#पराई सौतन आकर्षक...

 (पूरी कहानी मौलिक है, किसी ग्रंथ या वास्तविक व्यक्ति से संबंधित नहीं)

विनोद कुमार झा

गांव का नाम था सरस्वतीपुर, जहाँ धूप अभी भी पुराने बरगद के पेड़ों की शाखाओं पर चिपकी रहती थी और शाम होते-होते मिट्टी की महक पूरे वातावरण में घुल जाती थी। इसी गांव में रहती थी सुधा एक शांत स्वभाव की, मुश्किलें सहने वाली और अपने पति राजेश को पूरे मन से चाहने वाली स्त्री।

राजेश खेती-बाड़ी करता था। घर बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन सुधा की सादगी और मेहनत ने उसे खुशियों से भर रखा था। शादी को सात साल बीत चुके थे, लेकिन अभी तक ईश्वर ने उन्हें संतान का सुख नहीं दिया था। सुधा अक्सर यही सोचती कि शायद यही कमी उसके जीवन में हलचल लाएगी।

लेकिन असली हलचल तब आई जब गांव में एक नई महिला का आगमन हुआ नाम था चांदनी, चेहरा मोहक, बोलने का अंदाज़ मीठा और व्यक्तित्व इतना आकर्षक कि गांव की औरतें भी अनजाने में उसकी ओर खिंच जातीं। वह विधवा थी, और अपने मायके वालों के पास रहने के लिए गांव में आई थी।

चांदनी की सुंदरता की चर्चा धीरे-धीरे पूरे गांव में फैल गई। लेकिन सुधा को इससे क्या? उसके लिए तो उसका संसार बस उसके पति और उसका छोटा-सा घर था। परन्तु किस्मत अपना रास्ता खुद चुनती है…

एक दिन सुधा ने देखा कि राजेश खेत से लौटते वक्त असामान्य रूप से खुश था। कपड़ों पर एक हल्की-सी इत्र की सुगंध भी थी, जो सुधा ने पहले कभी महसूस नहीं की थी। उसने मुस्कुराकर पूछा, “आज बड़े खुश लग रहे हो? कोई खास बात?”

राजेश थोड़ा झेंप गया,“अरे नहीं, बस यूं ही… चांदनी मिली थी रास्ते में, बोली कि गांव अच्छा लग रहा है। बस, बातें हो गईं।”

सुधा के दिल में पहली बार हल्का-सा टीस उठा। चांदनी? वह राजेश से बात क्यों कर रही थी? लेकिन उसने अपनी सोच को झटक दिया-ऐसा भी क्या, गांव के लोग एक-दूसरे से बात करते हैं। धीरे-धीरे बढ़ता फासला, दिन बीते…, फिर हफ्ते… सुधा को अब कई बार ऐसा लगता कि राजेश की बातें बदल रही हैं। वह पहले की तरह घर में समय नहीं बिताता, अक्सर बाहर रहता और वापस आने पर चेहरा चमकता हुआ लगता।

एक दिन सुधा ने गांव की औरतों को फुसफुसाते सुना “अरे, चांदनी तो बड़ी तेज है… राजेश के साथ कई बार देखी है उसे खेत की ओर जाते हुए।”“हां, सुधा तो सीधी-सादी है, चांदनी जैसी मोहक नहीं।”ये शब्द सुधा के दिल को जलाने लगे। क्या सचमुच… पराई सौतन उसके घर में दाखिल हो रही थी? और वह भी इतनी आकर्षक कि उसका पति खुद को रोक न पा रहा था?

सच का सामना: सुधा ने निश्चय किया कि वह अपने पति से बात करेगी। उस रात जब राजेश खाना खाकर आराम करने लगा, सुधा ने धीमे स्वर में कहा-“राजेश… तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो क्या?”

राजेश चौंका, “क्या मतलब?”

