुछ घंटों की मौजूदगी से दो साल से बंटे हुए समाज में भरोसा लौट आएगा? यही वजह है कि कांग्रेस और विपक्ष ने इसे ‘देर आए, पर दुरुस्त नहीं’ कहकर कटाक्ष किया। सच यह है कि मणिपुर की पीड़ा केवल राजनीतिक नारों से नहीं मिटेगी। यहां की आंखें काम चाहती हैं, नतीजे चाहती हैं।

फिर भी, इस दौरे को निरर्थक नहीं कहा जा सकता। प्रधानमंत्री ने 8,500 करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात दी, रेल और सड़क कनेक्टिविटी की नई उम्मीद जगाई, और सबसे बढ़कर यह संकेत दिया कि दिल्ली अब मणिपुर को अकेला नहीं छोड़ेगी। यह दौरा उस विश्वास की शुरुआत हो सकता है, जिसकी तलाश मणिपुर की जनता लंबे समय से कर रही है। मणिपुर भारत माता का मुकुट है, लेकिन यह मुकुट तभी चमकेगा जब इसकी दरारें पाटी जाएंगी। बच्चों का भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब हिंसा की बंदूकें हमेशा के लिए खामोश होंगी। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर संगठन और हर समुदाय की भी है। अगर दोनों पक्ष साहस दिखाकर शांति का हाथ थाम लें, तो मणिपुर न सिर्फ अपने जख्म भरेगा बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व की ताकत बनकर चमकेगा।प्रधानमंत्री का दौरा उम्मीद की लौ जलाता है। अब जरूरत है कि यह लौ ठंडी न पड़े, बल्कि एक स्थायी दीपक बनकर मणिपुर के हर घर को रोशन करे।

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