जानिए मां दुर्गा की उपासना, कलश स्थापना मुहूर्त, कन्या पूजन और हर दिन करें माता पूजन श्लोक और विधि
विनोद कुमार झा
सनातन संस्कृति में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों में से शारदीय नवरात्रि को सर्वाधिक शुभ और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चलने वाला यह नौ दिवसीय महापर्व मां दुर्गा की उपासना, तप, साधना और भक्ति का अद्वितीय संगम है। इन दिनों में धार्मिक आस्था के साथ-साथ आध्यात्मिक साधना, सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक उत्साह भी दिखाई देता है। मां के विभिन्न रूपों की आराधना, दुर्गासप्तशती का पाठ, कलश स्थापना, व्रत-उपवास और देवी के लिए भोग लगाने की परंपरा नवरात्रि को और पावन बना देती है।
कलश स्थापना (घटस्थापना) की विधि और मुहूर्त : नवरात्रि का पहला दिन कलश स्थापना के लिए समर्पित होता है, जिसे शुभ मुहूर्त में किया जाना आवश्यक माना गया है।
सबसे पहले पूजा स्थल को पवित्र जल से शुद्ध कर लें। मिट्टी से वेदी बनाकर उस पर जौ या गेहूं बोएं। तांबे, पीतल या मिट्टी के कलश में गंगाजल भरकर उस पर आम के पत्ते सजाएं और नारियल रखें। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे लाल वस्त्र से सजाएं। इस दौरान देवी दुर्गा का आह्वान मंत्र उच्चारित करें।
मुहूर्त: कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातःकाल अभिजीत मुहूर्त या घटस्थापना के लिए बताए गए विशेष कालखंड में होता है। (साल और तिथि के अनुसार यह समय बदलता रहता है।)
मां दुर्गा के नौ रूप और प्रतिदिन की पूजा इस प्रकार है : नवरात्रि में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और भोग है।
1. प्रथम दिन – शैलपुत्री देवी, स्वरूप: पर्वतराज हिमालय की पुत्री। भोग: घी। पहला दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें:-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
2. द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी देवी, स्वरूप: तपस्विनी, कठोर तप की प्रतिमूर्ति। भोग: शक्कर व मिश्री।
दूसरे दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
3. तृतीय दिन – चंद्रघंटा देवी। स्वरूप: घंटे के आकार के अर्धचंद्र से विभूषित। भोग: दूध व खीर।
तीसरे दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥
4. चतुर्थ दिन – कूष्माण्डा देवी, स्वरूप: ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली। भोग: मालपुआ।
चौथा दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
5. पंचम दिन – स्कंदमाता देवी। स्वरूप: भगवान कार्तिकेय की माता। भोग: केले।
पांचवें दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
6. षष्ठम दिन – कात्यायनी देवी, स्वरूप: ऋषि कात्यायन की कन्या। भोग: शहद।
छठवें दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यान्महाभयघ्नी शुभांकरि॥
7. सप्तम दिन – कालरात्रि देवी। स्वरूप: अंधकार और भय का नाश करने वाली। भोग: गुड़।
सातवें दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
8. अष्टम दिन – महागौरी देवी । स्वरूप: अति गौर वर्ण वाली, शांति और सद्भाव की प्रतिमूर्ति। भोग: नारियल।
आठवें दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुभा।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
9. नवम दिन – सिद्धिदात्री देवी। स्वरूप: समस्त सिद्धियों की प्रदायिनी। भोग: तिल व खिचड़ी।
नोवें दिन माता को प्रसन्न करने के लिए यह श्लोक पढ़ें
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
व्रत कथा : नवरात्रि व्रत की कथा के अनुसार, एक बार महाराज सुदर्शन ने मां दुर्गा की आराधना कर यह व्रत किया। मां प्रसन्न होकर उन्हें राज्य, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान किया। कथा का सार यही है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ मां की साधना करता है, उसे जीवन में सफलता और सुख की प्राप्ति होती है।
दुर्गासप्तशती का पाठ विधि : नवरात्रि में दुर्गासप्तशती के पाठ का विशेष महत्व है। यह ग्रंथ 13 अध्यायों और 700 श्लोकों में विभाजित है। पाठ को तीन भागों में विभाजित किया जाता है:
1. प्रथम चरित्र (मधुकैटभ वध)।
2. मध्यम चरित्र (महिषासुर मर्दिनी)।
3. उत्तर चरित्र (शुंभ-निशुंभ वध)।
पाठ करते समय प्रत्येक अध्याय के अंत में "किलक मंत्र" और "अर्गला स्तोत्र" का पाठ भी करना चाहिए। सप्तशती का पाठ प्रतिदिन पूर्ण करना उत्तम है, परंतु समयाभाव में इसे भागों में भी किया जा सकता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व : नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाला उत्सव भी है। इस दौरान जगह-जगह दुर्गा पंडाल, गरबा और डांडिया जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। परिवार और समाज के लोग एकत्र होकर भक्ति के साथ-साथ सांस्कृतिक एकता का परिचय देते हैं।
इस प्रकार शारदीय नवरात्रि धर्म, अध्यात्म और समाज का अनूठा संगम है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना, दुर्गासप्तशती का पाठ और उपवास-भोग से मन, वचन और कर्म शुद्ध होते हैं तथा जीवन में शक्ति, समृद्धि और शांति का संचार होता है।
जय माता दी।