“गांव वाले कहते हैं कि तुम… चांदनी से बहुत बातें करते हो। तुम आजकल घर से दूर-दूर रह रहे हो। क्या तुम… उससे प्रभावित हो गए हो?” राजेश ने नज़रें चुरा लीं। सुधा का दिल उसी पल सब समझ गया। चुप्पी किसी तलवार से भी ज़्यादा चुभ सकती है, और आज वह चुप्पी सुधा के भविष्य को काट रही थी।

कुछ देर बाद राजेश ने धीरे से कहा, “सुधा… चांदनी बहुत अकेली है, उससे बात हो जाती है। तुम्हें गलतफहमी है। तुम जानती हो मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता।”लेकिन सुधा ने महसूस किया कि शब्दों में दम नहीं है। शायद सच कुछ और ही है…

सुधा का संघर्ष : अब सुधा के जीवन में हर दिन एक नई परीक्षा थी। चांदनी की सुंदरता और आकर्षण सबको दिखता था। काजल से भरी आँखें, मीठी मुस्कान, घने बाल, एक ऐसा आकर्षण जो किसी भी पुरुष का ध्यान खींच ले। लेकिन क्या पति का दिल सिर्फ सुंदरता से बदल सकता है?

क्या सात वर्षों का साथ इतना कमजोर था?

सुधा ने खुद को टूटने नहीं दिया। उसने तय किया कि वह अपने घर को बचाने के लिए कोशिश करेगी। वह खूबसूरती में नहीं, बल्कि अपनापन और समझ में चांदनी से आगे निकलना चाहती थी।

चांदनी की असलियत : एक दिन अचानक गांव में हलचल मच गई। चांदनी के मायके से एक आदमी आया और गांव में ही झगड़ा करने लग गया, “चांदनी! तूने हमारे घर की इज्जत मिट्टी में मिला दी! शहर में भी तेरे चर्चे थे, और अब यहां भी तू चालें चल रही है!”

गांव वाले इकट्ठा हो गए। राजेश भी मौजूद था। सुधा थोड़ी दूरी से यह सब देख रही थी। चांदनी की असलियत सामने आ चुकी थी। वह अपनी सुंदरता और आकर्षण से कई पुरुषों को भटका चुकी थी, और गांव में भी वही करने आई थी।

चांदनी सिसक रही थी, पर उसके मायके का आदमी चिल्ला रहा था—“तुझे जहां भी जगह मिलती है, तू वहां उथल-पुथल मचाती है!” राजेश सब देख रहा था, और उसका भ्रम टूट चुका था।

राजेश का पश्चाताप : रात में वह सुधा के सामने आया, आंखें नम थीं—“सुधा… मुझसे गलती हुई। चांदनी की सुंदरता में मैं बहक गया था… लेकिन आज पता चला कि वह सिर्फ दिखावा थी। तुम ही मेरे जीवन की सच्चाई हो… तुम जैसे दिल वाली स्त्री दुनिया में नहीं।”

सुधा ने गहरी सांस ली। वो चाहती तो गुस्सा करती, उसे छोड़ भी सकती थी। लेकिन उसने कहा, “राजेश, प्यार में सबसे बड़ी जीत माफ़ी में होती है। बस वादा करो… आगे से मुझे इस तरह टूटने नहीं दोगे।” राजेश ने हाथ जोड़ दिए और कहा अब“कभी नहीं। तुम ही मेरी पत्नी हो, मेरा घर हो, मेरा सबकुछ तुम ही हो।”

अंत में पराई सौतन का अंत, घर की जीत हुई। चांदनी अगले दिन गांव छोड़कर चली गई। उसके आकर्षण का जादू जितनी जल्दी छाया था, उतनी ही जल्दी टूट भी गया। सुधा और राजेश का रिश्ता फिर से मजबूत हुआ। कभी-कभी जीवन में पराई सौतन किसी आकर्षक रूप में आकर प्रेम की परीक्षा लेती है, लेकिन असली जीत उसी की होती है जो विश्वास और समर्पण से खड़ा रहता है।

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