क्या प्रधानमंत्री की विकास प्राथमिकता नई राजनीति का संकेत है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को एक बार फिर से अभूतपूर्व योजनाओं की सौगात दी है। 2200 करोड़ की लागत से 52 परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास महज़ स्थानीय विकास की बात नहीं, बल्कि उस राष्ट्रीय सोच का प्रतीक है जो देश के शहरी और सांस्कृतिक केंद्रों को आधुनिकता और परंपरा के संतुलन में गढ़ने की कोशिश कर रही है। यह मात्र संयोग नहीं है कि पीएम किसान सम्मान निधि की 20वीं किस्त का शुभारंभ भी यहीं से हुआ, जिससे देश के करीब 9.7 करोड़ किसानों को 20,500 करोड़ की सीधी मदद मिली। किसानों को हर तिमाही भरोसा देना और साथ ही डिजिटल ट्रांसफर से पारदर्शिता दिखाना, यह बताता है कि राजनीतिक लोकप्रियता से इतर एक स्थायी नीतिगत सुधार की दिशा में प्रयास चल रहा है।
काशी, जिसे प्रधानमंत्री ने “विकास और विरासत का संगम” कहा, भारत की सांस्कृतिक चेतना का केंद्र रहा है। यहां पर हो रहा इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, पर्यटन और ऊर्जा परियोजनाओं का विकास यह इंगित करता है कि धार्मिक शहरों को अब ‘विकासशील स्मार्ट केंद्र’ के रूप में देखा जा रहा है। क्या यह मॉडल अयोध्या, उज्जैन, रामेश्वरम और केदारनाथ जैसे शहरों पर भी लागू होगा? अगर हां, तो यह देश में सांस्कृतिक-आधारित स्मार्ट सिटी मॉडल की शुरुआत हो सकती है।
प्रधानमंत्री द्वारा ब्रहमोस मिसाइल के निर्माण को लखनऊ में शुरू करने की घोषणा केवल औद्योगिक निवेश का संकेत नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश को एक सामरिक उत्पादन केंद्र बनाने की दृष्टि भी प्रस्तुत करती है। यह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की नींव को और मजबूत कर सकता है। इस यात्रा में जो सबसे उल्लेखनीय रहा, वह था दिव्यांगों को उपकरण वितरण, स्मार्ट बिजली योजना और गंगा घाटों का सौंदर्यीकरण। इन छोटी-छोटी योजनाओं का बड़ा संदेश यही है कि विकास केवल मेट्रो शहरों का अधिकार नहीं, बल्कि हर कस्बे और गाँव की अपेक्षा भी है। यह प्रश्न यथार्थ है कि क्या वाराणसी मॉडल भारतीय राजनीति में विकास को केंद्रीय मुद्दा बनाए रखने का प्रयास है? क्या अन्य राजनीतिक दल इस मॉडल से कुछ सीखेंगे? काशी में जो हो रहा है, वह केवल ईंट-पत्थर का जोड़ नहीं, बल्कि नीति, संस्कृति और जन-विश्वास के त्रिकोण में एक नई राजनीति की आहट है। यह जरूरी है कि इसे केवल चुनावी दृष्टि से न देखा जाए, बल्कि यह नीति-निर्माण की एक दीर्घकालीन दिशा बन सके।
- संपादक ( खबर मार्निंग)