एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
इस श्लोक में मां कालरात्रि के भव्य और भयावह स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है :- मां के केश एक ही वेणी (चोटी) में बंधे हैं। उनके कान जपाकुसुम (लाल फूल) से सुशोभित हैं। वे क्रोधाग्नि अवस्था में हैं, जो निष्कपटता और निर्लिप्तता का प्रतीक है। मां गधे पर सवार हैं, जो विनम्रता और स्थिरता का प्रतीक है। उनके होंठ बड़े और लालिमा लिए हुए हैं। कान की बालियां बिजली की तरह चमकती हैं। शरीर तिल के तेल से अभिषिक्त (चिकना और चमकीला) है।
उनका वाम (बायां) पांव उठा हुआ है, जो उनकी ऊर्जाशीलता और क्रियाशक्ति का संकेत है। उनके गले में विद्युत जैसी चमक वाली माला और कण्टक (कांटे) हैं। वे काले रंग की हैं, जो समस्त अंधकार और अज्ञान को निगल लेने वाली शक्ति का प्रतीक है। मां कालरात्रि भय उत्पन्न करने वाली नहीं, बल्कि भय को नष्ट करने वाली देवी हैं।
मां कालरात्रि की पूजा करने से भय, शत्रु और संकट स्वतः समाप्त हो जाते हैं। जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल बढ़ता है।भक्त को अद्भुत साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। साधक को मोक्ष और मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है।