#मेहनत से कभी मत घबराना। जो भी काम करो, पूरी लगन से करो। हमेशा याद रखना, #प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है। इसकी हर चीज़ में एक सीख छिपी है।"
लेखक: विनोद कुमार झा
दिल्ली से दूर, किसी शांत गाँव में, जहाँ खेतों की हरियाली और मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में घुली रहती थी, दादा किशन और उनका पोता अंकित धान के कटे हुए खेतों के बीच बैठे थे। सूरज पश्चिम की ओर झुक रहा था और उसकी सुनहरी किरणें, जो कुछ देर पहले पूरे खेत को चमका रही थीं, अब धीरे-धीरे मद्धम पड़ रही थीं। आसमान में नारंगी, गुलाबी और बैंगनी रंग घुलमिल रहे थे, मानो प्रकृति स्वयं एक #सुंदर चित्रकारी #कर रही हो।
दादा किशन, जिनके चेहरे पर समय की झुर्रियाँ और अनुभवों की गहराई साफ़ झलकती थी, अपनी धोती और कुर्ते में बड़े सहज दिख रहे थे। उनके सफेद बाल हवा में हल्के से उड़ रहे थे और उनकी आँखों में एक गहरी शांति थी। उन्होंने अपने पोते अंकित के कंधे पर हाथ रखा, एक स्नेह भरा स्पर्श जो अनगिनत कहानियाँ कहता था।
अंकित, एक छोटा सा लड़का जिसकी आँखों में दुनिया को जानने की उत्सुकता भरी थी, अपने दादा के बगल में बैठा हुआ था। उसने भी उसी रंग के साधारण कपड़े पहने थे और उसके चेहरे पर दिन भर खेतों में खेलने और दौड़ने की थकान साफ़ दिख रही थी, लेकिन साथ ही एक मासूम खुशी भी झलक रही थी। वह बड़े ध्यान से अपने दादा की बातों को सुन रहा था, मानो उनके हर शब्द में कोई गहरा ज्ञान छुपा हो।
उनके सामने एक छोटी सी स्टील की थाली रखी हुई थी, जिसमें सादे भोजन - कुछ रोटियाँ, थोड़ी सी चावल दाल और शायद थोड़ी सी चटनी सजे थे। पास ही एक मिट्टी का बर्तन रखा था, जिसमें शायद ठंडा पानी या छाछ होगी, जो गर्मी में राहत देती थी। यह भोजन किसी शानदार दावत से कोसों दूर था, लेकिन उस शांत शाम में, खेत के बीच बैठकर, यह उन्हें किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था।
दादा किशन ने एक रोटी का टुकड़ा तोड़ा और उसे दाल में डुबोकर अंकित की ओर बढ़ाया। अंकित ने शरमाते हुए अपना मुँह खोला और दादा के हाथ से कौर खा लिया। उनकी आँखों में कृतज्ञता थी। इस छोटे से इशारे में, उनके बीच का गहरा प्यार और स्नेह झलकता था।
"देख रे अंकित," दादा ने अपनी धीमी और प्यारी आवाज में कहा, "ये जो धरती माँ है न, यह हमारी सब कुछ है। यह हमें अन्न देती है, पानी देती है और रहने की जगह भी देती है। हमें हमेशा इसका सम्मान करना चाहिए।"
अंकित ने हामी भरी। वह जानता था कि उसके दादा खेतों में कितनी मेहनत करते हैं, सुबह से शाम तक धूप और गर्मी में काम करते हैं ताकि उनका परिवार पल सके। उसने उन कठोर हाथों को भी देखा था, जो मिट्टी को प्यार से सहलाते थे और अनाज उगाते थे।
दादा किशन ने आगे कहा, "मेहनत से कभी मत घबराना। जो भी काम करो, पूरी लगन से करो। और हमेशा याद रखना, प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है। इसकी हर चीज़ में एक सीख छिपी है।"
अंकित ने आसमान की ओर देखा। सूरज अब पूरी तरह से डूब चुका था और तारों ने धीरे-धीरे अपनी जगह लेनी शुरू कर दी थी। चाँद की हल्की रोशनी खेतों पर फैल रही थी और हवा में एक अजीब सी शांति थी। दूर से कहीं ढोल-नगाड़ों की धीमी आवाज आ रही थी, जो गाँव में आने वाले फसल के त्यौहार की सूचना दे रही थी।
उस पल, धान के कटे हुए खेत में बैठे दादा और पोते को एक अद्भुत शांति और संतोष महसूस हुआ। यह सुख किसी महंगी चीज या बाहरी दिखावे में नहीं था, बल्कि यह उनकी मेहनत का फल था, प्रकृति के साथ उनका जुड़ाव था और सबसे बढ़कर, एक-दूसरे का साथ था। दादा किशन ने अपने पोते को अपनी बाँहों में समेट लिया और अंकित ने भी अपने दादा को कसकर पकड़ लिया। उस शांत शाम में, वे दोनों, धरती माँ और तारों भरे आसमान के नीचे, एक अटूट बंधन में बंधे हुए थे - प्यार, सम्मान और गाँव की मिट्टी की खुशबू से बंधे हुए।