विनोद कुमार झा
नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति में हर परंपरा का अपना एक गहरा अर्थ और महत्व होता है। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण धार्मिक नियम से जुड़ा है कुशोत्पाटन कुश घास को उखाड़ने और उसे धार्मिक कार्यों में उपयोग करने की परंपरा। यह भाद्रपद के महीने की अमावस्या तिथि को में विशेष रूप से इसका महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि यह श्राद्ध, पितृ-तर्पण और हवन जैसे संस्कारों का अभिन्न हिस्सा है।
कुशोत्पाटन केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि यह प्रकृति के प्रति श्रद्धा और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, बिना नियमों के तोड़ी गई कुश धार्मिक कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होती। यही कारण है कि इसे उखाड़ते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण और विधि का पालन जरूरी बताया गया है।
पृथ्वी से कुश मांगने का मंत्र : "कुशाग्रह वसते रुद्र, कुश मध्य तु केशवः, कुश मूले वसे ब्रह्मा कुशनमे देहि मेदिनी।"
इस मंत्र के द्वारा साधक पृथ्वी देवी से प्रार्थना करता है कि वे पवित्र कुश प्रदान करें। मान्यता है कि कुश के अग्रभाग में रुद्र, मध्य में केशव (विष्णु) और मूल में ब्रह्मा का वास होता है। इसलिए यह मंत्र बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
कुश उखाड़ते समय इस मंत्र का प्रयोग करें: "ॐ फट्" या "ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।" यह छोटा लेकिन प्रभावशाली मंत्र कुश को जड़ सहित उखाड़ते समय बोला जाता है। इसका उद्देश्य कुश को शुद्ध और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए योग्य बनाना है।
कुशोत्पाटन की पारंपरिक विधि
दिशा का ध्यान: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके दाहिने हाथ से कुश तोड़ें।
शुद्धता का नियम: कुश पूर्ण, हरा-भरा और बिना कटा-फटा होना चाहिए।
क्षमा याचना: उखाड़ने से पहले पृथ्वी से क्षमा मांगें।
सावधानी: कुश को जड़ सहित मिट्टी समेत उखाड़ना शुभ माना जाता है।
संचय: इसे घर, मंदिर या किसी पवित्र स्थान पर रखें, ताकि सालभर धार्मिक कार्यों में उपयोग किया जा सके।
धार्मिक महत्व और मान्यता : कुश को हिंदू धर्म में सतोगुण का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, कुश का उपयोग करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। हवन, श्राद्ध, व्रत और पूजा-अर्चना में इसका प्रयोग अनिवार्य है। माना जाता है कि घर में कुश का संग्रहण करने से समृद्धि और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
कुश को उखाड़ते समय मंत्र का उच्चारण अवश्य करें, क्योंकि यही प्रक्रिया इसे पवित्र बनाती है। कुशोत्पाटन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई में बसा हुआ वह भाव है, जिसमें प्रकृति, श्रद्धा और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। नियमपूर्वक किया गया यह कार्य जीवन में शुभता, समृद्धि और धार्मिक शांति लाता है।